दुनिया के पहले सोलर कोऑपरेटिव मॉडल ने बदल दिया गुजरात का गांव, किसानों की जिंदगी बनी खुशहाल
गुजरात के जिस गाँव में किसान तरसते थे पानी के लिए, वहां इस चीज़ ने बदल दिया उनका जीवन...
गुजरात के खेड़ा जिले के ढूंडी गांव में कभी किसान पानी के लिए डीजल इंजन पर निर्भर रहा करते थे और इससे सिंचाई करना काफी महंगा भी पड़ता था। लेकिन बीते दो सालों से यहां कॉओपरेटिव सोलर पावर प्लांट लग जाने से काफी बदलाव आया है। अब किसानों को डीजल इंजन की तुलना में आधी कीमत पर पानी मिल जाता है और जिनके पास सोलर पावर प्लांट है उन्हें इससे अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती है।
गुजरात का वो गांव, जहां अब 50 फीसदी खेतों की सिंचाई सोलर प्लांट के जरिए ही होती है। गांव में कई सारे सोलर उद्यमी बन गए हैं। कुछ किसान अतिरिक्त बिजली को 7 रुपये प्रति यूनिट में बेचते हैं। हर दिन वे लगभग 50-60 किलोवॉट सोलर पैनल से उत्पादित बिजली बेच देते हैं।
गुजरात के खेड़ा जिले के ढूंडी गांव में कभी किसान पानी के लिए डीजल इंजन पर निर्भर रहा करते थे और इससे सिंचाई करना काफी महंगा भी पड़ता था। लेकिन बीते दो सालों से यहां कॉओपरेटिव सोलर पावर प्लांट लग जाने से काफी बदलाव आया है। अब किसानों को डीजल इंजन की तुलना में आधी कीमत पर पानी मिल जाता है और जिनके पास सोलर पावर प्लांट है उन्हें इससे अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती है। गर्मी के महीने में यहां लोगों में त्राहि मच जाती थी। जानवरों के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाता था। लेकिन अब यह गांव मॉडल सोलर विलेज बन गया है।
द हिंदू के मुताबिक यहां के किसान सोलर पावर प्लांट के जरिए सिंचाई करते हैं और बाकी बची बिजली को मध्य गुजरात विज लिमिटेड को बेच देते हैं। इलाके में लगभग 450 किसान ऐसे हैं जो आधे कीमत पर पानी खरीदते हैं। अब 50 फीसदी खेतों की सिंचाई सोलर प्लांट के जरिए ही होती है। गांव में कई सारे सोलर उद्यमी बन गए हैं। कुछ किसान अतिरिक्त बिजली को 7 रुपये प्रति यूनिट में बेचते हैं। हर दिन वे लगभग 50-60 किलोवॉट सोलर पैनल से उत्पादित बिजली बेच देते हैं। अधिकतर किसानों ने लोन लेकर सोलर प्लांट लगवाया था। उन्होंने अब आमदनी होने के बाद अपना लोन भी चुका दिया है।
गांव के किसान सिर्फ पानी और बिजली बेचकर ही 30,000 रुपये से लेकर 1,30,000 रुपये कमा ले रहे हैं। यानी हर महीने कम से कम 2,000 रुपये। यह कॉओपरेटिव 2016 में इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट द्वारा स्थापित किया गया था। सोलर पैनल लग जाने से किसान आत्मनिर्भर बन गए हैं। किसानों की फसलें भी अब और बेहतर हो रही हैं। अधिकतर गांव वालों की जिंदगी बदल रही है। गांव की व्यवस्था पटरी पर आ गई है।
गांव के सोलर उद्यमी और ढूंडी सौर ऊर्जा उत्पादक सहकारी मंडली के सेक्रेटरी प्रवीण कुमार की पत्नी दक्षा ने बताया कि कुछ साल पहले उन्हें कपड़े धोने के लिए एक किलोमीटर पैदल चलकर नहर तक जाना पड़ता था। हैंडपंप भी काफी दूर थे। इसलिए पीने के पानी के लिए दिक्कत होती थी। लेकिन अब इन सबके पास में ही पानी की सुविधा हो गई है। इतना ही नहीं अब उनके घर में टीवी आ गया है जिससे वे अपना मनपसंद प्रोग्राम भी देख सकती हैं। प्रवीण ने सोलर पैनल से हुए फायदे से कुछ गाय और भैसें भी खरीद ली हैं जिनका दूध बेचकर उन्हें हर रोज 500-600 रुपये मिल जाते हैं।
पहले गांव में 49 डीजल से चलने वाले पंप थे, लेकिन अब उनकी संख्या घटकर 30 पर आ गई है। IWMI से जुड़कर काम करने वाले सीनियर फेलो तुशार शाह कहते हैं कि सिर्फ दो सालों में ही ढूंडी गांव की तस्वीर बदल गई है। इसी तरह आनंद जिले में मुजकुवा गांव को बदला जा रहा है। पूरे देश में 2 करोड़ डीजल और इलेक्ट्रिक पंप हैं। जिनसे बिजली की काफी खपत होती है। इन्हें सोलर पंप से बदला जाए तो ऊर्जा की कमी को दूर किया जा सकता है और देश की अर्थव्यवस्था को नया रूप दिया जा सकता है। सोलर पंप पूरी तरह से नवीकरणीय होते हैं इसलिए इससे किसी तरह का प्रदूषण भी नहीं होता।
यह भी पढ़ें: 16 साल की लड़की ने दी कैंसर को मात, एक पैर के सहारे किया स्टेज पर डांस