जेनेरिक दवाओं से मरीजों को जेब ढीली करने से बचा रहा मुंबई का यह प्राइवेट अस्पताल
घाटकोपर इलाके में स्थित हिंदूसभा अस्पताल ऐसा पहला प्राइवेट अस्पताल है जहां जेनेरिक दवाएं ही मिलेंगी। जेनेरिक दवाओं का भी उतना ही असर होता है लेकिन इससे मरीजों की जेब पर कम भार पड़ता है, यानी ये दवाएं सस्ती होती हैं।
टीकोबायोटिक एक ऐसी दवा है जिसका इस्तेमाल इन्फेक्शन के उपचार में किया जाता है। इस दवा को ब्रांडेड कंपनियों द्वारा 2,227 रुपये में बेचा जाता है, वहीं जेनेरिक रूप से इसकी कीमत सिर्फ 940 रुपये होती है।
बीते दिनों केंद्र सरकार ने मेडिकल स्टोर्स और अस्पतालों को जेनेरिक दवाओं को प्रोत्साहित करने का आदेश दिया था, लेकिन अधिकतर प्राइवेट मेडिकल स्टोर्स द्वारा इस फैसले का विरोध किया गया। मुंबई में एक चैरिटेबल हॉस्पिटल है जो अब पूरी तरह से जेनेरिक दवाएं देता है। घाटकोपर इलाके में स्थित हिंदूसभा अस्पताल ऐसा पहला प्राइवेट अस्पताल है जहां जेनेरिक दवाएं ही मिलेंगी। जेनेरिक दवाओं का भी उतना ही असर होता है लेकिन इससे मरीजों की जेब पर कम भार पड़ता है, यानी ये दवाएं सस्ती होती हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक बीते 15 अगस्त से एचजे दोशी घाटकोपर हिंदूसभा अस्पताल में जेनेरिक दवाएं मिल रही हैं। तब से अस्पताल में दवाओं की बिक्री में काफी उछाल हुआ है। अब फार्मेसी में 34 लाख रुपये की रिकॉर्ड बिक्री हुई। अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि अगर यही दवाएं किसी ब्रांडेड कंपनी की होती तो 1.58 करोड़ रुपये का खर्च आता। 2017 में, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने डॉक्टरों से दवाइयों के सामान्य फॉर्म्यूलेशन को निर्धारित करने के लिए एक अधिसूचना जारी की थी। लेकिन कम लागत के बावजूद, डॉक्टर सामान्य दवाओं के साथ गुणवत्ता मानक मुद्दों का हवाला देते हुए उन्हें निर्धारित नहीं करते हैं।
जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के बीच दाम में काफी अंतर होता है और कुछ मामलों में यह अंतर 90 प्रतिशत तक हो जाता है। उदाहरण के तौर पर किसी ब्रांडेड कंपनी की एंटीबायटिक मेरोपिनम दवा का दाम 1,800 रुपये है वहीं यही दवा का जेनेरिक 200 रुपये से ज्यादा नहीं होगा। टीकोबायोटिक एक ऐसी दवा है जिसका इस्तेमाल इन्फेक्शन के उपचार में किया जाता है। इस दवा को ब्रांडेड कंपनियों द्वारा 2,227 रुपये में बेचा जाता है, वहीं जेनेरिक रूप से इसकी कीमत सिर्फ 940 रुपये होती है। इतना ही नहीं जो सैलाइन ड्रिप ब्रांडेड कंपनियों द्वारा 125 रुपये में बेची जाती है उसका जेनेरिक दाम सिर्फ 50 रुपये होता है।
हिंदूसभा अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ वैभव देवगीरकर ने कहा, 'अक्सर मरीज दवाओं के दाम में कटौती की गुहार लगाते हैं, क्योंकि मंहगी दवाओं का भार काफी अधिक होता है। अगर आप देखें तो अस्पताल का चार्ज सिर्फ 20 प्रतिशत होता है, वहीं बाकी पैसा दवाओं के बिल पर खर्च हो जाता है।' अस्पताल में जेनेरिक मेडिकल स्टोर का प्रबंधन करने वाले दीपक पाथडे बताते हैं कि अब मरीजों के पास जेनेरिक दवाओं का अच्छा विकल्प है। इन दवाओं का दाम काफी कम होता है इसलिए कई लोग इस गलतफहमी में पड़ जाते हैं कि इसका असर कम होगा या इन की गुणवत्ता कम होगी, लेकिन ऐसा नहीं होता।
केआईएम अस्पताल में डीन और बृहन्मुंबई नगर निगम में मेडिकल एजुकेशन के चीफ अविनाश सुपे ने कहा कि यदि जेनेरिक दवा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानदंडों के अनुसार है, तो यह ब्रांडेड दवाओं की तरह ही काम करेगी। 184 बिस्तर वाले हिंदूसभा अस्पताल में डॉक्टरों ने आपसी विचार विमर्श करने के बाद जेनेरिक दवाएं लिखने का फैसला किया अब इस फैसले से हजारों मरीजों को लाभ मिल रहा है। अगर बाकी मेडिकल स्टोर और प्राइवेट अस्पताल भी ऐसा करने लगें तो इलाज करने के लिए जेब नहीं ढीली करनी पड़ेगी।
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