मैजिक बस ने दिया गरीब बच्ची को सपने देखने का हक
सिर्फ 5,000 रुपये की सैलरी की वजह से श्रव्या और उसके परिवार को खाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। कई दिन ऐसे भी होते हैं जब उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता है और कभी कभी सिर्फ चावल के साथ आचार खाकर काम चलाना पड़ता है और इस तरह के अभावों में जीने वाली श्रव्या मदासू बनना चाहती हैं डॉक्टर...
वो जहां रहती है, वहां कोई डॉक्टर नहीं है इसलिए वो बनना चाहती है डॉक्टर वो भी उन परिस्थितियों में जब उसके परिवार के पास खाने को दो वक्त का भोजन भी नहीं है।
श्रव्या कहती है कि वह पढ़ाई करके डॉक्टर बनेगी और अपने गांव में ही एक अस्पताल खोलेगी। वह एक सरकारी स्कूल में पढ़ती है क्योंकि उसकी मां उसे किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का खर्च नहीं उठा सकती। हालांकि श्रव्या बड़ी मासूमियत के साथ कहती है कि अच्छा है जो वह सरकारी स्कूल में पढ़ती है नहीं तो उसे स्कूल जाने के लिए मैजिक बस नहीं मिलती।
14 साल की श्रव्या मदासू डॉक्टर बनना चाहती है क्योंकि उसके आस-पास के इलाके में कोई अस्पताल नहीं है। इमर्जेंसी हालत में अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए तो उसका इलाज होना मुश्किल हो जाता है। श्रव्या कहती है कि वह पढ़ाई करके डॉक्टर बनेगी और अपने गांव में ही एक अस्पताल खोलेगी। वह एक सरकारी स्कूल में पढ़ती है क्योंकि उसकी मां उसे किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का खर्च नहीं उठा सकती। हालांकि श्रव्या बड़ी मासूमियत के साथ कहती है कि अच्छा है जो वह सरकारी स्कूल में पढ़ती है नहीं तो उसे स्कूल जाने के लिए मैजिक बस नहीं मिलती।
वह अपने नाना-नानी के यहां रहती है। श्रव्या बताती है, 'हम मिट्टी के बने कच्चे घरों में रहते हैं। मैं अपनी एक बड़ी बहन और मां के साथ नानी के घर में रहते हैं।' थोड़ी देर रुककर वह फिर बताती है कि उसके पिता ने उसके पैदा होने के बाद ही उसे छोड़ दिया था। क्योंकि वह दो बेटियां नहीं चाहते और वह बेटियों को किसी काम का नहीं मानते। 'मैंने कभी उनका चेहरा भी नहीं देखा।' श्रव्या कहती है कि उसकी मां ही उसके लिए सबसे बड़ी प्रेरणास्रोत है क्योंकि वह अपने दम पर अपनी दोनों बेटियों को पाल रही हैं। उसकी मां की शादी 17 साल में ही हो गई थी। उसने ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई की है और आगे भी पढ़ने की चाहत रखती है, लेकिन मजबूरी के चलते नहीं पढ़ पा रही। वह ग्राम पंचायत ऑफिस में कंप्यूटर ऑपरेटर के तौर पर काम करती है और उसे हर महीने सिर्फ 5,000 रुपये मिलते हैं। वह बीएड करके टीचर बनना चाहती है।
उसकी मां की कम उम्र में ही शादी करा दी गई थी। श्रव्या के नाना-नानी भी मजदूरी करते हैं इसलिए वे अपनी बेटी को पढ़ा नहीं सके। अब श्रव्या की मां चाहती है कि वह किसी भी तरह अपने बच्चों को स्कूल जरूर भेजेगी।
श्रव्या बड़े गर्व के साथ कहती है, 'मेरी मां कभी भी मेरी या मेरी बहन की शादी की बात नहीं करती है। मेरी बड़ी बहन इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई कर रही है और मैं एक डॉक्टर बनना चाहती हूं। वह हमारे सपनों को लेकर हमेशा उत्साहित रहती है।' सिर्फ 5,000 रुपये की सैलरी की वजह से श्रव्या और उसके परिवार को खाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। कई दिन ऐसे भी होते हैं जब उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता है और कभी कभी सिर्फ चावल के साथ आचार खाकर काम चलाना पड़ता है। कई बार श्रव्या के मामा उसकी मदद कर देते हैं।
मैजिक बस एक एनजीओ है जो गरीब बच्चों की पढ़ाई और उनके जीवन को सुधारने के लिए प्रयासरत है। मैजिक बस के जरिए स्कूल में कई सारी ऐक्टिविटीज होती हैं। श्रव्या भी इसी मैजिक बस की मदद से डॉक्टर बनने के सपने देख रही है।
श्रव्या बताती है कि उसके स्कूल में कोई भी पौष्टिक भोजन नहीं करता। उन्हें कभी आचार या सब्जियों के साथ चावल खाना पड़ता है। मैजिक बस नाम के क्रियाकलाप के जरिए उसे मालूम चला कि पौष्टिक भोजन शरीर के लिए बेहद जरूरी है। उसके गांव में लगभग सभी परिवार मजदूरी ही करते हैं इसलिए वे अपने बच्चों के ऊपर ध्यान ही नहीं दे पाते कि उनकी जरूरत क्या है।
कई बच्चे ऐसे हैं जो रोज स्कूल भी नहीं जाते और कुछ ऐसे भी हैं जो क्लास में ध्यान ही नहीं देते। मैजिक बस एक एनजीओ है जो गरीब बच्चों की पढ़ाई और उनके जीवन को सुधारने के लिए प्रयासरत है। मैजिक बस के जरिए स्कूल में कई सारी ऐक्टिविटीज होती हैं। श्रव्या इसी मैजिक बस की वजह से बेहद खुश रहती है।