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लुधियाना के इस उद्यमी ने कैसे खड़ी की 90 करोड़ की कंपनी

लुधियाना के इस उद्यमी ने कैसे खड़ी की 90 करोड़ की कंपनी

Thursday December 20, 2018 , 6 min Read

 पैत्रक रूप से बिजनेस को काफी करीब से देखने वाले राहुल अपने पिता के बिजनेस को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते थे। उनके पिता रजनीश आहूजा ने 1968 में 2,000 रुपये लगाकर लुधियाना में ही रजनीश इंडस्ट्री की स्थापना की थी।

राहुल आहूजा

राहुल आहूजा


राहुल बताते हैं कि उनके पिता जी का पूरा ध्यान क्वॉलिटी पर रहता था। इतना ही नहीं वे प्रॉडक्ट्स बेचने के लिए खुद लोगों तक जाते थे, और ग्राहकों की राय लेते थे। बिजनेस में चार साल बिताने के बाद राहुल का मन उसी में लगने लगा। 

लुधियाना के उद्यमी राहुल आहूजा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1993 में अपने पिता का बिजनेस थाम लिया था। पैत्रक रूप से बिजनेस को काफी करीब से देखने वाले राहुल अपने पिता के बिजनेस को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते थे। उनके पिता रजनीश आहूजा ने 1968 में 2,000 रुपये लगाकर लुधियाना में ही रजनीश इंडस्ट्री की स्थापना की थी। यह कंपनी डीजल इंजेक्शन सिस्टम के कंपोनेंट्स तैयार करती है।

डीजल से चलने वाली कार से लेकर, ट्रैक्टर, ट्रेन, इलेक्ट्रिक जेनरेटर हर एक डीजल से चलने वाली मशीन में इन कंपोनेंट्स का इस्तेमाल होता है। जिस वक्त राहुल को कंपनी की जिम्मेदारी मिली उस वक्त लुधियाना में उनकी दो यूनिट्स थीं। इसी में से एक यूनिट को देखने का काम राहुल को मिला। राहुल बताते हैं, ' मेरे पिता जी ऐसे पार्ट्स बनाने के लिए मशीनरी खरीद पाने में सक्षम नहीं थे। इसलिए उन्होंने ऐसी मशीने किराए पर लीं और अपनी देखरेख में ही पार्ट्स बनाने शुरू किये।'

राहुल बताते हैं कि उनके पिता जी का पूरा ध्यान क्वॉलिटी पर रहता था। इतना ही नहीं वे प्रॉडक्ट्स बेचने के लिए खुद लोगों तक जाते थे, और ग्राहकों की राय लेते थे। बिजनेस में चार साल बिताने के बाद राहुल का मन उसी में लगने लगा। वे इस काम में इतने व्यस्त हो गए कि हर वक्त उन्हें कंपनी की ही फिक्र लगी रहती। वे कहते हैं, 'पिता द्वारा खड़ी की गई कंपनी में काम करते हुए मुझे अच्छा लग रहा था। इसी दौरान मैंने एक आर्टिकल पढ़ा जिसमें जेआरडी टाटा के बारे में लिखा हुआ था कि उन्होंने एयर इंडिया से बहुत प्रेम था क्योंकि उन्होंने इसे खुद स्थापित किया था।'

इस बात ने राहुल को इतना प्रेरित किया कि वे भी खुद का कुछ स्थापित करने के बारे में सोचने लगे। वे कहते हैं कि मैं कुछ ऐसा बनाना चाहता था जिस पर मैं गर्व कर सकूं। इसके बाद रजनीश इंडस्ट्री में एक्सपोर्ट विंग की स्थापना हुई जिसका नाम रखा गया- रजनीश इंटरनेशनल। इसके पहले तक रजनीश इंडस्ट्रीज के बने पुर्जे केवल भारत में ही बिकते थे। 1999 में कंपनी ने विदेशों तक अपनी पहुंच बनाई। आज यह कंपनी 50 से अधिक देशों में अपने पुर्जे भेजती है और इसका सालाना टर्नओवर 90 करोड़ रुपये है। कंपनी में फिलहाल 800 लोग काम कर रहे हैं।

राहुल बड़े गर्व के साथ कहते हैं, 'भारत में डीजल से चलने वाली कोई भी मशीन आप ले लीजिए, 99 फीसदी मशीनों में रजनीश इंडस्ट्रीज के पुर्जे लगे होंगे।' हर एक बिजनेस में संघर्ष और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। राहुल को भी कई तरह की चुनौतियां झेलनी पड़ीं। खासतौर पर दूसरी कंपनियों से कॉम्पिटिशीन। 2002 के दौर को याद करते हुए वे बताते हैं कि उस वक्त कॉमन रेल डायरेक्ट इंजेक्शन सिस्टम (CRDi) आ गया था। इस बात से उन्हें चिंता होने लगी क्योंकि उनकी कंपनी पर इससे खतरा आ सकता था।

वे बताते हैं, 'इस तकनीक से गुजरने पर मुझे लगा कि अभी तक अवश्यंभावी रूप से जो चल रहा है यह पुराना होने वाला है। लेकिन मैंने सोचा कि चिंता से कोई हल निकलने वाला नहीं है।' इसके बाद राहुल ने इटली की एक कंपनी के साथ साझेदारी की और कुछ मशीनें वहां से मंगवाईं। इसके बाद उन्होंने रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन (DRDO) के कुछ पुराने रिटायर हो चुके इंजीनियरों को नौकरी पर रखा। उन्हीं की बदौलत आज राहुल ऐसी मशीनें अपने वर्कशॉप में बनाते हैं और पूरे भारत में उनकी बिक्री होती हैं।

राहुल कहते हैं, 'हमें नियमित तौर पर ऑटोमेशन और रिसर्च एंड डेवलपमेंट क्षेत्र में निवेश करते रहना चाहिए इससे हमें काफी अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। हमने दोनों के लिए अलग-अलग बजट निर्धारित किया है। यही वजह है कि हम बाकी कंपनियों से हमेशा आगे रहते हैं।' हालांकि राहुल यह भी कहते हैं कि लुधियाना में स्किल्ड लेबर और योग्य पेशेवर लोगों की काफी कमी है, इस वजह से काफी दिक्कतें भी आती हैं।

इस दिक्कत के पीछे राहुल तीन वजहें बताते हैं। पहला, पंजाब की नई पीढ़ी इंडस्ट्री में काम करने से कतराती है। दूसरा, बिहार और उत्तर प्रदेश से अब उतने लोग नहीं आते जितना कि पहले लोग आया करते थे। तीसरा मनरेगा जैसी योजनाओं की वजह से ग्रामीण आबादी का पलायन थोड़ा कम हुआ है। इस वजह से भारी उद्योग क्षेत्र में लेबर की काफी कमी महसूस की जा रही है। हालांकि राहुल नई मशीनों में काफी पैसा खर्च कर रहे हैं, लेकिन उन्हें चलाने के लिए भी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

एक और चुनौती के बारे में बताते हुए राहुल कहते हैं कि अब इलेक्ट्रिक कारों का जमाना आ रहा है और आने वाले 20-30 सालों में सड़कों पर इनकी काफी तादाद देखने को मिल सकती है। ऐसे में डीजल से चलने वाली कारों में कमी आने की संभावना है। इसीलिए उन्होंने हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में भी निवेश शुरू कर दिया है। वे कहते हैं कि पंजाब में टूरिज्म क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं जिनका दोहन अभी बाकी है। नए उद्यमियों को सलाह देते हुए राहुल कहते हैं कि नए उद्यमियों को लागत में कटौती पर ध्यान रखना चाहिए तभी सफलता मिलेगी। राहुल ने जब एक्सपोर्ट का बिजनेस शुरू किया था तो उन्होंने लागत पर खास ध्यान दिया।

लागत के अलावा वे अच्छी टीम बनाने में भी यकीन रखते हैं। उनका मानना है कि अगर एक अच्छी टीम बना ली जाए तो फिर बिजनेस का विस्तार आसानी से किया जा सकता है। वे कहते हैं, 'आखिर काम तो टीम को ही करना पड़ता है। अगर आप उनका ध्यान रखेंगे तो वे आपका भी ध्यान रखेंगे।'

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