10 साल पहले ये टेक बिजनेसमैन बन गए थे 'डॉग फादर’, आज 800 कुत्तों को एक खास सैंच्युरी में पाल रहे हैं राकेश
आज राकेश शुक्ला की रजिस्टर्ड संस्था ‘वॉइस ऑफ स्ट्रे डॉग्स’ के तहत आज करीब 10 अन्य लोग रोजगार भी पा रहे हैं, जिसमें कुत्तों की देखरेख और उनके लिए खाना बनाने वाले लोग शामिल हैं।
राकेश शुक्ला बेंगलुरु में एक सफल आईटी बिजनेस चलाते हैं, लेकिन बीते एक दशक से लोग उन्हें आवारा कुत्तों के लिए किए गए उनके सराहनीय प्रयासों के लिए अधिक जानते हैं।
आईटी क्षेत्र में काम करते हुए पैसा और शोहरत कमाने के साथ ही राकेश के भीतर उन कुत्तों के लिए लगाव बढ़ना शुरू हो गया था जो सड़कों पर यूं ही आवारा घूमा करते थे या जिन्हे किसी शारीरिक समस्या होने पर उनके मालिकों ने सड़क पर यूं ही बेसहारा छोड़ दिया था।
‘डॉग फादर’ हैं राकेश
करीब 10 साल पहले राकेश शुक्ला ने इन कुत्तों का ख्याल रखने के उद्देश्य से एक खास सैंच्युरी की स्थापना की थी, जहां आज करीब 850 से अधिक कुत्ते रहते हैं। यह खास सैंच्युरी बेंगलुरु के बाहरी छोर पर स्थित पाँच एकड़ के फार्म में स्थापित की गई है। गौरतलब है कि इस खास सैंच्युरी में इन कुत्तों के साथ 7 घोड़े और 10 गाय भी आसरा पा रही हैं।
राकेश के अनुसार उन्होंने इस आसरे को स्थापित करने के लिए अपने तीन घर और कई गाडियाँ बेच दी थीं, जिसे उन्होंने अपने बिजनेस के जरिये हुई कमाई से खरीदा था।
इन कुत्तों के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले राकेश शुक्ला को लोग आज ‘डॉग फादर’ के नाम से भी बुलाते हैं। राकेश की इस खास सैंच्युरी में सिर्फ सड़कों से रेस्क्यू कर लाये गए आवारा कुत्ते ही नहीं हैं, बल्कि यहाँ पुलिस में अपनी सेवा देकर रिटायर हो चुके कुत्ते भी रह रहे हैं।
शुरू की खास ऐप और ब्लड बैंक
आज राकेश शुक्ला की रजिस्टर्ड संस्था ‘वॉइस ऑफ स्ट्रे डॉग्स’ के तहत आज करीब 10 अन्य लोग रोजगार भी पा रहे हैं, जिसमें कुत्तों की देखरेख और उनके लिए खाना बनाने वाले लोग शामिल हैं। राकेश शुक्ला ने कुत्तों को रेस्क्यू करने के उद्देश्य से एक ऐप भी लॉन्च की है, इसी के साथ ही उन्होंने कुत्तों के लिए एक अनूठे ब्लड बैंक की भी शुरुआत की है।
आज 850 से अधिक कुत्तों को रहने का ठिकाना देने के साथ ही राकेश शुक्ला ने अब तक करीब 2 लाख से अधिक जरूरतमंद आवारा कुत्तों को मेडिकल ट्रीटमेंट उपलब्ध कराने का भी काम किया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राकेश इन कुत्तों की देखरेख के लिए हर महीने 15 लाख रुपये से अधिक खर्च करते हैं। इस सैंच्युरी की एक खास बात यह भी है कि यहाँ किसी भी जानवर को बांध कर नहीं रखा जाता है।
महामारी के साथ आगे बढ़ी पहल
कोरोना महामारी के चलते लागू हुए पहले देशव्यापी लॉकडाउन के साथ ही राकेश ने एक फंड की व्यवस्था करते हुए देश भर में एक पहल का संचालन किया जिसके उद्देश्य था कि लॉकडाउन के इस कठिन दौर में आवारा कुत्तों को भोजन मिलता रहे।
इतना नहीं फिलहाल राकेश शुक्ला आगे बढ़ते हुए उन कुत्तों को भी गोद ले रहे हैं जिनके मालिकों का कोरोना वायरस संक्रमण के चलते निधन हो गया है और अब उन कुत्तों के पास कोई आसरा नहीं बचा है। राकेश कहते हैं कि उन्होंने इन सभी कुत्तों से वादा किया है कि वे उन्हें कभी छोड़कर नहीं जाएंगे।
Edited by रविकांत पारीक