आम बजट 2018-19: मंदी के संकेत से हालत डांवाडोल
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली 01 फरवरी को आम बजट ले आ रहे हैं तो इस बीच, देश के अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि फिसकल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा 112 फीसदी तक पहुंच जाने की हाल की खबर आम बजट को भी काफी हद तक प्रभावित कर सकती है।
मंदी आती है तो अपने साथ तमाम तरह की मुश्किलें लेकर आती है। एक ओर पहली फरवरी को आने वाले आम बजट की चर्चाएं हैं, दूसरी ओर आसन्न मंदी के संकट की। राजकोषीय घाटे के जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रहने के बजटीय अनुमान से आगे निकल जाने की आशंकाओं के बीच इसका असर आम बजट पर भी पड़ने की चर्चाएं हैं। यद्यपि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं कि अर्थव्यवस्था में वैसी गिरावट नहीं आई है, जैसी नब्बे के दशक में मनमोहन सिंह के समय में थी। हमारे वक्त में आर्थिक गतिविधियां रफ्तार पकड़ रही हैं।
सरकारी खर्चों में बड़ा इजाफा हुआ है। कुछ दिनों पहले सरकारी व्यय को पूरा करने के लिए सरकार ने 50,000 करोड़ का कर्ज बाजार से लेने का फैसला किया।
एक ओर पहली फरवरी को आने वाले आम बजट की चर्चाएं हैं, दूसरी ओर मंदी के संकट की। इस बीच सत्तासीन भाजपा की विफलताएं गिनाते हुए प्रमुख विपक्षी कांग्रेस की तीरंदाजियां भी जारी हैं। इन दिनो भी बजट के बहाने ही सही रह-रह कर कांग्रेस के तरकस से कोई न कोई तीर हहराता हुआ केंद्र सरकार के सिर से गुजर ही जाता है। पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम कहते हैं - ‘मजबूत विकास दर के साथ भारत के आगे बढ़ने के मोदी सरकार के दावे बहुत जल्दी गायब हो गए। नई परियोजनाओं और नए निवेश में गिरावट आ रही है। नए रोजगार नहीं पैदा हो रहे, निर्यात घट रहा है और निर्माण उद्योग भी सुस्त हो गया है। यह समय सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे करने का नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाने का है।
आर्थिक वृद्धि में जिस सुस्ती का डर था, वह सामने आ चुका है। असंगठित क्षेत्र नोटबंदी के दुष्प्रभावों से जूझ रहा है। रोजगार सृजन नाम मात्र का है, निर्यात कम हो रहा है और विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि नीचे आ गयी है। कृषि क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में भारी निराशा है। रोजगार सृजन भारतीय जनता पार्टी सरकार की सबसे बड़ी असफलता है। बैंकों की ऋण वृद्धि भी बहुत ही कम है और यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। आसन्न आर्थिक संकट पर चाशनी चढ़ाने, डींग हांकने तथा सुर्खियों को साध कर सच को छिपाया नहीं जा सकता है। वित्त वर्ष 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर आठ प्रतिशत थी जो 2016-17 में 7.1 प्रतिशत पर आ गयी।
इसके 6.5 प्रतिशत पर आ जाने का अनुमान है। आर्थिक गतिविधियों और वृद्धि में गिरावट का मतलब लाखों नौकरियां जाना है। वास्तविक सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) के भी 2016-17 के 6.6 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है। खुदरा महंगाई बढ़कर पिछले दिनो उच्चतम स्तर 4.88 प्रतिशत पर पहुंच गयी। औद्योगिक उत्पादन गिरकर तीन महीने के निचले स्तर 2.2 प्रतिशत पर आ गया। राजकोषीय घाटा के जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रहने के बजटीय अनुमान से आगे निकल जाने की आशंका है।'
गौरतलब है कि जब मंदी आती है तो अपने साथ बहुत सारी मुश्किलें लेकर आती है। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली 01 फरवरी को आम बजट ले आ रहे हैं तो इस बीच, देश के अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि फिसकल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा 112 फीसदी तक पहुंच जाने की हाल की खबर आम बजट को भी काफी हद तक प्रभावित कर सकती है। वर्ष 2008-2009 की मंदी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब फिस्कल डेफिसिट इस हद तक जा पहुंचा है। लगातार बढ़ता राजकोषीय घाटा सरकार के सामने कई नई चुनौतियां लेकर आया है।
सरकारी खर्चों में में बड़ा इजाफा हुआ है। कुछ दिनों पहले सरकारी व्यय को पूरा करने के लिए सरकार ने 50,000 करोड़ का कर्ज बाजार से लेने का फैसला किया। राजकोषीय घाटे के इस स्तर पर पहुंचने की बड़ी वजह जीएसटी यानी टैक्स कलेक्शन और नॉन टैक्स रेवेन्यू में आई कमी है। इन दोनों के चलते ये डेफिसिट 6.12 लाख करोड़ जा पहुंचा है। रेवेन्यू डेफिसिट अप्रेस से नवंबर में 152 फीसदी पहुंच गया। डिविंडेड और मुनाफा 70 फीसदी पीछे पहुंच जाना भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत चिंताजनक है।
यद्यपि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं कि वर्ष 2017-18 में विकास दर चार साल में सबसे कम रहने के पूर्वानुमान के बावजूद 1991-92 के आर्थिक सुधारों के बाद सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में यह एक उपलब्धि है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और नोटबंदी जैसे बड़े सुधारों को लागू करने के बावजूद जीडीपी में वैसी गिरावट नहीं आई है। मनमोहन सिंह ने 1991-92 जब आर्थिक सुधारों की घोषणा की थी, तब विकास दर 1.1 तक गिर गयी थी। हमारे वक्त में आर्थिक गतिविधि जोर पकड़ रही है और आने वाले वक्त में और मजबूती आ सकती है क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स (पीएमआई) अभी पांच साल के ऊंचे स्तर 54 फीसदी पर है और एफएमसीजी क्षेत्र में मांग तेजी से बढ़ रही है। इस तरह 2018-19 में जीडीपी विकास दर ज्यादा मजबूत होगी। इसी बीच सत्ता के भीतर ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी ट्वीट करते हैं कि भारत की विकास दर 7.1 प्रतिशत थी, अब यह गिरकर 6.5 प्रतिशत हो गयी। अगर भारत से गरीबी दूर करना चाहते हैं तो देश की विकास दर कम से कम 10 प्रतिशत रहनी चाहिए।
आने वाले आम बजट के दिनो में ही एक और खराब सूचना आ रही है बैंकिंग सेक्टर से, जिसका व्यापक एवं गंभीर असर इस क्षेत्र की नौकरियों पर पड़ने का अंदेशा है। इस साल भारी दबाव से गुजर रहे भारत के कई बड़े सरकारी बैंक कोई वैकेंसी नहीं निकालेंगे, साथ ही अपनी ओवरसीज़ ब्रांच को भी बंद करने जा रहे हैं। फाइनेंस मिनिस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक सरकार ने भी बैंकों से अपनी ओवरसीज़ शाखाओं को बंद करने के लिए कहा है। ओवरसीज़ शाखाओं का रणनीतिक महत्व होता है मगर इस समय बैंक अपने खर्च कम कर रहे हैं। पंजाब नेशनल बैंक जहां एक साल में 300 शाखाएं बंद कर देगा, वहीं बैंक ऑफ इंडिया 700 एटीएम खत्म करेगा। आईबीपीएस के नोटिफिकेशन के मुताबिक 2018 में पीओ की सिर्फ 3562 वैकेंसी ही होंगी।
आने वाले समय में बैंको में नौकरियों की संभावना 10-15 प्रतिशत ही रह जाने की आशंका है। बताया जा रहा है कि इस साल बैंक ऑफ बड़ौदा, आईडीबीआई बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब नेशनल बैंक आदि में कोई भर्ती नहीं होने की सूचना है। मंदी कितनी तरह की मुश्किलों को जन्म देती है, अभी इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है, अंदेशा है कि क्या सरकार इस भूचाल को थाम भी पाएगी या नहीं! विश्व पटल पर एक नजर डालें तो पता चल रहा है कि दुनिया भर के बड़े अर्थशास्त्री अगली वैश्विक आर्थिक मंदी के लिए कमर कस रहे हैं, जो आने वाले डेढ़ से दो साल में दस्तक दे सकती है। क्रेडिट हेज-फंड फर्म ने तो संकटकालीन फंड योजना पर अमल भी शुरू कर दिया है। उसका मानना है कि इस फंड का इस्तेमाल तक किया जाएगा, जब दुनिया भर में आर्थिक कमजोरी होगी। इसके लिए साल 2018 के दूसरे भाग तक पूंजी जुटाने का प्रयास होगा। पिछले दिनो एम्सटरडम की कॉन्फ्रेंस में सबसे बड़ा सवाल गूंजा कि 'क्या हम एक बार फिर मंदी के दौर में जाने वाले हैं? यह इस साल तो नहीं होगा, मगर साल 2019 में यह काफी हद तक संभव नजर आ रहा है।' जहां एक तरफ अमेरिकी शेयर बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं औऱ कॉर्पोरेट डिफॉल्ट लगातार घट रहा है। ऐसा काफी हद तक संभव है कि विकसित देश किसी खास सेक्टर के गुब्बारे में हवा भरने का काम करें, जो सिर्फ विकास का दिखावा करे।
मंदी आने के संकेतों के बीच डांवाडोल भारतीय अर्थव्यवस्था की चिंताएं देश के सरकारी गलियारों में साफ देखी जा रही हैं। ऐसे हालात के बीच देश की मैक्रो-इकनॉमिक हालात पर रायशुमारी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्तर गंभीर प्रयास भी शुरू हो चुके हैं। इस रायशुमारी में देश के दिग्गज अर्थशास्त्रियों के अलावा कैबिनेट के शीर्ष मंत्री, ब्यूरोक्रेट्स और प्रधानमंत्री की इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य भी साझा हो रहे हैं। गौरतलब है कि देश में अगला लोकसभा चुनाव 2019 में होने जा रहा है। बीते चार वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे कम ग्रोथ के अनुमान के पीछे ऐग्रिकल्चर और मैन्युफैक्चरिंग में धीमी ग्रोथ जैसे कारण हैं। हालांकि, अनुमानों से दूसरी छमाही में ग्रोथ बढ़कर 7 पर्सेंट होने का संकेत मिला है, जो पहली छमाही में 6 पर्सेंट की थी। हाल के डेटा से कोर सेक्टर, पीएमआई और कार सेल्स में भी रिकवरी का पता चला है।
प्रधानमंत्री की अर्थशास्त्रियों के साथ प्री-बजट मीटिंग में मैन्युफैक्चरिंग और मेक इन इंडिया को मजबूत करने, एक्सपोर्ट बढ़ाने, किसानों की आमदनी दोगुनी करने के तरीकों और देश में रोजगार बढ़ाने के उपायों पर विचार मुख्य विषय रहे हैं। इसमें अर्थशास्त्री टैक्सेशन और टैरिफ से संबंधित मामलों, एजुकेशन, डिजिटल टेक्नॉलजी, हाउसिंग, टूरिज्म, बैंकिंग और ग्रोथ बढ़ाने के लिए भविष्य के कदमों पर अपनी-अपनी राय रखते हैं। सरकार मोदी के न्यू इंडिया 2022 के विजन को लेकर भी लघु-अवधि और लंबी-अवधि के उपायों पर राय सामने आ रही हैं। इनमें से कुछ उपायों को एक फरवरी को पेश होने वाले बजट में शामिल किया जा सकता है। इस बीच प्रधानमंत्री के इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल के प्रमुख नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय, सुरजीत भल्ला, रथिन रॉय, आशिमा गोयल जैसे अर्थशास्त्रियों का उद्देश्य इकनॉमिक ग्रोथ के लिए रोडमैप का सुझाव देना है। नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार को विश्वास है कि 2018-19 में जीडीपी ग्रोथ अधिक मजबूत होगी क्योंकि पिछले तीन क्वॉर्टर्स में इकनॉमिक एक्टिविटी बढ़ी है और मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई पांच वर्ष के उच्च स्तर पर है। इसके अलावा फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स की डिमांड भी बढ़ रही है। आम बजट-2018-19 से ताल्लुक रखती एक और महत्वपूर्ण बात का पता चला है।
बताया जा रहा है कि वित्तमंत्री हाउसिंग सेक्टर को मजबूत करने के लिए 01 फरवरी को संसद में कई अहम घोषणाएं कर सकते हैं। रेंटल इनकम पर टैक्स में छूट की सीमा बढ़ाई जा सकती है। फिलहाल, टैक्स छूट की सीमा 30 प्रतिशत है। मास रेंटल प्रोजेक्ट्स को भी इन्सेंटिव दिया जाना विचाराधीन है। यानी डेवलपर्स जो प्रोजेक्ट्स केवल रेंटल हाउसिंग के लिए बनाएंगे, उन्हें जमीन और कंस्ट्रक्शन पर इन्सेंटिव दिया जा सकता है। बजट में उन राज्यों को इन्सेंटिव देने की भी घोषणा की जा सकती है, जो रेसिडेंशियल प्रोजेक्ट्स से संबंधित सभी मंजूरियों को एक माह के भीतर देने के लिए आवश्यक कदम उठा सकें।
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