ईमानदारी की चुकानी पड़ी कीमत, 33 साल की सर्विस में इस IAS अफसर के हुए 70 तबादले
ईमानदारी के चलते इस IAS अॉफिसर के 33 साल में हुए 70 ट्रांसफर...
एक आईएएस अफसर हैं हरियाणा के प्रदीप कासनी जिनका 33 साल की सर्विस में 70 बार ट्रांसफर हुआ। बीते हफ्ते कासनी रिटायर हो गए। उनके काम की छाप आज भी प्रदेश में गूंज रही है। प्रदीप कासनी हमेशा से गलत काम के लिए मुखर होकर बोलते रहे हैं।
कासनी हरियाणा सिविल सर्विस के 1984 बैच के अधिकारी हैं। बाद में उन्हें 1997 में वरिष्ठता के आधार पर आईएएस के रैंक पर प्रोन्नति मिल गई। हरियाणा प्रशासनिक सुधार विभाग के सचिव रहते हुए उन्होंने 2014 में राज्य सूचना आय़ुक्त और राइट टू सर्विस कमिश्नर की नियुक्ति और प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न खड़े किए थे।
देश में ईमानदारी से अपना काम करने वाले अफसरों से हर सरकार को डर लगता है। इसीलिए इन अफसरों की जिंदगी में एक बात सामान्य होती है, वो है तबादला। अक्सर ऐसे अधिकारियों को पूरी सर्विस में इधर से उधर बार-बार अलग-अलग विभागों में भेजा जाता है। लेकिन इससे उनके हौसले कम नहीं होते। ऐसे ही एक आईएएस अफसर हैं हरियाणा के प्रदीप कासनी जिनका 33 साल की सर्विस में 70 बार ट्रांसफर हुआ। बीते हफ्ते कासनी रिटायर हो गए। उनके काम की छाप आज भी प्रदेश में गूंज रही है। प्रदीप कासनी हमेशा से गलत काम के लिए मुखर होकर बोलते रहे हैं। उन्होंने कभी किसी की परवाह नहीं की। यही वजह है कि उन्हें काफी कम महत्व वाले विभाग दे दिए जाते थे।
वे हरियाणा के लैंड यूज बोर्ड में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी पद से रियायर हुए। इस विभाग को पनिशमेंट पोस्टिंग के लिए जाना जाता है। रिटायरमेंट के मौके पर हरियाणा आईएएस ऑफिसर एसोसिएशन की तरफ से प्रदीप कासनी के लिए एक छोटी सी टी पार्टी रखी गई थी। हालांकि कासनी ने मीडिया से बाक करते हुए कहा, 'जिन वास्तविक मुद्दों पर एसोसिएशन का समर्थन मुझे चाहिए था, वो नहीं मिला। रिटायरमेंट पर टी पार्टी का आयोजन करना महज एक औपचारिकता के सिवा और कुछ नहीं है।' उन्होंने कहा कि एसोसिएशन को कैडर और बॉर्डर से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए और गवर्नेंस में होने वाले भ्रष्टाचार पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
अगस्त 2017 में कासनी को हरियाणा लैंड यूज बोर्ड में ओएसडी के तौर पर तैनात किया गया था। आमतौर पर ऐसा कोई पद इस विभाग में नहीं होता है, लेकिन कासनी को 'किनारे' करने के लिए उन्हें यह तैनाती दी गई थी। उन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल (CAT) से इस पोस्टिंग पर अपील की थी। उन्होंने ऐसे गैरजरूरी पद पर अपनी पोस्टिंग को लेकर आपत्ति जताई थी। 60 वर्षीय सेक्रेटरी रैंक के अफसर को अपनी सैलरी और बकाया भुगतान के लिए हाईकोर्ट तक के चक्कर लगाने पड़ गए। उनका वेतन रोक दिया गया था।
कासनी ने कोर्ट के सामने कहा कि सरकार ने उन्हें ऐसी जगह भेज दिया है जिस पद का अस्तित्व ही नहीं था। उन्हें जबरन एक ऐसे पद पर तैनात कर दिया गया जो कब का खत्म हो चुका था। यहां तक कि सरकार के प्रतिनिधि ने भी कोर्ट में यह स्वीकार किया कि इस पद को 2009 में ही समाप्त कर दिया गया था। इसके बाद कोर्ट ने सरकार को कासनी की सैलरी और बाकी सारी देयताओं का भुगतान करने को कहा। रियायरमेंट के कुछ ही दिन पहले कासनी को उनकी रुकी हुई सैलरी मिली।
कासनी हरियाणा सिविल सर्विस के 1984 बैच के अधिकारी हैं। बाद में उन्हें 1997 में वरिष्ठता के आधार पर आईएएस के रैंक पर प्रोन्नति मिल गई। हरियाणा प्रशासनिक सुधार विभाग के सचिव रहते हुए उन्होंने 2014 में राज्य सूचना आय़ुक्त और राइट टू सर्विस कमिश्नर की नियुक्ति और प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न खड़े किए थे। इसके बाद 2014 में ही राज्य में बीजेपी की सरकार आने के बाद कासनी को गुड़गांव डिविजन में कमिश्नर के तौर पर तैनात कर दिया गया। लेकिन सिर्फ 1 महीने और 8 दिन के बाद उन्हें इस पद से हटा दिया गया। उन्हें इस पद से हटाने की वजह भी नहीं बताई गई। कासनी ने सरकारी जमीनों को प्राइवेट लाभ के लिए उपयोग करने पर एक रिपोर्ट फाइल की थी जिसके बाद उन पर यह कार्रवाई की गई थी।
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