"यह पहला बजट है जिसे सुन , समझ कर पैर पटकने का मन करता है। सवाल पूछने का मन करता है, भाई ! बजट तो पेश करो।"
"जाहिली और कमअकली का इससे बड़ा सबूत क्या होगा, कि सरकार बजट के बहाने पांच राज्यों में हो रहे चुनाव में अपनी ही भद्द पिटवा बैठी है।"
आनन-फानन में तैयार किया यह बजट किसी परचून की दूकान से उठाये गई पर्ची से अलग नही दिखा। सबसे मजेदार बात यह है, कि ये सरकार जिन वादों को लेकर जनता के सामने गयी थी और जनता ने उसे इस विश्वास पर वोट दिया कि उसके सपने को यह सरकार पूरा करेगी। लेकिन ढाई साल के अपने कार्यकाल में इस सरकार ने न केवल उन बिंदुओं को फ़ालतू समझा, बल्कि उस पर बात तक करने को तैयार नहीं- मसलन महंगाई, बेरोजगारी, कालाधन की वापसी, सीमा पर आतंकवाद का खात्मा आदि। वित्तमंत्री अरुण जेटली नेअपने बजट में इनका ज़िक्र तक नही किया।
"वित्तमंत्री ने एक घटिया दर्जे का जुमला ज़रूर छोड़ा है कि इस सरकार ने पिछले साल देश में कुल पांच लाख तालाब बनवाये हैं, इस साल भी पांच लाख तालाब बनेंगे। आंकड़े बताते हैं देश में कुल ढाई हजार शहर हैं और पौने छ: लाख गाँव।"
आज इस सरकार के पास इतनी भी सोच नहीं है, कि इन मुद्दों को किस उपाय से सुलझाया जाये। ज़रुरी ज़रूरियात की चीजों के दाम जिस तरह से ऊपर भाग रहे हैं और आम जन, मजबूर, मजदूर इससे त्रस्त हैं। उस पर वज़ीरे खजाना जनाब जेटली ने चुप्पी साध ली है।
इसी तरह नोटबंदी जो इस बजट का मुख्य हिस्सा बनना चाहिए थी, उस पर वित्तमंत्री ने एक शब्द भी नहीं बोला। वित्तमंत्री ने एक हास्यास्पद दर्जे का जुमला ज़रूर छोड़ा है, कि इस सरकार ने पिछले साल देश में कुल पांच लाख तालाब बनवाये हैं, इस साल भी पांच लाख तालाब बनेंगे। आंकड़े बताते हैं देश में कुल ढाई हजार शहर हैं और पौने छ: लाख गाँव।
"आबादी और ज़मीन के बंटवारे का खाका अगर सरकार देख लेती तो शायद ऐसी हास्यास्पद घोषणाएं न करती। शहर में आबादी का घनत्व इतना दबाव बना चुका है, कि पहले से जो मौजूद तालाब थे, वे भी अब पाट दिये गये हैं और उन पर घर बन गये हैं, बड़ी बड़ी बिल्डिंगें खड़ी हो गई है, मॉल खुल गये हैं।"
गांवों की स्थिति और भी भयावह है। कृषि क्षेत्र में आगे ज्यादा किसानों की ज़मीन पारिवारिक विघटन और बढ़ी हुई जनसंख्या के चलते ज़मीन छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट दी गई है। तालाब, गड्ढे, यहाँ तक की नदियों को भी पाट कर आवासीय कमी पूरी कर रहे हैं या फिर खेती में लग गये हैं।
सब मिला कर देखा जाये, तो वित्त मंत्री के बजट में कई चीजे हैं लेकिन बजट ही नही है और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है वो आम आदमी, जिसकी एक समय की रोटी का तो जुगाड़ हो जाता है, लेकिन दूसरे समय की रोटी के लिए उसे हर दिन जद्दोज़हद करनी पड़ती है।