60 अनाथ और बेसहारा बच्चों के माता-पिता बन उनकी जिम्मेदारी उठा रहा है एक दंपति
बच्चे जिनका नाम लेते ही हमारे दिमाग में उनकी मासूमयित, उनकी मोहक मुस्कान और उनका हंसता खेलता चेहरा नजर आता है। इसके विपरीत हमारे समाज में कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जिनका बचपन कई कारणों से उनसे छिन गया है। हमें और आपको ऐसे बच्चे रेलवे स्टेशन, ट्रैफिक सिग्नल, बाजार और दूसरी जगहों पर दिखाई दे जाते हैं, लेकिन हममें से कितने लोगों का ध्यान इनके पुनर्वास पर जाता है। बावजूद हमारे समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो निरंतर इन बच्चों के विकास पर लगे हुए हैं। ऐसी ही एक दंपत्ति है जो आंध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में रहकर ऐसे बच्चों का ना सिर्फ पुर्नवास कर रहे हैं बल्कि उनको पढ़ा लिखा कर इस काबिल बना रहे हैं ताकि वो अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
शोभा रानी ने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्याल से सोशल वर्क में मास्टर किया है। शुरू से ही उनका रूझान सामाजिक समस्याओं को दूर करने ओर रहा। अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होने कई सामाजिक प्रोजेक्ट पर अलग अलग एनजीओ के साथ काम किया। इसमें एक एनजीओ के साथ उन्होंने बेसहारा और अनाथ बच्चों के लिए काम किया। इसमें वे सड़क किनारे, रेलवे स्टेशन और दूसरी जगहों में मिलने वाले बच्चों को शहर के अलग अलग जगहों से लाकर उन्हें रिहेब सेंटरु और शहर के विभिन्न शेल्टर होमों तक पहुंचाती थीं। कुछ बच्चे जो अपने माता-पिता से किन्ही वजहों से बिछुड़ जाते थे उन्हें भी वह उनके माता-पिता तक पहुंचाने का काम करती थीं। इस काम में उनके पति भी उन्हें सहयोग देते थे। उनके पति खुद भी शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और वे एक प्रोफेसर रह चुके हैं, लेकिन पत्नी के सामाजिक कामों में हाथ बांटने के लिए वो अपनी नौकरी छोड़ इस काम में जुट गये।
बेसहारा और परिवार से अलग हो चुके बच्चों को अपने साथ जोड़ने के लिए शोभा ने साल 1999 में ‘स्पंदन’ नाम की संस्था को शुरू किया, हालांकि वो इस तरह का काम पहले से ही कर रहीं थीं। एक पुरानी घटना को याद करते हुए वो बताती हैं कि “मुझे एक दिन रेलवे स्टेशन के बाहर एक 11 साल की लड़की मिली उस लड़की का मानसिक संतुलन ठीक नहीं था इस कारण उसके माता-पिता उसे स्टेशन के बाहर छोड़ गये थे। लड़की के कपड़े मैले और मिट्टी से सने हुए थे, बाल उसके एकदम खराब और गंदे थे। जब मैं उस लड़की को रिहेब सेंटर ले गयी तो उसकी हालत को देखकर उन्होने उसे रखने से इंकार कर दिया तब उस लड़की को मैं अपने घर ले आई। 6 महीने तक उसकी मैंने देखभाल की और जब उसकी हालत में थोड़ा सुधार आया और वह थोड़ा बहुत बोलने लगी। तो हमें लगा कि इसे स्पेशल एजुकेशन के लिए रिहेब सेंटर भेजना चाहिए तो हम उसे उसी सेंटर ले गये जिसने उसे पहने रखने से मना कर दिया था लेकिन इस बार वो उसे अपने पास रखने के लिए तैयार हो गये।”
शोभा के मुताबिक उस घटना ने उनको अंदर से हिला कर रख दिया। तब उन्होने सोचा कि क्यों ना एक ऐसा शेल्टर होम बनाया जाये जहां पर कोई भी बच्चा चाहे वो कैसी भी हालत में क्यों न हो, उसे आश्रय मिले। वो बताती हैं कि उस वक्त हैदराबाद में बहुत सारे एनजीओ काम कर रहे थे लेकिन उनके अपने नियम कानून थे कि ऐसे बच्चे को रखना है और दूसरे बच्चों को नहीं रखना। शोभा ने स्पंदन की शुरूआत 5 बच्चों से की और फिर धीरे धीरे इनकी संख्मया 10 से 20 हुई और आज करीब 60 बच्चे यहां रहते हैं। इसमें से 31 लड़कियां और 29 लड़के हैं। शोभा और उनके पति के साथ रहने वाले बच्चों की उम्र 6 साल से लेकर 15 साल तक के बीच है।
आज 'स्पंदन' में रहने वाले सभी बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं। इनमें से एक बच्चा 11वीं में और एक 12वीं में पढ़ता है। दानकर्ताओं के सहयोग से कुछ बच्चे बोर्डिंग स्कूल में और कुछ बच्चे इंटरनेशनल स्कूल तक में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। इन्होंने अपने सभी बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में डाला हुआ है। ये अपने बच्चों को वोकेशनल ट्रेनिंग भी देते हैं। एक लड़की इनके यहां की फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही है। तो एक दूसरी लड़की ने सोशल वर्क से स्नातक किया है और उसकी एक अस्पताल में नौकरी लग गयी है।
शोभा के मुताबिक जब उन्होने अपने इस काम की शुरूआत की थी तब उनके पास पैसे की काफी कमी थी। तब कुछ लोग इन्हें चावल, दाल, चीनी, तेल इत्यादि दान करते थे। वो बताती हैं कि हम लोग पहले रिलांयस जैसे स्टोरों में जाते थे क्योंकि वो लोग एक दो दिन पुरानी सब्जियों को बाहर कर देते थे हालांकि वो खराब नहीं होती थी इसलिए ये लोग उस सब्जियों को मुफ्त में लेकर आ जाते थे। शोभा का कहना है कि "हर रात के बाद सुबह होती है हमारी भी सुबह हुई। जब एक नेक आदमी ने हमारे काम को देखकर साल 2010 से हमें दान देना शुरू किया आज उन्हीं के सहयोग से हम अपने बच्चों को अच्छा और ताजा खाना पीना दे रहे हैं। साल 2012 में हमने अपना खुद का शेल्टर होम भी बना दिया है। जिसमें की बच्चें अब आराम से रह रहें हैं।"
'स्पंदन' में रहने वाले बच्चे अलग अलग माहौल से आए हैं, इसलिये शुरूआत में यहां आने वाले बच्चों को आपसी तालमेल में थोड़ी दिक्कत होती है और उनको वक्त लगता है। कई बार नये बच्चों के आने पर ये आपस में झगड़ा भी करते हैं। ऐसे में शोभा के पति काउंसलर की भूमिका निभाते हैं और वो इन बच्चों को नैतिकता और लाइफ स्किल का ज्ञान इन बच्चों को देते हैं। अपने काम के बारे में शोभा का कहना है कि उनके पास संसाधन सीमित हैं इसलिए वो हैदराबाद के अपने शेलटर होम की क्षमता बढ़ाना चाहती हैं। अब उनका लक्ष्य है कि यहां रहने वाले सभी बच्चे पढ़ लिखकर अच्छी जिंदगी जियें, साथ ही वे इन बच्चों से उम्मीद करती हैं कि जब ये बच्चे काबिल बन जायें तो वे आगे चलकर अपने जैसे दूसरे बच्चों की मदद कर उनका भविष्य भी सुधारें।
वेबसाइट : www.spandanaindia.org