पति की शहादत को बनाया मिसाल, शहीदों की विधवाओं को जीना सिखा रही सुभासिनी
पति की मौत के बाद सुभाषिनी वसंत ने शहीदों की विधवाओं को शुरू कर दिया सशक्त बनाने का काम...
युद्ध एक ऐसी त्रासदी है, जिसकी तबाही में देश के सिपाही अपना सब कुछ खो देते हैं। यह नुकसान सिर्फ जवान ही नहीं सहता, उसका परिवार भी भयानक संघर्ष से गुजरता है। इन सबके बीच जीवन नहीं रुकता और हमें भी नहीं रुकना चाहिए बल्कि अपनी तकलीफ को ताकत बनाकर, दूसरों की तकलीफ को दूर करने की जुगत में लग जाना चाहिए। यही संदेश देती है, सुभाषिनी वसंत की कहानी...
सुभाषिनी उच्च शिक्षा पर भी खास जोर देती हैं और इसके लिए उन्होंने मास्टर प्रोग्राम भी शुरू किया है। इसके अतिरिक्त फाउंडेशन इन महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए वर्कशॉप भी आयोजित कराता है।
युद्ध एक ऐसी त्रासदी है, जिसकी तबाही में देश के सिपाही अपना सब कुछ खो देते हैं। यह नुकसान सिर्फ जवान ही नहीं सहता, उसका परिवार भी भयानक संघर्ष से गुजरता है। इन सबके बीच जीवन नहीं रुकता और हमें भी नहीं रुकना चाहिए बल्कि अपनी तकलीफ को ताकत बनाकर, दूसरों की तकलीफ को दूर करने की जुगत में लग जाना चाहिए। यही संदेश देती है, सुभाषिनी वसंत की कहानी। पति की मौत के बाद सुभाषिनी ने शहीदों की विधवाओं को सशक्त बनाने के लिए वसंतरत्न फाउंडेशन फॉर आर्ट्स की नींव रखी।
सुभाषिनी वसंत को नीरज भनोट पुरस्कार (2016) से नवाजा जा चुका है। उनके पति कर्नल वसंत वेणुगोपाल ने जम्मू-कश्मीर में 31 जुलाई, 2007 में घुसपैठियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवाई। वेणुगोपाल को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। पति की मौत के तीन महीने बाद सुभाषिनी ने उनकी याद में फाउंडेशन की शुरूआत की। यह फाउंडेशन नागरिक और सरकारी एजेंसियों के साथ संपर्क स्थापित कर, शहीदों के परिवारों की मदद करता है।
सुभाषिनी मानती हैं कि शहीदों की पत्नियों को आर्थिक सहयोग के साथ-साथ, जीवन में एक स्थाई उद्देश्य की भी जरूरत होती है। फाउंडेशन की 5 सदस्यीय टीम सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ उठाने में इन महिलाओं की मदद करती हैं।
अपने समय की लोकप्रिय अभिनेत्री वैजयंतीमाला बाली के संरक्षण में भरतनाट्यम सीख चुकीं सुभाषिणी मानती हैं कि कला और शिक्षा के जरिए गहरे से गहरे घाव को भरा जा सकता है। 15 अक्टूबर, 2007 में स्थापना के बाद फाउंडेशन का सबसे पहला प्रोग्राम यह सुनश्चिति करने के लिए था कि बच्चों की शिक्षा में कोई बाधा न आए। फाउंडेशन न सिर्फ बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने में मदद करता है बल्कि हर बच्चे की शिक्षा के लिए 30,000 हजार रुपए सुरक्षित किए जाते हैं। परिवार हर साल इस राशि का ब्याज निकाल सकता है और जब बच्चा 18 साल का हो जाए, तब पूरी राशि भी निकाली जा सकती है।
सुभाषिनी उच्च शिक्षा पर भी खास जोर देती हैं और इसके लिए उन्होंने मास्टर प्रोग्राम भी शुरू किया है। इसके अतिरिक्त फाउंडेशन इन महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए वर्कशॉप भी आयोजित कराता है। इस प्रोग्राम के तहत महिलाओं को पर्सनल फाइनैंस और इंग्लिश स्पीकिंग आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रोग्राम का हिस्सा रह चुकीं महिलाएं मानती हैं कि इस तरह के प्रशिक्षण से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। ये वर्कशॉप्स साल में 2 बार आयोजित कराई जाती हैं। इतना ही नहीं फाउंडेशन शहीदों की विरासत को जिंदा रखने की दिशा में भी काम कर रही है। फाउंडेशन के हालिया प्रोग्राम के तहत शहीदों के नाम पर उनके स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों में स्कॉलरशिप दी जाती है।
फाउंडेशन के लिए पैसा जुटाना भी एक कड़ी चुनौती था, जिसे सुभाषिनी ने पूरे आत्मविश्वास से पार किया। उन्होंने ‘द साइलेंट फ्रंट’ नाम से एक नाटक लिखा, जो ऐसे शहीदों के लिए था, जिनकी शहादत की कहानी वक्त के साथ ही खो गई थीं। इस नाटक को दिल्ली और बेंगलुरु में प्रदर्शित किया गया और जो राशि इकट्ठा हुई, उसे फाउंडेशन में लगा दिया गया। साथ ही, सुभाषिणी के दोस्तों और परिवार ने भी आर्थिक सहायता की।
कर्नाटक सरकार की 1971 में बनी नीति के तहत सुभाषिनी को 20 हजार रुपए की राशि मिली और उनके नाम पर सालाना 800 रुपए का फंड भी सुनिश्चित किया गया। इसके अलावा उन्हें बेंगलुरु में जमीन के लिए लगभग 1 लाख रुपए की सहायता दी गई। सुभाषिनी ने इसके लिए भी मेहनत की और उनकी मेहनत के बाद, नीति में संशोधन किया गया। तय हुआ कि अब से अशोक चक्र पाने वाले शहीदों के परिवार को 5 लाख रुपए तक की सहायता दी जाएगी। हालांकि, सुभाषिनी इसका लाभ नहीं उठा सकीं। फाउंडेशन को एक दशक हो चुका है। हाल में 120 शहीदों की विधवाएं और बच्चे इस फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं। आने वाले महीनों में फाउंडेशन की टीम आंध्र प्रदेश, असम और दिल्ली में भी अपने कार्यक्रम शुरू करेगी।
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