17 साल के एक लड़के ने बॉर्डर पर तैनात जवानों की जान सलामत रखने के लिए बनाया रोबोट
बॉर्डर पर आतंकवादियों से लड़ने वाले भारतीय सैनिकों को मौत से बचाने के लिए 17 साल के एक लड़के ने एक रोबाट बनाया है। उसका विजन है कि अगर बॉर्डर पर इंसानी जवानों की बजाय अगर रोबोटिक जवान तैनात कर दिए जाएं तो हमारे देश के वीर सपूतों की जान सलामत रहेगी।
ओडिशा के बालासोर जिले के एक लड़के ने यह दावा किया है कि उसने एक ऐसा हॉर्मोनाइड रोबोट बनाया है, जो की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधार पर काम करेगा और सीमा की सुरक्षा करेगा।
नीलमादाब ने पहली बार रोबोट बनाने की कोशिश कक्षा 6 में की थी, जिसमें उस वक्त वो असफल हो गाया था। लेकिन उसको धुन चढ़ गई थी कि उसको ऐसा एक रोबोट बनाना ही बनाना है। नीलमादाब की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद भी उसने धीरे-धीरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अच्छी समझ हासिल कर ली। समय के साथ धीरे-धीरे उसने इस विषय में अपनी पकड़ को मजबूत किया। नीलमादाब ने दिन-रात मेहनत करके इस रोबोट को बनाने में सफलता प्राप्त की है।
भारत-पाक बॉर्डर पर आतंकवादियों से लड़ने वाले भारतीय सैनिकों को मौत से बचाने के लिए 17 साल के एक लड़के ने एक रोबाट बनाया है। उसका विजन है कि अगर बॉर्डर पर इंसानी जवानों की बजाय अगर रोबोटिक जवान तैनात कर दिए जाएं तो हमारे देश के वीर सपूतों की जान सलामत रहेगी। ओडिशा के बालासोर जिले के एक लड़के ने यह दावा किया है कि उसने एक ऐसा हॉर्मोनाइड रोबोट बनाया है, जो की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधार पर काम करेगा और सीमा की सुरक्षा करेगा। इस किशोर वैज्ञानिक काल नाम है, नीलमादाब बेहरा।
नीलमादाब ने दिन-रात मेहनत करके इस रोबोट को बनाने में सफलता प्राप्त की है। पहले नीलमदाब के पिता को उन पर विश्वास नहीं था। आर्थिक तंगी के कारण और आसपास शिक्षा की अच्छी व्यवस्था न होने की वजह से नीलमादाब थोड़ा चिंचित जरुर था लेकिन उसने इंटरनेट की मदद से अपने ज्ञान के भंडार को बढ़ाया।
नीलमादाब ने अपने इस रोबोट का नाम रखा है एटम 3.7। नील का कहना है कि इस रोबोट का रक्षा, ऑटोमैटिक स्टार्ट, मनोरंजन के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, विनिर्माण उद्योग और घरेलू सेवाओं जैसे क्षेत्रों में मानव कर्मचारियों की जगह के लिए भी इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। नील ने इतनी कम उम्र में अपनी तरह का ये पहला रोबोट बनाया है, जिसको बनाने के बारे में उसकी उम्र के बच्चे सोच भी नहीं सकते। नीलमादाब द्वारा बनाया गया रोबोट उस तरह ही काम करता है जैसा उसको आदेश दिया जाता है। नील तालनगर जूनियर कॉलेज में 12वीं का छात्र है। उसने इस काम की शुरुआत पिछले साल जनवरी में की थी। इस रोबोट को बनाने में उसको लगभग एक वर्ष का समय लगा। इस परियोजना को पूरा करने में लगभग 4 लाख का खर्च आया। इस रोबोट की लंबाई 4.7 फुट और वजन 30 किलो है। ये रोबोट एक बेसिक प्रोग्रामिंग के आधार पर काम करता है। इसमें 14 सेंसर और पांच नियंत्रक हैं।
नील के सपनों की उड़ान
नीलमादाब की बचपन से ही विज्ञान में रुचि थी। वैज्ञानिक खिलौनों की ओर उसका विशेष आकर्षण था। जब वह तीसरी क्लास में था, तो उसने अपनी पहली तकनीक परियोजना बनाई थी। नीलमादाब ने पहली बार रोबोट बनाने की कोशिश कक्षा 6 में की थी, जिसमें उस वक्त वो असफल हो गाया था। लेकिन उसको धुन चढ़ गई थी कि उसको ऐसा एक रोबोट बनाना ही बनाना है। नीलमादाब की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद भी उसने धीरे-धीरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अच्छी समझ हासिल कर ली। समय के साथ धीरे-धीरे उसने इस विषय में अपनी पकड़ को मजबूत किया। नीलमादाब ने दिन-रात मेहनत करके इस रोबोट को बनाने में सफलता प्राप्त की है। पहले नीलमदाब के पिता को उन पर विश्वास नहीं था। आर्थिक तंगी और आसपास शिक्षा की अच्छी व्यवस्था न होने की वजह से नीलमादाब थोड़ा चिंचित जरुर था लेकिन उसने इंटरनेट की मदद से अपने ज्ञान के भंडार को बढ़ाया। इंटरनेट की सहायता से उसने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है।
नीलामदाब के मुताबिक, 'इस रोबोट के मैकेनिज्म को पूरी तरह से मुकम्मल करने के लिए और अधिक पैसे की जरूरत है। मैं अब रोबोटिक्स में उच्च शिक्षा हासिल करना चाहता हूं। मैंने अपनी अगली परियोजना, एक बहु-रोटर ड्रोन पर काम करना शुरू कर दिया है। ये ड्रोन महिलाओं की सुरक्षा और सुरक्षा करने में मदद करेगा।'
-प्रज्ञा श्रीवास्तव