3 दोस्तों ने जिम्मा उठाया आप के कपड़ों को बेहतर रखने का, शुरू किया ‘पिक माई लॉन्ड्री’
3 IIT के छात्रों ने रखी मई 2015 में पिक माई लॉन्ड्री की नीव...
साउथ दिल्ली और गुड़गांव में दे रहे हैं सेवाएं...
तय समय पर करते हैं कपड़ों का पिक अप और डिलिवरी...
महज 6 महीने में 3 लोगों से बढ़कर 35 लोगों की हो चुकी है टीम...
एक दिन के लगभग 2500 कपड़े कर रहे हैं प्रोसेस...
अक्सर चीजें जो दूर से दिखती हैं वैसी होती नहीं है शहरों से दूर रहने वाले लोग जब शहरों में आते हैं और यहां की चकाचौंध भरी लाइफस्टाइल को देखते हैं तो उन्हें ये काफी प्रभावित करती हैं। शानदार इमारते, शॉपिंग के लिए मॉल्स, होटल्स, बड़े-बड़े पुल देखकर उन्हें लगता है कि यहां पर सब चीजें काफी व्यवस्थित ढंग से चल रही हैं लेकिन असल में ऐसा नहीं होता। शहरों में रह रहे लोगों को छोटी-छोटी सर्विसिज के लिए भी कई बार काफी परेशान होना पड़ता है। ये सेवाएं अक्सर वो होती हैं जो व्यवस्थित ढंग से नहीं चल रही होती। ऐसी ही एक सेवा है लॉन्ड्री की। जिसके लिए अमूमन हर कोई परेशान रहता है। यह सेक्टर अनऑर्गनाइज्ड है और इसमें किसी की जवाबदेही नहीं होती।
लोगों की इसी समस्या के समाधान के लिए तीन युवा गौरव अग्रवाल, समर सिसोदिया और अंकुर जैन सामने आए और काफी रिसर्च के बाद उन्होंने ‘ पिक माई लॉन्ड्री ‘ की नीव रखी। ‘ पिक माई लॉन्ड्री ’ दिल्ली और गुड़गांव में रह रहे लोगों की लॉन्ड्री संबंधी समस्या का समाधान कर रही है। गौरव, समर और अंकुर ने आईआईटी से इंजीनियरिंग की उसके बाद तीनों कॉरपोरेट में नौकरी करने लगे। लेकिन नौकरी के अलावा वे कुछ अलग करने का ख्वाब देखते थे और कुछ ऐसा काम करना चाहते थे जो नया हो, जिस काम के माध्यम से वे लोगों से सीधे जुड़ सकें, उनकी समस्याओं का समाधान कर सकें साथ ही अपने काम से देश के लिए भी कुछ जोड़ पाएं। गौरव और अंकुर उस समय उड़ीसा में नौकरी कर रहे थे वहीं समर छत्तीसगढ़ में थे। तीनों मित्रों ने रिसर्च शुरू की उन्होंने देखा कि उन्हें और उनके जैसे नौकरी पेशा लोगों को कपड़ों को धोने उन्हें प्रेस करने, ड्राइक्लीन करवाने में खासी दिक्कत आती थी ये दिक्कत लगभग हर दिन की थी। धोबी कपड़े ले जाता था लेकिन तय समय पर देने नहीं आता था। तीनों मित्रों ने सोचा जब टीयर 2 शहरों का ये हाल है जहां पर जनसंख्या कम है लोग एक दूसरे को जानते हैं तो बड़े शहरों में तो ये समस्या काफी ज्यादा होगी। उसके बाद तीनों दोस्तों ने नौकरी से कुछ दिनों की छुट्टी ली और दिल्ली का रुख किया। यहां उन्होंने कई दिनों तक रिसर्च की और पाया कि लोगों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा हैं। उसके बाद फरवरी 2015 में उन्होंने पिक माइ लॉन्ड्री का ट्रायल रन शुरू किया और मई 2015 में इन्होंने कंपनी लांच कर दी।
‘पिक माई लॉन्ड्री’ लोगों की लॉन्ड्री संबंधी सभी समस्याओं का समाधान करता है। ये कपड़ों की धुलाई, इस्त्री, ड्राईक्लीनिंग का काम करते हैं और ग्राहकों के कपड़ों को घर से ले जाना और तय समय पर डिलिवर करवाते हैं।
कंपनी के कोफाउंडर गौरव अग्रवाल बताते हैं -"हम काफी ऑर्गनाइज्ड तरीके से काम करते हैं और हमारी पूरी टीम काफी प्रोफेश्नल है जिससे लोगों को कभी किसी भी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता हम लोगों को उनके कपड़ों की डिलिवरी काफी जल्दी कर देते हैं और इसी कारण जो हमसे एक बार सर्विस लेता है वो कहीं और नहीं जाता।"
आप कंपनी की वेबसाइट में आकर, फोन करके या फिर मोबाइल एप्प के द्वारा इनसे सेवाएं लेते हैं। ऑर्डर प्लेस करने का तरीका बेहद ही आसान है।
शुरूआत में केवल 3 कोफाउंडर ही कंपनी के सारे काम किया करते थे चाहे वो लोगों की कॉल रिसीव करना हो, पैंप्लेट्स बॉटना हो, कपड़े डिलीवर करना हो, या फिर हिसाब किताब देखना हो लेकिन महज 6 महीनों में ही इनकी टीम 3 से बढ़कर 35 की हो चुकी है। शुरूआत में ये लोग लगभग 15 कपड़े एक दिन के प्रोसेस करते थे जो अब बड़ कर 2500 हो चुके हैं। कंपनी साउथ दिल्ली और गुड़गांव में ऑपरेट कर रही है।
कंपनी फिल्हाल डिजीटल मार्केटिंग पर फोकस कर रही है साथ ही जो लोग इनसे एक बार सेवाएं लेते हैं वो खुद इनकी सेवाओं के बारे में दूसरे लोगों को बताते हैं।
गौरव बताते हैं "हम लोग अपने काम से लोगों की तो समस्याओं का हल कर ही रहे हैं साथ ही सरकार को भी सर्विस टैक्स देते हैं जिससे देश को भी फायदा होता हैं आने वाले समय में हम इस सेक्टर को और ऑर्गनाइज करना चाहते हैं और अपने काम का विस्तार करना चाहते हैं केवल मुनाफा कमाना ही हम लोगों का मकसद नहीं है अगर हम अपने काम से लोगों को संतुष्ट कर पाए और देश को फायादा पहुंचा पाए तो ही हम खुद को सफल समझेंगे।"
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