Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

कला को बड़े घरों की बैठकों से गरीब की चौखट तक लाने का बीड़ा उठाया एक दंपति ने

कला को बड़े घरों की बैठकों से गरीब की चौखट तक लाने का बीड़ा उठाया एक दंपति ने

Tuesday October 20, 2015 , 6 min Read

महात्मा गांधी देश को जानने के लिए देश भर में घूमने की बात कहते थे, और उस दौर में लोगों ने उनकी बात मानी भी. ये बात पिछली शताब्दी की है. इक्कीसवीं सदी में युवाओं ने इसमें एक बात और जोड़ दी. देश नहीं बल्कि खुद को बेहतर तरीके से जानने और अपनी कला को बेहतर बनाने के लिए देशाटन करना. यात्राओं के जरिए कला को नया आयाम देने वाले ऐसे ही एक दंपति मीनाक्षी और सुशील इन दिनों दिल्ली में कला पारखियों से लेकर कला के कद्रदानों का ध्यान खींच रहे हैं.

image


आम भारतीय की दिलचस्पी से लेकर करियर के विषय तक से कला भले ही बाहर हो गई हो, लेकिन कुछ लोग कला को बड़े घरों की बैठकों से गरीब की चौखट तक पहुंचाने का बीड़ा उठा रहे हैं. वे बुलेट की सवारी करते हैं. वे घरों, स्कूलों, जेलों और गांवों में जाकर कला को आम लोगों के बीच पहुंचाने की कोशिश करते हैं.

कला के बदलते हुए मायनों और करोड़ों की कलाकृतियों की खबरों के बीच ऐसे भी लोग हैं जो कला को न सिर्फ आम लोगों तक पहुंचा रहे हैं बल्कि कला को उनसे जोड़ भी रहे हैं. इस दंपति का नाम है मीनाक्षी और सुशील. दिल्ली के हैबिटैट सेंटर में मीनाक्षी और सुशील जे ने अपनी पहली प्रदर्शनी लगाई है. इस प्रदर्शनी में उन्होंने न सिर्फ कैनवास बल्कि रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाला सामान भी रखा है, जिसे मीनाक्षी ने एक कलात्मक रुप दे दिया है. ये रोजमर्रा का सामान इस दंपति ने उन लोगों से लिया है जिनके यहां देशाटन करते हुए रुककर उन्होंने पेंटिंग की है. चाहे वो एक झाड़ू हो, बांसुरी हो, पुराना कैमरा हो, कृष्ण की टूटी मूर्ति हो या फिर एक डीएसपी की टोपी हो. हर चीज की अपनी एक कहानी है. इस अनोखे कॉन्सेप्ट के बारे में मीनाक्षी बताती हैं कि कला के लिए कोई खास वर्ग नहीं है और ना ही कलाकार बनने के लिए किसी खास योग्यता की जरूरत है. कला सबके लिए और हम सभी कलाकार हैं. मीनाक्षी के मुताबिक, ‘आर्टोलॉग का कॉन्सेप्ट ये है कि हर व्यक्ति आर्टिस्ट है या उसमें आर्टिस्ट होने की संभावना है. आर्ट सिर्फ पेंट करना नहीं है बल्कि कोई अगर अच्छा खाना पकाता है तो वो भी आर्टिस्ट है. एक सर्जन जो ऑपरेशन करता है तो वो भी एक आर्टिस्ट है. हम सब आर्टिस्ट है अगर हम कोशिश करें. वे खुद को आर्ट वाले लोग कहते हैं.

हम सब कलाकार

image


मीनाक्षी कहती हैं कि एक अवधारणा बन गई है कि आम लोग आर्ट नहीं समझते हैं या आर्ट सिर्फ कुछ लोग समझ सकते हैं. इस मिथ को तोड़ने के लिए हमने कॉन्सेप्ट रखा "आर्ट फॉर ऑल" यानी कला सबके लिए.’ सुशील और मीनाक्षी की जोड़ी खास है. सुशील पेशे से पत्रकार हैं और उन्हें पढ़ना लिखना, अपनी बुलेट मोटरसाइकिल हरी भरी के साथ घूमना पसंद है. (यह नाम बुलेट के हरे रंग की वजह से पड़ा है) तो वहीं मीनाक्षी को रंगों के साथ प्रयोग करने में बेहद आनंद आता है. ब्रश और रंग के साथ मीनाक्षी अपनी कल्पनाएं दीवारों पर, कैनवास पर बिखेरती हैं. मीनाक्षी के साथ रहते रहते सुशील ने भी पेंटिंग की समझ हासिल कर ली है. सुशील कहते हैं कि, ‘मैं पेंटर नहीं हूं लेकिन मुझे मीनाक्षी की पेंटिंग्स में रुचि थी क्योंकि वो मुझे रंगों के बारे में बताती आई है. मुझे लगा जब मैं आर्ट समझ सकता हूं तो हर इंसान इसे समझ सकता है.’

image


दिलचस्प शुरूआत

अपने आप को आर्ट वाले लोग बताने वाली इस दंपति की शुरुआत भी बड़ी दिलचस्प रही. सुशील के मुताबिक इसकी शुरुआत एक रोमांटिक बुलेट राइड से हुई. वे दोनों जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय से अपनी हरी भरी बुलेट पर खाना खाकर लौट रहे थे. राइड के दौरान ही मीनाक्षी ने कहा कि वह ऐसी कोई फेलोशिप चाहती है जिसमें सिर्फ घूम घूम कर पेंट करना हो. इसके जवाब में सुशील ने कहा कि ऐसी फेलोशिप तो जरुर है लेकिन ऐसी कोई फेलोशिप नहीं जहां बुलेट से घूमने के लिए पैसे मिलते हो. उनके मुताबिक इस बात को कुछ दिन गुजर जाने के बाद दोबारा दोनों ने इस विषय पर चर्चा की. दोनों को यह विचार आया कि क्यों ना वे अपने दोस्तों के घर मिलने जाएं और वहां जाकर पेंटिंग करे और उनके अंदर पेंटिंग की समझ पैदा करे. इस तरह से उनके रहने और खाने का इंतजाम होगा और एक नया शहर भी घूम लेंगे. सुशील कहते हैं, ‘ मुझे किसी शहर में जाकर फोटो खिंचाने का शौक नहीं है. मुझे लोगों से मिलना और बातें करना पसंद है. मुझे लगा कि ये आइडिया ठीक है. मीनाक्षी पेंट करेंगी. मैं लोगों से बातें करूंगा. इसके बाद हमने कुछ लोगों से संपर्क किया और सबसे पहला काम मुंबई और गोवा में किया. उसके बाद तो कतार लग गई.’ इसी विचार के साथ सुशील और मीनाक्षी अब तक 12 राज्यों में जाकर 40 से अधिक पेंटिंग बना चुके हैं. सुशील, मीनाक्षी और हरी भरी कई हजार किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं. इनके ठिकानों में परिवारों के घर तो शामिल हैं. उसके साथ सरकारी स्कूल, निजी स्कूल, अनाथालय, जेल, पुलिस थाना, आदिवासी गांव से लेकर स्पाइनल इंज्यूरी सेंटर (ऐसे लोगों का केंद्र जहां रीढ़ की हड्डी में समस्या वाले लोग रहते हैं) से लेकर स्पेशली एबल्ड किड्स तक शामिल हैं. सुशील को बाइक चलाना और कविताएं लिखना पसंद हैं वे पेंटिंग के लिए आइडिया भी देते हैं. जिसे मीनाक्षी कैनवास पर उतार देती हैं.


image


इंडिया हैबिटेट सेंटर में इनकी पहली प्रदर्शनी को लोगों ने काफी सराहा साथ ही इनकी घुमक्कड़ी की लोगों ने खूब प्रशंसा की है. खासकर कर इनके ओपन कैनवास के आइडिया को बढ़िया प्रतिक्रिया मिली है. इस तरह की प्रतिक्रिया के बाद मीनाक्षी कहती हैं, ‘दिल्ली में हमारे कई दोस्त हैं और जान पहचान के लोग हैं जो हमारे काम के बारे में जानते थे. वो हमेशा कहते थे कि हम उनके घर जाए. अब ये संभव नहीं कि हम हर घर में जाएं. असल में दिल्ली में लोगों के पास टाइम नहीं है. वो बस कह देते हैं लेकिन हमें लगा कि कुछ लोग वाकई इससे जुड़ना चाहते हैं. इसी कारण हमने अपनी प्रदर्शनी में भी कैनवास रखा ताकि लोग आएं पेंट करें और महसूस करें कि हम क्या करते हैं. पहले हमने 25 फीट का कैनवास रखा था. हमें लगा कि ये एक महीने चल जाएगा लेकिन वो कैनवास दस दिन में भर गया तो हमें नया कैनवास खरीदना पड़ा. दूसरा भी लगभग आधा भर गया है. प्रदर्शनी को अभूतपूर्व प्रतिक्रिया मिल रही है. कुछ लोग आकर गले लगा कर जाते हैं. बच्चे पेंट कर के थैंक्यू बोलते हैं. मुझे लगता है कि हम और लोगों से जुड़ रहे हैं.’

image


मीनाक्षी और सुशील आगे भी प्रोजेक्ट को इसी तरह से चलाना चाहते हैं लेकिन उन्हें ऐसी फेलोशिप का इंतजार जिसमें उन्हें दुनिया भर में घूमकर पेंटिंग करने का मौका मिले. मीनाक्षी का फिलिस्तीन और वाघा बॉर्डर पर पेंट करना का सपना है. मीनाक्षी और सुशील कहते हैं किसी भी इलाके के आर्ट और संस्कृति के बारे में जानने का सबसे अच्छा तरीका घूमना है. साथ ही नई जगह घूमने से वे एक बेहतर इंसान और बेहतर कलाकार बन पाएंगे. दोनों मानते हैं फिलहाल उन्हें किसी तरह की वित्तीय मदद नहीं मिल रही है लेकिन अगर किसी के यहां पेंटिंग के बदले कुछ पैसे मिल जाते हैं तो वे मना नहीं करते.