'फिक्सोफी' पर सबकुछ ‘फिक्स’ होता है
प्लंबिंग, बढ़ई, पेंटिंग और इलेक्ट्रिकल हर काम होता है यहांआप यहां आइए सर्विस प्रोवाइडर जाएगा आपके घरफिलहाल बेंगलोर में दे रहे हैं सेवायहां 10 सेकंड में होती है बुकिंग30 मिनट में कस्टमर को मिल जाता है सर्विस प्रोवाइडर
एक शर्मीले और नवविवाहित प्लंबर नसरुल्लाह का कहना है, “पहले मैं कई जगहों पर जाकर काम किया करता था।” स्टार्टअप्स में एक अद्वितीय क्षमता है कि वो अपने साथ विभिन्न आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों को जोड़ लेता है, और नसरुल्लाह इसका एक जीता-जागता सबूत है। कुछ हफ्ते पहले, उसने बैंगोलर में सेवा मुहैया कराने वाला समूहक फिक्सोफी ज्वाइन करने का फैसला किया था। नसरुल्लाह कहता है, “मैंने छह महीने का एक करार किया था। अगर ये मुझे कारोबार मुहैया कराएगा तो मैं खुश होउंगा। हमें बस इतना करना है कि हमें अपना काम ठीक से करना है और ग्राहकों को खुश करना है।”
फिक्सोफी का सफर पिछले साल सितंबर में तब शुरू हुआ जब इसके संस्थापक मयूर मिश्रा अपने घर पर कुछ मरम्मत करने के लिए मजदूर तलाशने में परेशान हो गए। उन्होंने बताया, “ये उन लोगों के लिए भी एक बड़ी चुनौती है, जो किसी एक शहर में दस साल से ही क्यों न रह रहे हों, जबकि ये हर घर की जरुरत है।”
एक महीने की मेहनत के बाद जनवरी, 2015 में फिक्सोफी ने सरजापुर में एक कार्यालय की शुरुआत की। मार्च तक इन लोगों ने अपने काम की शुरुआत कर दी और अप्रैल के अंत तक इन्होंने अपना काम कोरामंगला तक फैला लिया। शशांक पेरी और शिवनारायण कार्तिक को अपनी मुख्य टीम में शामिल करने वाले मयूर का कहना है, “एक बार हमने जब अपनी धारणा को साबित कर दिया तो उसे दोहराना बेहद आसान हो गया।” आरटी नगर अगला इलाका था जिस पर इनकी नजर थी। उन्होंने बताया, “अब उनके पास गुड़गांव में एक ऑपरेशन मैनेजर है जो इस जुलाई में एनसीआर में फिक्सोफी को लॉन्च करने में मदद करेगा।”
मयूर ने बताया कि उनकी समस्या रोज-मर्रा के घरेलू काम कराने के लिए ऑनलाइन मार्केटप्लेस की अनुपल्बधता नहीं थी, बल्कि उनके लिए समस्या मिलने वाली सेवा की क्वालिटी थी। इस क्षेत्र में पहले से ही कई स्थापित ब्रांड मौजूद हैं, जैसे हॉनेस्टकॉलर्स, डोरमिंट, बुकमाईबाई, ईजीफिक्स, टास्कबॉब, जेप्पर और टाइमसेवर्ज।
मयूर के मुताबिक, फिक्सोफी इनसे काफी अलग है, क्योंकि यहां सिर्फ 10 सेकेंड में बुकिंग की जा सकती है और एक ग्राहक को सेवा मुहैया कराने वाले से जोड़ने में 30 मिनट लगते हैं। वो बताते हैं, “हमारा पूरा ध्यान बैकएंड इकोसिस्टम को इतना मजबूत बनाना है जिससे कि सेवा मुहैया कराने वालों से तुरंत संपर्क हो और उन्हें ग्राहकों के साथ जल्द से जल्द कनेक्ट कर सकें।” प्रत्येक सेवा मुहैया कराने वाले को कई स्तर के साक्षात्कारों से गुजरना पड़ता है और उनके पास कम से कम पांच साल के काम का अनुभव होना जरूरी होता है। फिक्सोफी ने प्रति घंटे के हिसाब से कोई दर तय नहीं कर रखी है, ऐसे में सेवा मुहैया कराने वालों को अपनी कीमत तय करने में आसानी होती है। मयूर बताते हैं, “चूंकि उन्हें नए ग्राहकों की जरुरत है, ऐसे में ये उनके लिए कमाई बढ़ाने वाला प्लेटफॉर्म है। इसलिए फिक्सोफी उनके लिए आदर्श प्लेटफॉर्म है। ईमानदारी से कहूं तो हमारे दिमाग में एक मानक दर तय करने का विचार था, लेकिन सेवा का स्तर इतना अलग-अलग है कि ऐसा कर पाना असंभव था। कई बार ऐसा होता था कि जो समस्या सोची गई थी, असल में वो कोई और समस्या ही निकलती थी, और सिर्फ कुछ खास सेवा मुहैया कराने वाले ही वैसी समस्या का समाधान करते हैं। जहां तक डेलिवरी का सवाल है तो दोनों ही पक्षों का खुश होना जरूरी है, इसलिए सेवा मुहैया कराने वाले खुद अपने काम की कीमत बताते हैं।”
फिक्सोफी का अगला लक्ष्य अपने काम को जितना हो सके स्वाचालित करने का है। मयूर कहते हैं, “अब तक हमारे सारे तकनीकी काम बाहर से कराए जाते हैं, लेकिन अब हम चाहते हैं कि हमारी अपनी तकनीकी टीम ही बैकएंड का काम संभाले।” मयूर का मानना है कि काम में जितना इंसानी योगदान घटेगा, ग्राहकों को सेवा मुहैया कराने वाले से कनेक्ट करने में उतना ही कम वक्त लगेगा। फिक्सोफी प्लंबिंग, बढ़ई, पेंटिंग और इलेक्ट्रिकल (इनमें घरेलू उपकरण और लैपटॉप मरम्मत भी शामिल हैं) सेवाएं मुहैया कराती है। फिलहाल ये सीमित है, लेकिन मयूर चाहते हैं कि धीरे-धीरे इसे बिना गुणवत्ता से समझौता किए दूसरे हाउसहोल्ड सर्विसेज़ जैसे, सफाई और पेस्ट कंट्रोल में भी फैलाया जाए। फिक्सोफी से जुड़े सेवा मुहैया कराने वाले अभी से ये कहने लगे हैं कि उनके कारोबार में फायदा हुआ है, उन्हें कम से कम हर रोज तीन नए ग्राहक मिल रहे हैं, जो इनके लिए अच्छी बात है।
फिक्सोफी का सफर खुद बिना चुनौती के नहीं रहा है। एक तरफ जहां एक अव्यवस्थित सेक्टर को स्टार्टअप के साथ जोड़ना बड़ी मुश्किल थी, वहीं दूसरी ओर लोगों को इसमें शामिल करना भी कम परेशानी वाला नहीं था। आरटी नगर से संचालन करने वाले शशांक का कहना है, “मेरे लिए ये मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन मौका था। आइडिया बहुत अच्छा था, टीम बहुत अच्छी थी, हम लोगों ने इसे आगे बढ़ा ही लिया। शुरुआत में हम लोग अनुभवहीन थे, और इसलिए काफी धीमी और थका देने वाली प्रक्रिया थी, लेकिन हमने अपनी गलतियों से सीखा व आगे बढ़ते रहे।”
बेहद प्रतियोगिता वाले इस समय में किसी कारोबार को स्थापित करना काफी मेहनत का काम है, इसी को देखते हुए आईआईटी-हैदराबाद में इंटर्न पार्थ श्रीवास्तव कहते हैं, हम लोगों ने पहले दिन से सीखना शुरू कर दिया था। मैंने मार्केटिंग पोजिशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन मैं ऑपरेशंस, फाइनेंस और ऑन-फील्ड काम भी करता था। यहां मैंने समझा कि कैसे शुरुआत से एक कंपनी को चलाया जाता है। हम लोग रात के 10 बजे तक दफ्तर में रहते थे, लेकिन मैं काम का लुत्फ उठाता था।
किसी भी दूसरे स्टार्टअप की तरह, फिक्सोफी भी फंडिंग की तलाश में है और ये अपने कारोबार की बारीकियों का खुलासा करने में थोड़ा संकीर्ण है। फिक्सोफी कितना अच्छा कारोबार करेगी, ये बाजार में क्या नई चीजें लेकर आएगी, और ये अपने प्रतियोगियों के सामने कितना अलग खड़ी होती है, ये सब तो भविष्य में ही पता चलेगा। अभी के लिए, इनके पास बैंगलोर वासियों की सेवा करने के लिए एक वेबसाइट और ऐप है। अच्छी सेवा देने वालों की तलाश एक लगातार और मुश्किल वाला काम है – इनमें से ज्यादातर जावेद की तरह स्वतंत्र रूप से काम करने वाले हैं। जावेद चार साल के बच्चे के पिता हैं। वो कहते हैं, “मैं फिक्सोफी से नहीं जुड़ता अगर ये मुझे फायदा नहीं पहुंचाता। हमारे जैसे लोगों के लिए ये काफी मायने रखता है।” थोड़ा दार्शनिक बनते हुए वो कहना जारी रखते हैं, “हर पेड़ जो बढ़ना चाहता है उसे एक संभाले रखने के लिए एक जड़ की जरुरत होती है।” इस कारोबार में 22 साल तक बिताने के बाद उन्हें पूरा भरोसा है कि ग्राहक उन्हें हमेशा बुलाएंगे चाहे वो बैंगलोर में रहें या फिर चेन्नई में जहां उन्होंने नौकरी भी की है। वो आगे बताते हैं, “मैं फिक्सोफी के साथ दो-तीन महीनों से काम कर रहा हूं और ये अच्छा रहा है।” जावेद ने सिर्फ पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है और उसने अलग-अलग वर्कशॉप में नौकरी कर अपना काम सीखा है। उनसे जब पूछा गया कि क्या वो अपना कारोबार करना चाहते हैं, वो कंधा झाड़ते हुए कहते हैं, “हर किसी का ये सपना होता है। मैं तो बस व्यस्त रहना चाहता हूं।”