मधुबनी कला को और चमकाने की कोशिश में ‘विदुषिनी’
साइंस टीचर से बनी मधुबनी चित्रकारशौक को करियर में बदलास्थापित कलाकार बनने की तमन्ना
ये एक दिलचस्प कहानी है एक केमिस्ट्री टीचर की जिन्होने फैसला लिया को वो ‘मधुबनी’ पेंटिंग की कलाकार बनेंगी। कोलकत्ता में जन्म लेने वाली विदुषिनी प्रसाद को दसवीं पास करने के बाद पटना आना पड़ा। क्योंकि उनके पिता फिल्म वितरक का काम करते थे और वो ज्यादातर यहीं पर रहते थे। विदुषिनी प्रसाद ने केमिस्ट्री में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से ही की। जिसके बाद वो छात्रों को पढ़ाने लगीं। पटना में रहते हुए वो बड़ी कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों को गणित और विज्ञान की शिक्षा देती। शादी के बाद विदुषिनी को दिल्ली आना पड़ा। यहां आकर भी उन्होने सालों तक बच्चों को पढ़ाने का काम जारी रखा। धीरे धीरे वो उद्यमी बनने के बारे में सोचने लगी ताकि अपने सपनों को पूरा किया जा सके।
विदुषिनी का कहना है कि वो कुछ ऐसा करना चाहती थी जिसे वो अपने घर में रहकर भी कर सकें। इसलिए उन्होने पेंटिंग करना शुरू कर दिया। जिसे उनके दोस्तों और रिश्तेदारों ने खूब पसंद किया और वो उनको पेशेवर तरीके से इस काम को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। विदुषिनी का कहना है उनको मधुबनी पेंटिंग से हमेशा लगाव रहा है। उभरी हुई कलाकृति और पात्रों की नुकीली नाक, कई जटिल लाइनों का मिश्रण जिनको देखने और बनाने में उनको मजा आता था। इसलिए उन्होने कॉलेज के दिनों से कुछ ना कुछ बनाना सीख लिया था।
मधुबनी पेंटिंग के शौक को जिंदा रखने के लिए उन्होने अपने घर के लिए ही ऐसी पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया। नौकरी करने बाद वो इस काम को करने में अपना पूरा वक्त देती थी। हालांकि मधुबनी पेंटिंग सीखने के लिए उन्होने कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया। उनका कहना है कि बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है। ये उनकी संस्कृति में बसा हुआ है। धीरे धीरे विदुषिनी में वर्कशॉप लगाना शुरू कर दिया जहां पर इस कला को सीखने के शौकिन लोग आते थे। अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए उन्होने फेसबुक का भी सहारा लिया ताकि लोगों को इस कला से जुड़ी जानकारी मिल सके।
साल 2007 में विदुषिनी को अपने परिवार के साथ दिल्ली छोड़ बेंगलुरु आना पड़ा। जहां पर उन्होने विभिन्न आर्ट गैलरियों के चक्कर काटने शुरू कर दिये ताकि वो अपनी बनाई कला को प्रदर्शित कर सके। लेकिन यहां उनको कोई ज्यादा उत्साहित करने वाली प्रतिक्रियाएं नहीं मिली। इसलिए वो NOVICA से जुड़ गई। यहां उनको एक कलाकार के तौर पर मान्यता मिली। धीरे धीरे उनके बनाई पेंटिंग की मांग भी बढ़नी शुरू हो गई और ई-कॉमर्स के जरिये उनकी पेंटिंग बिकने लगी। विदुषिनी की बनाई ज्यादातर पेंटिग ऑनलाइन ही बिकनी शुरू हो गई। इसके अलावा स्वंय सेवी संस्था ‘A Hundred Hands’ और ‘Eka Lifestyle Retail’ ने उनकी बनाई पेंटिंग को बढ़ावा देने का काम किया। अब तक विदुषिनी की बनाई मधुबनी पेंटिंग की देश भर की कई आर्ट गैलरियों में प्रदर्शनी लग चुकी है। इन गैलरियों में बेंगलुरु की ‘Renaissance Art Gallery’ केरल के फोर्ट कोच्ची में ‘David Hall Art Gallery’ शामिल है।
इन सब के अलावा विदुषिनी अपनी कला का प्रदर्शन आईआईएम, बेंगलुरु के प्रमुख बिजनेस फेस्टिवल में भी कर चुकी हैं। इसके अलावा भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के तहत आने वाली सेंट्रल कॉटेज इंपोरियम के पैनल में शामिल कलाकारों में उनका नाम भी शामिल है। इस रचनात्मक उद्यमी का अब तक सफर काफी अद्भुत रहा है। विदुषिनी का कहना है कि उनको मिल रही प्रतिक्रियाओं से वो बहुत संतुष्ट हैं। आज बेंगलुरू में बैठ कर देश के विभिन्न हिस्सों से पेंटिंग बनाने के ऑर्डर हासिल कर रही हैं। साथ ही उनका मानना है कि इस कला को लेकर लोगों में जागरूकता पहले के मुकाबले बढ़ गई है। हालांकि कई खरीदार ऐसे हैं जो पेंटिंग खरीदते वक्त काफी मोलभाव करते हैं। ये बात विदुषिनी को काफी अखरती है, क्योंकि ग्राहक नहीं जानते कि किसी पेंटिंग को बनाने में कितनी मेहनत लगती है।
विदुषिनी अपनी कला के लिए हाथ से बना कागज और केनवास स्थानीय बाजार से प्राप्त करती हैं। जबकि पेटिंग से जुड़ा दूसरा सामान पटना से मंगवाती है जहां मधुबनी पेंटिंग का जन्म हुआ। विदुषिनी इस बात को लेकर खुश हैं कि उन्होने वो किया जो वो करना चाहती थी। काम के बढ़ते दबाव के बीच वो अपने लिये बहुत कम वक्त निकाल पाती हैं। बावजूद इसके वो खुश हैं कि उन्होने उस चीज को करियर बनाया जो उनका शौक था। खास बात ये है कि विदुषिनी ने मधुबनी कला को एक किताब के रूप में ढाल में लगी हुई है। जिसमें ना सिर्फ कला की जानकारी दी गई है बल्कि उसमें ये भी बताया गया है कि कैसे कोई पेंटिंग बनाये, उनको बेचे और निर्यात करे। इसको लेकर वो अब तक दस मधुबनी कलाकारों का इंटरव्यू भी कर चुकी हैं। फिलहाल विदुषिनी का ध्यान अपने लक्ष्य को लेकर है। वो अपने आप को एक कलाकार के तौर पर स्थापित करना चाहती हैं और मधुबनी कला का प्रचार और प्रसार करना चाहती हैं।