फाइटर पायलट बनना चाहते हैं दसवीं के टॉपर अभय राव
वनांचल के गरीब कृषक पुत्र अभय राव ने लैंप में पढ़ाई करके किया दसवीं की बोर्ड परीक्षा में टॉप...
कोयलांचल कोबरा के वनांचल में दसवीं के टॉपर अभय राव को बरसात के कीचड़ में खेतों में हल जोतना भी आता है। अपने गरीब पिता की खेती-बाड़ी में भी वह हाथ बंटाते रहते हैं। विद्युत संकट से जूझ रहे इस इलाके में जिस दिन पिता जसवंत राव ने उन्हें लैंप खरीद कर दिया था, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। वह नेशनल डिफेंस एकेडमी के रास्ते भविष्य में फाइटर पॉयलट बनने का सपना देख रहे हैं।
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गुरसियां के छात्र अभय अपनी पढ़ाई की राह में आने वाली मुश्किलों का जिक्र करते हुए भावुक हो उठते हैं। वह बताते हैं कि रात के एकांत में उन्हे पढ़ाई करना अच्छा लगता है। शुरू में बिजली गुल होने पर उन्हें काफी समस्या होती रही है। उनकी तैयारी में बाधा न हो, इसके लिए उनके पिता ने एक दिन लैंप खरीदकर दिया था। दिन-रात की मेहनत रंग लाई और उन्होंने इस वर्ष दसवीं की बोर्ड परीक्षा में 96.33 फीसदी अंक लाकर राज्य की मेरिट सूची में दसवां स्थान हासिल किया।
देश के कोयलांचल का एक चर्चित इलाका है छत्तीसगढ़ का जिला कोरबा। यहां के वनांचल के एक गरीब कृषक पुत्र अभय राव ने दसवीं की बोर्ड परीक्षा में टॉप किया है। बात सिर्फ उनकी टॉप रैंकिंग की नहीं, वह कितनी कठिन परिस्थितियों में अपने लक्ष्य को हासिल कर पाए हैं, यह ज्यादा गौरतलब है। अभय राव इंगले पोड़ी-उपरोड़ा के ग्राम पंचायम लेपरा के आश्रित ग्राम टुनियाकछार के रहने वाले हैं। उनके पिता जसवंत राव इंगले टुनियाकछार में खेती-किसानी कर घर-परिवार का गुजर-बसर करते हैं। पिता के साथ ही अभय की मां लक्ष्मी ने भी दसवीं तक पढ़ाई की है। माता-पिता के मन में शुरू से ही एक बड़ा मलाल रहा है कि अपनी बदहालियों के कारण वह ठीक से स्कूल-कॉलेज की शिक्षा नहीं ले पाए। जब उनके बच्चे हुए तो वह अपने सपने उनमें देखने लगे। उन्होंने तय किया कि अपनी अधूरी शिक्षा की ख्वाहिश वह अब अपनी संतानों के माध्यम से पूरी करेंगे। अपने माता-पिता और प्रिंसिपल एसएन पोर्ते को अपनी इस सफलता का श्रेय देते हुए अभय कहते हैं कि माता-पिता के सपनों को अंजाम तक पहुंचाना ही उनके जीवन का अब पहला मकसद हो गया है।
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गुरसियां के छात्र अभय अपनी पढ़ाई की राह में आने वाली मुश्किलों का जिक्र करते हुए भावुक हो उठते हैं। वह बताते हैं कि रात के एकांत में उन्हे पढ़ाई करना अच्छा लगता है। शुरू में बिजली गुल होने पर उन्हें काफी समस्या होती रही है। उनकी तैयारी में बाधा न हो, इसके लिए उनके पिता ने एक दिन लैंप खरीदकर दिया था। दिन-रात की मेहनत रंग लाई और उन्होंने इस वर्ष दसवीं की बोर्ड परीक्षा में 96.33 फीसदी अंक लाकर राज्य की मेरिट सूची में दसवां स्थान हासिल किया। उनको गणित में शत-प्रतिशत, विज्ञान में 98, अंग्रेजी में 96, हिंदी में 95, सामाजिक विज्ञान में 92 और संस्कृत में 97 अंक मिले हैं। वह आगे की पढ़ाई मैथ से ही करना चाहते हैं।
दसवीं के टॉपर अभय राव को टीवी पर न्यूज और क्रिकेट देखना बहुत पसंद है। वह खेल में भी ऑलराउंडर हैं। नेशनल डिफेंस एकेडमी ज्वॉइन कर वह एयरफोर्स में फाइटर पॉयलट बनना चाहते हैं। तैयारी के तौर पर इसके लिए वह रोजाना सुबह तीन किलोमीटर की दौड़ लगाते हैं। शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गुरसियां के प्रिंसिपल एसएन पोर्ते बताते हैं कि अभय शुरू से एक होनहार छात्र रहा है, जिसकी वजह से कोरबा के इस सुदूर बीहड़ कहे जाने वाले पोड़ी-उपरोड़ा ब्लॉक में भी मेरिट सूची में उसमें ने अपनी जगह बना ली है। कोरबा के जिला घोषित होने के बाद से अभय पहला छात्र हैं, जो इस अंचल से राज्य की प्रावीण्य सूची में जगह हासिल करने में सफल हुए हैं। वनांचल के गांव टुनियाकछार में कुल जमा पंद्रह परिवार रहते हैं। बिजली आना इस गांव के लिए किसी आठवें आश्चर्य से कम नहीं है। क्या पता कि वह कभी कभी चौबीसो घंटे गुल हो जाए। ऐसे में किसी करीब किसान परिवार के छात्र के सामने अपनी स्कूली शिक्षा की तैयारियों में सफल होना कितना चुनौतीपूर्ण रहता है, अभय उसके भुक्तभोगी हैं। उन्होंने लैंप की रोशनी में अपना पाठ्यक्रम ही पूरे मनोयोग से तैयार नहीं किया बल्कि वह पिता की खेती-किसानी में भी हाथ बंटाते रहते हैं।
अभय राव को हल जोतना भी आता है। जिस दिन उनके पिता ठीक से पढ़ाई करने के लिए उन्हें एक लैंप खरीद कर दिए थे, उस सुखद हादसे को वह जीवन में कभी नहीं भूल सकते हैं। शायद वहीं से उन्हें अपने परिश्रमी पिता के साथ बरसात के कीचड़ में लदफद होकर भी हल चलाने का साहस मिला। जब से उन्हें लैंप मिला, उनकी पढ़ाई को हजार गुना ज्यादा ताकत मिल गई। अभय की बड़ी बहन रुचि राघवेंद्र महाविद्यालय, बिलासपुर में बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। अभय का स्कूल उनके घर से पांच किलोमीटर दूर है, जो सुबह 10.30 बजे से खुल जाता है। समय से स्कूल पहुंचने के लिए वह प्रतिदिन साइकिल से घर से आध-पौन घंटे पहले ही निकल जाते रहे। बारिश के मौसम में कई बार रास्ते में पड़ने वाला नाला उफान पर, जिसकी वजह से घूमकर जाना पड़ता लेकिन उन्होंने कभी किसी मुश्किल हालात में भी स्कूल नागा नहीं किया।
अभय बताते हैं कि गर्मी की छुट्टियों में ही उन्होंने अपना ज्यादातर कोर्स कम्पलीट कर लिया था। वह रोजाना कम से कम आठ घंटे पढ़ाई करते हैं। माता-पिता कठिनाइयों को देखकर उन्हें अपना और घर का भविष्य उज्ज्वल करने की प्रेरणा मिलती रही है। उनके माता-पिता हमेशा घर में उन्हें अनुकूल वातावरण देते रहे हैं ताकि किसी भी कीमत पर मामूली बाधा भी न पड़े। अभय की सफलता का राज इसमें भी है कि उन्होंने कभी ट्यूशन नहीं लिया। चूंकि माता-पिता दसवीं तक पढ़े हैं, इसलिए उनसे और यदा-कदा अपनी दीदी से भी मदद मिलती रही है। अभय अपने गांव और क्षेत्र के पिछड़ेपन से भी बेखबर नहीं रहते हैं। उनका मानना है कि संसाधनों का अभाव यहां के युवाओं के आगे बढ़ने की राह में सबसे बड़ी बाधा है। उन्होंने कितनी मुश्किलों में हाइस्कूल टॉप किया है, उसकी कीमत सिर्फ उन्हें और उनके माता-पिता को मालूम है। जहां तक उन्हें अपने गुरुजनों से सहयोग और सम्मान मिलने की बात है, वह तो स्कूल तक ही संभव है।
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