मजदूरी से 9 रुपए रोज़ कमा कर बड़ी मुश्किल से पढ़ाई करने वाली आरती आज पढ़ा रही हैं सैकड़ों लड़कियों को मुफ्त
मुंबई के स्लम इलाके में रहने वाली वो लड़की जो दसवीं क्लास में फेल हो गई थी तब उसे उसके घरवालों ने आर्थिक दिक्कतों की वजह से आगे नहीं पढ़ने दिया। जिसके बाद उस लड़की ने दैनिक मजदूरी कर हर दिन 9 रुपये कमाये और उन पैसों को इकट्ठा कर कुछ सालों बाद आगे की पढ़ाई की। आज वही लड़की अपने संगठन ‘सखी’ के जरिये स्लम में रहने वाली दूसरी लड़कियों को पढ़ाने का काम कर रही है, ताकि उन लड़कियों की पढ़ाई बीच में ना छूटे।
किसी भी समाज के विकास में शिक्षा का अहम योगदान होता है। हमारे देश में आजादी के 69 साल बाद भी समाज के कई हिस्सों में शिक्षा का स्तर बहुत ही खराब है और 7वीं और 8वीं तक के बच्चों को शिक्षा का बेसिक ज्ञान जैसे गिनती, पहाड़े, जोड़-घटाना और अंग्रेजी के शब्दों का ज्ञान भी नहीं होता है। जिस वजह से 10वीं में बोर्ड की परीक्षा में बच्चे फेल हो जाते हैं। बच्चों की इन्हीं परेशानियों को दूर करने की कोशिश कर रहीं है मुंबई के मुलुंड में रहने वाली आरती नाइक। आरती अपने संगठन ‘सखी’ के जरिये स्लम में रहने वाली करीब 400 लड़कियों को शिक्षा की बेसिक जानकारी दे रही है।
आरती के मुताबिक,
“मुझे इस संगठन को शुरू करने का आइडिया तब आया जब मुझे 10वीं में फेल होने के कारण अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि मेरे माता-पिता के आर्थिक हालात ऐसी नहीं थे कि मैं आगे की पढ़ाई कर सकूं। पढ़ाई छूटने के बाद करीब 4 साल तक मैंने घर पर रहकर चूड़ियां और फ्रेंडशिप बैंड बनाने का काम किया, इसके लिए मुझे हर रोज 9 रुपये मिलते थे। इस तरह 4 साल तक पैसे जमा करने के बाद मैंने अपनी पढ़ाई को जारी रखने का फैसला लिया और 12वीं की पढ़ाई में मैं पहले स्थान पर आई।”
आरती यहीं नहीं रूकीं उन्होने इसके बाद समाजशास्त्र से बीए की पढ़ाई नासिक के यशवंत राव मुक्त विश्वविद्यालय से कर रही हैं साथ ही वो इंटरनेशनल मांटेसरी टीचर ट्रेनिंग का कोर्स भी कर रहीं हैं।
आरती के मुताबिक
“साल 2008 में मैंने 5 लड़कियों के साथ अपने संगठन ‘सखी’ की शुरूआत की। शुरूआत में लोग मेरे पास लड़कियों को पढ़ने के लिए नहीं भेजते थे क्योंकि मैं बच्चों को शिक्षा का केवल बेसिक ज्ञान ही देती थीं और स्लम में रहने वाली लड़कियों के माता पिता का कहना था कि उनकी लड़कियां पढ़ने के लिए स्कूल जाती हैं और यही उनके लिये काफी है।”
एक साल बाद उन्होंने इन्हीं लड़कियों के साथ एक रोड शो का आयोजन किया जिसे आरती ने नाम दिया ‘बाल मेलावा’ इसमें लड़कियों के अपने सपने के बारे में बताना था कि वह जीवन में क्या बनना चाहती हैं। जिसके जवाब में स्लम में रहने वाली लड़कियां कोई टीचर बनना चाहती थीं तो कोई नर्स बनकर लोगों की सेवा करना चाहती थी। खास बात ये थी कि उनकी इस मुहिम का लोगों पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा। साथ ही कुछ महीने बाद जब इन लड़कियों का रिजल्ट आया तो वो काफी अच्छा था। जिसके बाद इनके पास आने वाली लड़कियों की तादाद बढ़ने लगी। आज करीब 400 लड़कियों को ये पढ़ाने का काम कर रहीं हैं। लड़कियों को वो दो पालियों में पढ़ाती हैं, पहली पाली शाम को 5 से 7 बजे के बीच होती है और दूसरी पाली 7 से 9 बजे तक।
आरती एक घटना को याद करते हुए बताती हैं कि “एक लड़की जिसका नाम साक्षी हैं, उसकी मां जब बाजार से उससे कुछ सामान मंगाती थी तो बाजार पहुंचने तक वो सबकुछ भूल जाती थी। ये देखकर उसकी मां बहुत ही परेशान रहती थीं तब मैंने उसकी मां से कहा कि वह साक्षी को मेरे पास पढ़ने के लिए भेजे। आज मैं करीब 5 साल से उसे पढ़ा रही हूं और इस वक्त वह 11 वीं में पढ़ती हैं।”
आरती पढ़ाई के साथ साथ लड़कियों के लिए साल 2010 से गर्ल्स सेविंग बैंक भी चला रही हैं। इसके तहत यहां पर हर लड़की के पास एक गुल्लक होती है, उस गुल्लक में लड़कियों को अपनी बचत के पैसे डालने होते हैं और महिने के अंत में लड़कियों के मां बाप की मौजूदगी में गुल्लक को खोलकर उसकी जमा रकम को देखा जाता है, साथ ही जमा पैसे का रिकार्ड रखा जाता है। लड़कियों को इस बात की छूट होती है कि अपनी पढ़ाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए इसमें से जब चाहे वो पैसे निकाल सकती हैं।
आरती साल 2011 से एक अंग्रेजी गर्ल्स लाइब्रेरी भी चला रहीं हैं जिसमें बेसिक ज्ञान की करीब 400 किताबें रखी गयी हैं। लड़कियों को रोटेशन की प्रकिया के तहत हर सप्ताह किताबें मिलती हैं। आरती के इस नेक काम में सी जे हेडन नाम की महिला मदद करती हैं। उन्हीं की मदद से आरती ने अपने स्लम एरिया में एक कम्यूनिटी हॉल को किराये पर लिया है जिसमें इन्होने लाइब्रेरी खोल रखी है। यहां आकर स्लम में रहने वाली लड़कियां मुफ्त में किताबें पढ़ सकती हैं।
आरती यही नहीं रूकी वह लड़कियों को पढ़ाई और लाइफ स्किल के साथ साथ खेलकूद का ज्ञान भी देना चाहती थीं इसके लिए उन्होने पिछले साल जुलाई में अपने जन्म दिन के मौके पर गर्ल्स स्पोर्टस स्कूल की स्थापना की। इसमें वो लड़कियों को इन्डोर और आउटडोर दोनों तरह के खेल खिलाती हैं। इन्डोर खेल के तहत लड़कियों को कैरम और शतरंज खिलाया जाता है जबकि आउटडोर खेल में वो बैटमिंटन, बैलेंसिग बैलूनि और दूसरे खेल खिलाती हैं। जगह की कमी के कारण वह इंडोर गेम को कम्यूनिटी हांल के अंदर और आउटडोर गेम को वह कम्यूनिटी हांल के पास की रोड पर खिलाती हैं।
आरती पढ़ाई और खेलकूद के साथ बच्चों के स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखती हैं। दो महीने पहले ही उन्होने लड़कियों के लिए प्रोटीन एक्टिविटी शुरू की है ताकि उनका शारीरिक विकास अच्छी तरह से हो सके। इसके तहत वो माताओं को प्रोटीनयुक्त खाने का मैन्यू देती हैं। जिसमें वो बताती है कि किस खाने में कितना प्रोटीन होता है।
अपनी कठिनाईयों के बारे में आरती का कहना है कि जगह की कमी के कारण वह 45 लड़कियों को दो शिफ्टों में पढ़ाने का काम करती हैं। बाकि 400 लड़कियों को वो शनिवार को उनके घर-घर जाकर उनकी पढ़ाई में आ रही दिक्कतों को दूर करने का काम करती हैं साथ ही इन लड़कियों को वो गर्ल्स बुक बैंक से किताबें भी देती हैं। किताबों को बांटने में 2 महिलाएं और एक पुरूष इनकी मदद करते हैं।
अभी हाल ही आरती को शिक्षा के क्षेत्र में उनके काम को देखते हुए मुंबई में आयोजित एशियन कांफ्रेस में उन्हें स्पीकर के रूप में बुलाया गया और वहां उन्हें सिल्वर मेडल से सम्मानित किया गया। भविष्य की योजनाओं के बारे में उनका कहना है कि वो अगले 3 सालों के अंदर करीब 1हजार लड़कियों तक अपनी पहुंच बनाना चाहती हैं। इसके लिए वो 3 गर्ल्स लर्निंग सेंटर और गर्ल्स बुक बैंक खोलना चाहती हैं, ताकि लड़कियों को अच्छी शिक्षा मिल सके। इसके अलावा वो अपना स्टाफ बढ़ाना चाहती हैं क्योंकि अभी पढ़ाई का सारा काम वह खुद ही कर रही हैं। आरती पैसे की कमी को देखते हुए फंड जुटाने की कोशिश भी कर रही हैं जिससे वो ज्यादा से ज्यादा लड़कियों तक अपनी पहुंच बना सकें।
वेबसाइट : www.sakhiforgirlseducation.org