बेंगलुरु के स्टार्टअप की कारगर तकनीक, मशीन खराब होने से पहले मिलेगा संकेत
एक ऐसा स्टार्टअप, जो मशीन में खराबी का पूर्वानुमान लगाने के साथ-साथ बचायेगा उसके नुकसान से...
विस्तृत आईटी सेक्टर और उसमें प्रतिभाशाली युवाओं की बहुतायत के बावजूद, दुनिया की सबसे उम्दा आईटी कंपनियों की दौड़ में भारत पिछड़ जाता है। इसके पीछे कई अहम वजहें हैं। खैर, इस क्षेत्र में काम कर रही दर्जनों स्टार्टअप कंपनियां ऐसी हैं, जिनमें आगे बढ़ने की बेहतरीन क्षमता है। बेंगलुरु स्थित ऐसा ही एक स्टार्टअप है ‘पेटासेंस’, जो मशीन में खराबी का पूर्वानुमान लगाता है और नुकसान होने से भी बचाता है, आईये जानें इसके बारे थोड़ा और करीब से...
आमतौर पर किसी भी प्लांट या फैक्ट्री में मशीनों की मरम्मत तब होती है, जब उनमें कोई खराबी आ जाती है। इस वजह से काम में रुकावट पैदा होती है। पेटासेंस की मदद से आप पहले ही पता लगा सकते हैं कि मशीन में कब खराब आ सकती है और किसी भी तरह की बाधा से बचा जा सकता है।
अभिनव कुशराज और अरुण सांथेबेनर ने 2014 में अपने स्टार्टअप "पेटासेंस" की शुरूआत की थी। इस स्टार्टअप की अवधारणा ब्लड सुगर और प्रेशर नापने वाली मशीनों जैसी ही है, जिनकी मदद से हम अपनी सेहत का ख्याल रखते हैं और अपनी फिटनेस का ध्यान रखते हैं। ठीक इसी तरह पेटासेंस भी लर्निंग सेंसर्स की मदद से मशीनों की सेहत का ख्याल रखता है। कंपनी अपने उत्पाद लर्निंग सेंसर्स में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों ही का इस्तेमाल करती है। सेंसर्स की मदद से मशीनों के वाइब्रेशन की जांच करके यह पता लगाया जा सकता है, किस वक्त पर उन्हें देखरेख की जरूरत है।
आमतौर पर किसी भी प्लांट या फैक्ट्री में मशीनों की मरम्मत तब होती है, जब उनमें कोई खराबी आ जाती है। इस वजह से काम में रुकावट पैदा होती है। पेटासेंस की मदद से आप पहले ही पता लगा सकते हैं कि मशीन में कब खराब आ सकती है और किसी भी तरह की बाधा से बचा जा सकता है। हर मशीन वाइब्रेशन पैदा करती है। किसी भी तरह की खराबी आने पर मशीन के वाइब्रेशन में अंतर का पता लगाया जा सकता है।
अभय और अरुण दोनों के पास लंबा कॉर्पोरेट अनुभव है। 48 वर्षीय अरुण पहले भी कई स्टार्टअप्स खड़े कर चुके हैं, जैसे कि रिजॉल्विटी, वॉइसगेन और आई-सेवा। वह आईआईटी-बॉम्बे और आईआईटी-कोलकाता से पढ़ चुके हैं। वहीं 41 साल के अभिनव बिट्स-पिलानी के पूर्व छात्र हैं। एक दशक तक कॉर्पोरेट जगत से जुड़े रहने के बाद अभिनव ने इस स्टार्टअप की शुरूआत की।
दोनों की मुलाकात 2013 में एक कॉमन फ्रेंड के जरिए हुई। दोनों एक दूसरे के विचारों से प्रभावित हुए और उनकी दोस्ती गहरी हो गई। पेटासेंस के डिवेलपमेंट की जद्दोजहद जनवरी, 2014 से शुरू हुई थी। दो साल की मेहनत के बाद मई, 2016 में प्रोडक्ट लाइव हो सका।
वाइब्रेशन डेटा पर काम करने वाला पहला स्टार्टअप
पेटासेंस के संस्थापकों का कहना है कि कई आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) कंपनियां ऐसी हैं, जो डेटा के आधार पर मशीन का परीक्षण करती हैं और मूविंग पार्ट्स के आधार पर मशीन में खराबी की पूर्वसूचना देती हैं। गौरतलब है कि पेटासेंस से पहले किसी भी तकनीक ने इस काम के लिए वाइब्रेशन डेटा का इस्तेमाल नहीं किया। हर मशीन से हीट, नॉइस और वाइब्रेशन पैदा होता है, लेकिन किसी भी कंपनी ने इस डेटा सेट पर ध्यान ही नहीं दिया।
अब पेटासेंस बैटरी से चलने वाली आईओटी डिवाइस की सुविधा देता है, जिसे मशीन के साथ फिट किया जाता है। यह डिवाइस, माइक्रोसॉफ्ट ऐज्योर क्लाउड को डेटा भेजता है। इसके बाद, जिन मशीनों को तुरंत मरम्मत की जरूरत है, उनकी जानकारी फैक्ट्री टीम को भेजी जाती है।
पेटासेंस की वर्किंग
पेटासेंट, एक इंटीग्रेटेड हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर सिस्टम पर काम करता है। इस सिस्टम में वायरलेस वाइब्रेशन सेंसर्स, कलाउट सॉफ्टवेयर और मशीन-लर्निंग ऐनालिटिक्स मौजूद हैं।
पेटासेंस, 4 चरणों में काम करता है:
कनेक्ट: मशीन में पेटासेंस मोट्स इन्सटॉल होने के बाद बिना वायर के वाइब्रेशन डेटा लिया जा सकता है।
कनेक्ट: वाइब्रेशन डेटा को पेटासेंस क्लाउड में एंटरप्राइज ग्रेड सिक्यॉरिटी के साथ स्टोर किया जाता है।
ऐनालाइज: सेंसर डेटा की जांच के बाद मशीन की हेल्थ का पता लगाया जाता है।
मॉनिटर: मशीन के रियल टाइम ऐक्सेस के बाद किसी ब्राउजर या मोबाइल डिवाइस पर उसकी हेल्थ प्रोसेसिंग होती है।
इस उत्पाद का इस्तेमाल पावर जेनरेशन, ऑयल और गैस, फार्मास्यूटिकल्स, बिल्डिंग्स ऐंड फैसिलिटीपेटासेंसज और फूंड ऐंड बेवरेज इंडस्ट्री में हो सकता है। पेटासेंस के पास 15 लोगों की टीम है, जिसके पास डेटा साइंस और मशीन लर्निंग का लंबा अनुभव है।
पेटासेंस का रेवेन्यू मॉडल
पेटासेंस सालाना लाइसेंस फी लेता है और साथ ही, मेनटेनेंस के लिए चार्ज करता है। कंपनी अपने बिजनस मॉडल पर काम कर रही है और वाइब्रेशन सेंसर तकनीक को और अधिक विकसित करने की कोशिश में लगी हुई है।
पेटासेंस, डेटा साइंस और सॉफ्टवेयर के सहयोग से काम करता है। कंपनी, 200 प्लान्ट्स में 20 से ज्यादा क्लाइंट्स के साथ काम कर रही है। 2016 में ट्रू वेंचर्स और फेलिसिस वेंचर्स से उन्हें 1.8 मिलियन डॉलर की राशि मिली।
भविष्य की संभावनाएं
नैसकॉम और डेलोइट की रिपोर्ट के मुताबिक इस क्षेत्र में क्रांति के संकेत हैं और 60 मिलियन आईओटी डिवाइसेज का हालिया आंकड़ा 1.9 बिलियन डिवाइसेज तक पहुंच सकता है। अगर ऐसा होता है तो 2025 तक, पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रहीं आईओटी डिवाइसेज का 10 प्रतिशत अकेले भारत में होगा। मार्केट साइज की बात करें तो इस समय तक ग्लोबल रेवेन्यू 3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुका होगा और इसका 0.40 प्रतिशत अकेले भारत के पास होगा।
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