माटी कहे कुम्हार से, मनसुख लाल का ‘मिट्टीकूल’ बना दे मोहे...
मिट्टी से फ्रिज और अन्य सामान बना बदली गरीबों की जिंदगीहाईस्कूल फेल मनसुख ने परिवार पालने के लिये सड़क किनारे बेची चायटाइल बनाने के कारखाने में काम करते समय आये विचार ने बदला जीवन का रुखकुम्हार के पुश्तैनी काम को अपनाकर किया देश-विदेश में नाम रोशन
माटी कहे कुम्हार से तों कया रौंदे मोहे
इक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदोंगी तोहे
भक्त रैदास की इन पंक्तियों को गुजरात के एक छोटे से शहर वांकानेर के रहने वाले मनसुख लाल प्रजापति ने बदल दिया है। ये मेरा दावा है कि आप कहानी पढ़ते जाएंगे और आपका शक यकीन में बदलता चला जाएगा।
मनसुख लाल प्रजापति अपनी सुसराल वालों को आता देख राजमार्ग के किनारे स्थित अपनी चाय की दुकान के कोने में सिमटकर खुद को छिपाने की नाकाम कोशिश करते थे। जीवन के 48 बसंत पार कर चुके मनसुख जिंदगी के कई इम्तिहानों में शिकस्त खा चुके थे। छात्र जीवन में दसवीं परीक्षा पास न कर पाने के बाद उन्होंने मजदूरी करनी शुरू की। इसके बाद उन्होंने अपने परिवार का पेट पालने के लिये एक छोटी सी चाय की दुकान खोल ली।
लेकिन अपने सुसराल वालों के सामने सड़क के किनारे चाय बेचने का काम करना उन्हें अपमानजनक लगता। ‘‘मेरे सुसराल वाले मुझसे बहुत बेहतर स्थिति में थे। उनका खिलौने बनाने का खुद का व्यवसाय था और मैं यहां चाय बेच रहा था। उनके सामने मैं बहुत शर्मिंदगी महसूस करता था,’’ मनसुख बताते हैं।
![मनसुख लाल प्रजापति](https://images.yourstory.com/production/document_image/mystoryimage/JRAk8765S7CnPzyVxoXB_Manshuk-Lal-Prajapati-Mitticool.jpg?fm=png&auto=format)
मनसुख लाल प्रजापति
शर्मिंदगी की इसी भावना ने उन्हें जीवन में कुछ करने के लिये प्रेरित किया और आज वे एक सफल और नामचीन उद्यमी हैं। प्रजापति ने कुछ नया करने की ठानी और वर्तमान में वे रेफ्रिजरेटर, प्रेशर कुकर, नाॅन-स्टिक पैन सहित रोजमर्रा के कामकाज के कई घरेलू उपकरणों को बनाने के कारोबार में हैं। रोचक बात यह है कि वे इन सब चीजों को मिट्टी से तैयार करते हैं। ‘मिट्टीकूल’ के नाम से तैयार होकर बिकने वाले ये उपकरण पर्यावरण के अनुकूल, टिकाऊ और प्रभावी होने के साथ बहुत सस्ते भी हैं।
उदाहरण के लिये हम उनके मुख्य और सबसे प्रसिद्ध उत्पाद मिट्टी के रेफ्रिजरेटर को ले लेते हैं जिसके वे अबतक 9 हजार से अधिक पीस देशभर में बेच चुके हैं। 3 हजार रुपये से कुछ अधिक के दाम वाला यह उत्पाद सही मायनों में गरीब के घर का फ्रीज है। ‘‘पैसे वाला तो कुछ भी खरीद सकता है लेकिन गरीब के लिये एक फ्रिज खरीदना बहुत टेढ़ी खीर है। इसलिये मैंने सोचा कि क्यों न एक ऐसी चीज तैयार करूं जो गरीब से गरीब व्यक्ति की पहुंच में हो और वह खरीदकर उसका उपयोग कर सके,’’ प्रजापति कहते हैं।
मिट्टी के इस फ्रिज के अंदर का तापमान कमरे के तापमान की तुलना में लगभग आठ डिग्री कम रहता है। इसमें सब्जियां चार दिन और दूध दो दिन तक ताजा रहते हैं। यह 15 इंच चैड़ा, 12 इंच गहरा और 26 इंच लंबा है जिसे आराम से रसोईघर में या घर के किसी भी कोने में आराम से रखा जा सकता है। अधिकतर खरीददार इसे रसोईघर में स्लैब पर रखना पसंद करते हैं।
![अपने मिट्टीकूल फ्रिज के साथ मनसुखलाल प्रजापति](https://images.yourstory.com/production/document_image/mystoryimage/a5s0VMaQTBK4yN3jt0gm_Prajapati-with-Mitticool-Refrigerator.jpg?fm=png&auto=format)
अपने मिट्टीकूल फ्रिज के साथ मनसुखलाल प्रजापति
यह फ्रिज एक साधारण वैज्ञानिक सिद्धांत पर काम करता है जिसमें वाष्पीकरण ठंडा करने का कारण बनता है। मिट्टी के इस फ्रिज की छत, दीवार और तल में भरा पानी वाष्पीकृत होकर इसे ठंडा रखने में मदद करता है। इस तरह से इस दो संभागों में बंटे फ्रिज में रखी सब्जियां और खाने का सामान लंबे समय तक ताजा और ठंडा बना रहता है।
प्रजापति फ्रिज और अन्य घरेलू उपकरणों को सिर्फ साधारण मिट्टी से बनाते हैं। उनके पूर्वज कुम्हार थे और उन्होंने मिट्टी के बने उत्पादों के महत्व को प्लास्टिक के बने सामान के सामने ढेर होते बहुत नजदीकी से देखा है। भारत में बढ़ते भूमंडलीकरण के चलते कई कारीगरों को अपना पुश्तैनी काम छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा। प्रजापति के पिता भी उनमें से एक थे। ‘‘मेरे पिता ने भी कुम्हार का पुश्तैनी काम छोड़कर घर का खर्चा उठाने के लिये मजदूरी करनी शुरू कर दी थी,’’ प्रजापति कहते हैं।
इदलते सूय के साथ प्रजापति ने न केवल अपने पुश्तैनी हुनर को पुर्नजीवित किया है बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि हाथ के कारीगरों के लिये अभी आशा की किरण बाकी है। करीब एक साल तक चाय की दुकान चलाने के बाद प्रजापति ने एक टाइल बनाने के कारखाने में एक पर्यवेक्षक के रूप में काम किया जहां उनकी अचेतन पड़ी कुम्हार की प्रवृति दोबारा जागी। ‘‘वहां काम करते समय मुझे महसूस हुआ कि मैं पुश्तैनी रूप से तो कुम्हार हूँ और अगर मिट्टी से सफलतापूर्वक टाइलें बन सकती हैं तो अन्य उत्पाद क्यों नहीं बन सकते।’’
1989 में 24 साल की उम्र में उन्होंने मिट्टी के साथ अपने प्रयोगों को करना शुरू किया। प्रारंभ में उन्होंने मिट्टी से नाॅन-स्टिक पैन बनाने की कोशिश की और धीरे-धीरे वे कई तरह की मिट्टी के साथ प्रयोग करने लगे।
वर्तमान में उनके बनाए उत्पाद इतने सफल हैं कि ग्राहकों की बढ़ती मांग को पूरा करने और मिट्टी के असंख्य उत्पाद तैयार करने के लिये इन्हें कई कारखाने खोलने पड़े हैं। प्रजापति द्वारा खुद तैयार की गई बड़ी मशीनें कुछ ही पलों में मिट्टी को सैंकड़ों की संख्या में उत्पादों में ढाल देती हैं जिससे वे बढ़ती हुई मांग को समय से पूरा कर सकें। वर्तमान में इनका कारोबार 45 लाख रुपये सालाना से अधिक का है और इनके यहां 35 से अधिक लोग काम कर रहे हैं।
लेकिन शीर्ष तक का इनका सफर इतना आसान नहीं था। इस काम को शुरू करने के लिये उन्हें 19 लाख रूपये का कर्ज लेना पड़ा था। प्रारंभिक असफलताओं से घबराए बिना इन्होंने अपना सफर जारी रखा और लोगों के प्रोत्साहन के बाद वे एक के बाद एक सफल उत्पाद बनाते गए।
![image](https://images.yourstory.com/production/document_image/mystoryimage/qCI1L6mdQyGwm2Bak0gi_Clay-work.jpg?fm=png&auto=format)
इनके उत्पाद पूरे भारतवर्ष के अलावा विदेश में भी अपना डंका बजा रहे हैं। इस वर्ष प्रजापति के बनाए उत्पाद अफ्रीका के लिये निर्यात हुए हैं और इन्होंने दुबई के लिये मिट्टी के बने 100 फ्रिज की पहली खेप भी भेजी है।
घरेलू उत्पादों की सफलता के बाद अब प्रजापति मिट्टी से बने एक घर का निर्माण करने की दिशा में मेहनत कर रहे हैं जिसे वे मिट्टीकूल घर के नाम से दुनिया के सामने लाना चाहते हैं। यह मिट्टी का बना एक ऐसा घर होगा जो प्राकृतिक रूप से गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म रहेगा।
जहां तक उनके सुसराल वालों की बात है तो आज वे प्रजापति की सफलता के से बहुत खुश हैं और उनपर गर्व करते हैं।