Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

परवल, सूरजमुखी की खेती से अमीर हुए यूपी के पढ़े लिखे किसान

इनकी खेती करके, बनें अमीर...

परवल, सूरजमुखी की खेती से अमीर हुए यूपी के पढ़े लिखे किसान

Saturday May 12, 2018 , 6 min Read

आधुनिक कृषि किसानों के लिए वरदान बन गई है। तरह-तरह के फूलों और सब्जियों की खेती ने कई पढ़े-लिखे किसानों को अमीर बना दिया है। मामूली से रिस्क से उनकी खुद की घर-गृहस्थी तो फूल-फल रही ही, वह सैकड़ों अन्य लोगों को भी रोजी-रोजगार दे रहे हैं। जौनपुर के फूलचंद, पब्बर, शिवभूषण, ओमकार, शिव नारायण, छोटेलाल, हरियाणा के हरबीर, रणबीर आदि ऐसे ही सफल किसानों में शुमार हो रहे हैं।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


 सूरजमुखी की खेती ने उनकी घर-गृहस्थी हरी-भरी कर दी है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक सूरजमुखी की खेती देश में पहली बार साल 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी। यह एक ऐसी तिलहनी फसल है, जिस पर प्रकाश का कोई असर नहीं पड़ता है। 

इसे और क्या कहा जाए, खेती-किसानी का स्टार्टअप ही तो मानना चाहिए कि नए-नए तरीकों और पद्धतियों के आधुनिक प्रयोग किसानों के लिए बड़े काम के साबित हो रहे हैं। कोई परवल की खेती कर उन्नत और कमाऊ किसानी में सफल हो रहा है तो कोई सूरजमुखी की खेती से मालामाल हुआ जा रहा है। किसी किसान को जैविक सब्जियों ने धनवान बना दिया है तो कोई विदेशों तक आधुनिक उत्पाद सप्लाई कर अमीर बन गया है। जौनपुर (उ.प्र.) के एक किसान हैं फूलचंद पटेल। काफी पढ़े-लिखे हैं। पहले रोजी-रोटी के लिए इधर-उधर भटकते रहे, कोई सफलता नहीं मिली तो अपने खेतों पर नजर टिका लिए और इन दिनो अपने विवेक और मेहनत से फसल बेचकर मालामाल हो रहे हैं।

वह जौनपुर में मुंगराबादशाहपुर क्षेत्र के गांव लौंह डिहई के रहने वाले हैं। उनकी देखादेखी जैसे उनका पूरा गांव ही उनकी राह चल पड़ा है। आधुनिक कृषक फूलचंद अपनी मात्र एक एकड़ की परवल की खेती से 'नेम-फेम' दोनो कमा रहे हैं। बीए पास करने के बाद उनको जब कहीं नौकरी नहीं मिली तो अपने खेतों का वास्ता देते हुए कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञों से मेल-मुलाकातें करने लगे। राह मिल गई। परवल की खेती शुरू कर दिए। अब वह हर साल अपने प्रति एकड़ खेत से डेढ़-दो लाख रुपये कमा रहे हैं। पहली बार उन्होंने नवंबर में परवल के पौधे रोपे। बढ़ते हुए उन्हें मचानों पर चढ़ा दिया। कुल जमा 15-20 हजार रुपये प्रति एकड़ का खर्च बैठा। कुछ ही वक्त में तैयार परवल आसपास की मंडियों में बेचने लगे। लाखों की लक्ष्मी घर आने लगी। नई फसल की तैयारी से पहले तो वह परवल की पुरानी लताएं भी बेच कर पैसा बना रहे हैं।

जौनपुर में ही करारा क्षेत्र के किसान सूरजमुखी की खेती से फूल-फल रहे हैं। इस फसल को जंगली जानवरों से भी कोई खतरा नहीं रहता है। क्षेत्र के गांव समहुती में कई साल से किसान पब्बर, शिवभूषण, ओमकार, शिव नारायण, छोटेलाल आदि सूरजमुखी की खेती कर रहे हैं। आलू की फसल खेत से निकालने के बाद वे सूरजमुखी की फसल बो देते हैं। इसी मई माह के अंतिम सप्ताह में तैयार फूलों की कटाई कर लेते हैं। अच्छी कमाई को देखते हुए अब ये किसान सूरजमुखी की अगली फसल बड़े पैमाने पर करने का मन बना चुके हैं।

सूरजमुखी की खेती ने उनकी घर-गृहस्थी हरी-भरी कर दी है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक सूरजमुखी की खेती देश में पहली बार साल 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी। यह एक ऐसी तिलहनी फसल है, जिस पर प्रकाश का कोई असर नहीं पड़ता है। इसके लिए खरीफ, रबी और जायद तीनों फसल चक्र मुफीद रहते हैं। इसके बीजों में 45-50 फीसद तक तेल होता है, जो कोलेस्ट्राल से बचाता है। बड़े पैमाने पर सूरजमुखी की खेती से न केवल किसान की कमाई दो गुनी हो रही है बल्कि खाद्य तेल की उपलब्धता भी आसाना होती जा रही है।

हरियाणा के बयालीस वर्षीय किसान हरबीर सिंह एमए पास हैं। कुरुक्षेत्र के गांव डाडलू में रहते हैं। वह लगभग डेढ़ देशक से नए-नए प्रयोग कर जैविक सब्जियों की पौध की खेती कर रहे हैं। वह वर्ष 2005 से सब्जियों की नर्सरी तैयार कर रहे हैं। इसकी दो एकड़ जमीन से शुरुआत कर आजकल चौदह एकड़ में पौध उगा रहे हैं। उनके जैविक पौधों की डिमांड पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश से लेकर इटली, आस्ट्रेलिया तक है। इसकी कमाई से सिर्फ वही संपन्न नहीं हुए हैं बल्कि सैकड़ों अन्य लोगों की भी रोजी-रोटी चल निकली है।

सुखद तो ये है कि इन सैकड़ों लोगों में आधी से अधिक महिलाएं हैं। वह उन्नत और मुनाफे की खेती करने के लिए 'नर्सरी रत्न' से सम्मानित भी हो चुके हैं। अब वह काले टमाटर की खेती करने में जुटे हैं। उन्‍होंने काले टमाटर के दो हजार पौध आस्ट्रेलिया से मंगाए हैं। इस टमाटर की ऊपरी परत काली और अंदर लाल होती है। इसी तरह हरियाणा में पातली कलां (पलवल) के किसान रणबीर सिंह अपनी दो-ढाई दशक पुरानी पारंपरिक खेती छोड़कर अपने आठ एकड़ खेत में किसी अमेरिकी कंपनी की मदद से पॉली हाउस फॉर्मिंग में फूलों की खेती कर रहे हैं। आज दिल्ली की बड़ी मंडियों में उनके फूलों की भारी डिमांड है। उन्होंने शुरुआत दो एकड़ में फूलों की खेती से की थी। आज आठ एकड़ में ग्लेड, गुलाब, लिली, रजनीगंधा, गुलदावरी, ब्रासिका की खेती हो रही है। उनके साथ अन्य लोगों को भी रोजगार मिल गया है। फूलों के धंधे ने उन्हें अमीर बना दिया है।

आधुनिक खेती को लेकर अब कृषि वैज्ञानिक बता रहे हैं कि वनीला की फसल से करोड़ों की कमाई की जा रही है। इन दिनो वनीला फ्लेवर की आइस्क्रीम, केक, कोल्ड ड्रिंक, परफ्यूम और दूसरे ब्यूटी प्रोडक्ट्स के लिए इस फल की पूरी दुनिया में भारी डिमांड है। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में वनीला की कीमतों में तेज उछाल आया है। तीन साल पहले तक जिस वनीला बीन्स की कीमत प्रति किलो डेढ़ हजार रुपए थी, आज उछलकर 40 हजार रुपए तक पहुंच चुकी है। यानी चालीस सगुना से भी ज्यादा। दुनिया का 75 प्रतिशत वनीला मैडागास्कर में होता है। मसाला बोर्ड के मुताबिक वनीला एक बेल पौधा है, जिसका तना लंबा और बेलनकार होता है।

इसके सुगंधित और कैप्सूल के जैसे फूल सुखाने पर खुशबूदार हो जाते हैं। इनके ही बीज के पीछे आइसक्रीम, केक, कोल्ड ड्रिंक बनाने वाली कंपनियां दीवानी हुई जा रही हैं। इस फसल के लिए छायादार मध्यम तापमान चाहिए। मिट्टी भुरभुरी और जैविक पदार्थों से भरपूर हो। शेड हाउस सिस्टम इसके लिए ज्यादा मुफीद होता है। अंदर तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्सिय तक होना चाहिए। फसल तीन साल बाद पैदावार देने लगती है। इसकी बेल लगाने के लिए कटिंग या बीज दोनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। ज्यादातर बेल से फसलें तैयार की जा रही हैं। इसकी बैल को तारों के ऊपर फैला दिया जाता है। इसकी फलियां पकने में नौ-दस महीने लग जाते हैं।

यह भी पढ़ें: ऑर्गैनिक खेती से अपनी तकदीर बदल रहीं अलग-अलग राज्य की ये महिलाएं