The Art of Happiness: खुशी और खुश रहने के बारे में दलाई लामा के कीमती सीख बताती ये किताब
The Art of happiness नाम कि इस प्रेरणादायक किताब को मनौवैज्ञानिक डॉक्टर हावर्ड बटलर ने दलाई लामा के साथ अपने अनुभवों के आधार पर लिखा है. दलाई लामा ने पूरी किताब में आंतरिक अनुशासन पर काफी जोर दिया है और बताया है कि किस तरह खुश रहने के लिए ये सबसे जरूरी कला है, जो हमें आनी चाहिए.
हर इंसान को हमेशा खुश रहना चाहिए ये तो हम अक्सर सुनते हैं. लेकिन क्या हमारी जिंदगी में होने वाले उतार चढ़ाव हमें हमेशा खुश रहने दे सकते हैं? आपका पहला जवाब हो सकता है, नहीं. लेकिन सच्चाई ये है कि अगर हम परिस्थिति से निपटने के तरीके में बदलाव करें तो हम यकीकन खुशी खुशी अपना समय बीता सकते हैं.
इसी राज को बताती है ये किताब The Art of happiness. उत्साह बढ़ाने वाली, प्रेरणादायक इस किताब को मनौवैज्ञानिक डॉक्टर हावर्ड बटलर ने दलाई लामा के साथ अपने अनुभवों के आधार पर लिखा है.
डॉक्टर बटलर ने दलाई लामा के साथ जो भी समय गुजारा जो भी कुछ सीखा उसे इस किताब में बिल्कुल आसान शब्दों में परोसा है. कहानियों को बताने का या उसे समझाने का तरीका इतना आसान है कि कोई पहुंचा हुआ सिद्ध साधु महात्मा ही नहीं एक आम इंसान भी इसमें अपने लिए कुछ न कुछ जरूर ढूंढ लेगा.
दलाई लामा इस बात को बखूबी समझते हैं कि आज की दुनिया कई गुना रफ्तार से भाग रही है, लोग ज्यादातर समय अपने काम में लगा देते हैं, बच्चों की परवरिश, पढ़ाई की चिंता, जिम्मेदारियां सब कुछ देखनी होती है.
मगर उनकी सीख ऐसी है जिसे कोई भी अपनी जिंदगी में बड़ी आसानी से आत्मसाद कर सकता है. चाहें वो किसी भी धर्म का मानने वाला क्यों न हो.
दी आर्ट ऑफ हैपिनेस पांच भागों में बंटी हुई है. पहला- दी परपज ऑफ लाइफ यानी जिंदगी का मकसद, ह्यूमन वार्म्थ एंड कंपैशन (मनुष्य का एक दूसरे के प्रति दयालु और विनम्र होना), ट्रांसफॉर्मिंग सफरिंग ( दर्द से मुक्ति), ओवरकमिंग ऑब्सटैकल्स (मुसीबतों का हल) और क्लोजिंग रिफ्लेक्शन (आत्मअवलोकन). हर भाग को मिलाकर किताब में कुल 15 चैप्टर दिए गए हैं.
दलाई लामा हर विषय पर अपने विचार रखते हैं, जबकि डॉक्टर हावर्ड उन्हीं विचारों पर अपने सवालों के जरिए एक पाश्चात्य नजरिया रखने की कोशिश करते हैं. साथ ही ये भी बताते हैं कि इन्हें अपने जीवन में कैसे उतारें.
किताब काफी सरल तरीके से और आसान शब्दों में लिखी गई है. मेरी राय है कि इस किताब को बड़े आराम से आहिस्ता-आहिस्ता समय देकर पढ़ना चाहिए. तभी आप इस किताब में दी गई सीख पर समय देकर उसके सही मायने समझ पाएंगे.
किताब कहती है कि कोई व्यक्ति कितना खुश है वह इस बात पर निर्भर करता है कि वह दूसरों के प्रति कितना उदार, दयालु है और उसकी कितनी परवाह करता है.
जब इंसान अंदर से खुश रहता है तो वह दूसरों के प्रति करुणा रखात है और इसी तरह जब कोई इंसान दूसरों के प्रति करुणा रखता है तो वह अपने आप अंदर से खुश रहता है.
जबकि नाखुश या उदास लोग खुद के बारे में ज्यादा सोचते हैं, समाज में घुलना मिलना कम पसंद करते हैं, प्रकृित में भी विरोधी किस्म के होते हैं.
वहीं दूसरी तरफ जो लोग खुश होते हैं वो समाज में लोगों से घुलना मिलना पसंद करते हैं, प्रकृति में लचीले होते हैं, आम जिंदगी में रोजाना होने वाले उतार चढ़ावों को आसानी से झेल जाते हैं और शायद ऐसे लोग सबसे ज्यादा दयालु और करुणा से भरे होते हैं.
किताब ऐसे ही कई और तरीकों पर बात करती है जिसे एक आम इंसान अपनी जिंदगी में शुमार कर सकता है. कुल मिलाकर कहें तो खुश असल में रोज अभ्यास की जाने वाली एक कला है. दलाई लामा ने पूरी किताब में आंतरिक अनुशासन पर काफी जोर दिया है और बताया है कि कैसे खुश रहने के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण कला है, जो हमें आनी चाहिए.
आतंरिक अनुशासन में सभी नकारात्मक भावनाओं जैसे कि लालच, क्रोध, नफरत से निपटने और सकारात्मक आदतों जैसे दया, करुणा, संतोष और दूसरों के प्रति सहनशील को आत्मसात करने के तरीकों के बारे में बताया है. ये सभी आदतें एक शांत और स्थिर दिमाग ही प्राप्त कर सकता है.
पूरी किताब में आपको कई ऐसे असल जिंदगी के उदाहरण मिल जाएंगे जो आपको नकारात्मक आदतों से किनारा करने और अच्छी आदतों को लाने में मददगार साबित हो सकते हैं.
कुल मिलाकर कहें तो इस किताब में जितने भी अध्याय दिए गए हैं दलाई लामा उन सभी आदतों के जीती जागती मिशाल हैं. इसलिए सम्मानजनक तरीके से लेखक ने किताब के कवर पर उनकी तस्वीर को प्राथमिकता दी है.
Edited by Upasana