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आख़िर कैसे हाइपोथर्मिया जैसी भयंकर बीमारी से लड़ने के लिए मददगार साबित हुआ स्टैनफोर्ड स्नातक रतुल नारायण का ब्रेसलेट

आख़िर कैसे हाइपोथर्मिया जैसी भयंकर बीमारी से लड़ने के लिए मददगार साबित हुआ स्टैनफोर्ड स्नातक रतुल नारायण का ब्रेसलेट

Tuesday July 26, 2016 , 8 min Read

रितिक्षा अपने जन्म के बाद तीन हफ्ते एक चमकदार ब्रेसलेट पहनती थी। रितिक्षा की माँ, दिव्या, जोकि अपने पहले बच्चे को निमोनिया की वजह से खो चुकी थी, उन्होंने देखा, लगातार बीप होने से ये संकेत मिलता है कि उनके बच्चे के शरीर के तापमान में गिरावट आ रही है और तापमान को सामान्य बनाये रखने के लिए बच्चे को कपडे में लपेट कर रखना पड़ेगा। रितिक्षा की माँ ने वैसा ही किया जैसा उनसे कहा गया था। एक रात, ब्रेसलेट में लगातार 6 घंटे तक बीप होती रही। घबराई हुई माँ ने ब्रेसलेट की हेल्पलाइन पर कॉल की, तो उन्हें बच्चे को अस्पताल ले जाने का सुझाव दिया गया। वहाँ ये पता चला कि रितिक्षा को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण हो गया है, और उसकी अस्पताल में हर तरह से देखभाल की गयी। रितिक्षा पूरी तरह स्वस्थ हो गयी और अब 6 महीने बाद उसका वज़न 5 किलोग्राम हो गया है।

कम कीमत वाला नोवेल ब्रेसलेट जिसने शिशु रितिक्षा की जान बचाई, बेम्पू से है, जो बैंगलोर का सामाजिक उद्यम है और साथ ही चिकित्सा सेवाओं पर काम करता है ये यंत्र नवजात शिशुओं को हाइपोथर्मिया जैसे रोगों से लड़ने की शक्ति देता है- आपको बताते चलें कि ये दुनिया में बढ़ती हुई मृत्यु का एक मुख्य कारण था। इस यन्त्र के कारण माता पिता को तुरंत ही बच्चों के शारीर के गिरते हुए तापमान के बारे में पता चल जाता था। जो माता पिता चिकित्सा सम्बन्धी सहायता ढून्ढ रहे है, उनके लिए ब्रेसलेट का लगातार बीप होना नवजात की जान बचा सकता है।

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बेम्पू नवजात बच्चो को जन्म के पहले महीने में वज़न बढाने और उनके शरीर के तापमान को सामान्य रखने में मदद करता है। इससे बच्चो के बेहतर शारीरिक और मानसिक विकास में सहयोग मिलता है। जब तापमान गिरता है (यहाँ तक 0.5 डिग्री तक भी) तो शिशु के शरीर की वसा जलने लगती है, जो शिशु के वज़न को बढ़ने से रोकता है।

ये वसा कम होने की प्रकिया बच्चे के शरीर में अम्ल के उत्पादन न होने के कारण होती है, जो बच्चे की श्वसन प्रकिया में रुकावट उत्पन्न करती है। अगर बच्चा सांस नहीं ले पा रहा है तो उसके शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति (हाइपोक्सिया) बन्द हो जाती है, जिस कारण उसके शरीर में अंग क्षति हो सकती है। अल्पव्यस्क शिशु (जिनमे सबसे ज़्यादा हैपोथेर्मिया का खतरा होता है) को सर्दी होने पर हमेशा अंग और विकास सबंधी समस्याएं होती हैं (नवजात शिशु को जब सर्दी होती है तो उन्हें संक्रमण हो जाता है) और ये समस्याएँ जीवन भर उनके साथ बनी रहती हैं।

बेम्पू की कहानी

बेम्पू की खोज सन 2013 में रतुल नारायण ने की। वो स्टेनफोर्ड से बायोकेमिकल एंजीनिएरिंग में स्नातक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में परास्नातक है, रतुल ने जॉनसन एंड जॉनसन के साथ कॉर्डिओ वस्क्युलर स्पेस में छः साल काम किया और उसके बाद नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में एम्ब्रॉन्स इन्नोवेशन के साथ एक साल काम किया। रतुल जानते थे कि नवजात स्वास्थ्य ऐसी जगह है, जहाँ वे खुद को समर्पित कर सकते हैं।

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31 वर्षीय रतुल कहते हैं,

 ‘एम्ब्रेन्स में काम करते हुए मेरे पास खुद को बनकर दिखाने का मौका था। मैं ऐसा कुछ बनाना चाहता था, जिसका बहुत व्यापक प्रभाव हो, हम लोगों के जीवन और स्वास्थ्य में बहुत व्यापक प्रभाव डालने का प्रयास कर रहे थे। अगर आप किसी शिशु के जीवन में कोई बदलाव ला सकते है तो अगले 60-80 साल ये उसके जीवन को प्रभावित करेगा।'

सन 2013 में, भारत में नेवाताल हेल्थकेअर में भूमि अनुसन्धान खोज में असमानता को जानने के लिए रतुल ने पूरे भारत का भ्रमण किया। उन्होंने बड़े अस्पतालों के बाल चिकित्सा केन्द्रों , सरकारी अस्पतालो और ग्रामीण चिकित्सालयों का दौरा किया। रतुल ने फिर कहा, " मैं वहाँ डॉक्टरों और मरीज़ों आदि की जीवन शैली को समझने के लिए गया। मैं वहाँ चकित्सा सम्बन्धी असमानताओं को लिखने के लिए एक नोटबुक लेकर गया मैंने देखा- एक शिशु क्यों बीमार हो जाता है? क्यों शिशु की अस्पताल में ही मृत्यु हो जाती है?

रतुल बताते हैं कि भारत में जन्में 27 मिलियन में से 8 मिलियन शिशु कम वज़न वाले होते हैं (2.5 किग्रा से कम ) जबकि यूएस में यह संख्या 12 में से 1 है। यूएस में, अस्पतालों में कम वज़न वाले शिशु को इनक्यूबेटर में तब तक रखा जाता है, जब तक उसका वज़न सामान्य नहीं हो जाता। जबकि भारत में, 1.2 किलोग्राम वज़न वाले शिशु को भी डिस्चार्ज कर देते हैं, जो कई कारणों से काफी घातक है, इनमें दो मुख्य कारण हैपोथेर्मिया और संक्रमण प्रमुख हैं। हमारे पास इनक्यूबेटर का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन थर्मल मॉनिटरिंग के द्वारा हम इन शिशुओ को थर्मल सुरक्षा दे सकते हैं।

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उपयोग

बेम्पू ब्रेसलेट लेने से पहले डॉक्टर की सलाह ज़रूरी है। ये भारत के 11 राज्यों के 150 केंद्रों में उपलब्ध है। क्लाउड नाइन (गुड़गांव), सूर्या हॉस्पिटल (पुणे), मीनाक्षी हॉस्पिटल (बैंगलुर) कुछ ऐसे केंद्र हैं, जो अलग-अलग लक्ष्य समूहों में काम करते हैं और सक्रिय रूप से ब्रेसलेट प्रयोग करने का सुझाव देते हैं।

बेम्पू ब्रेसलेट एक डिस्पोजेबल यन्त्र है, जो शिशु के जन्म के पहले 4 हफ्ते तक काम करता है। और इस दौरान इसे चार्ज करने की ज़रूरत नहीं होती। इस तरह के यन्त्र आसानी से वापस किये जा सकते हैं, चार्ज किये जा सकते हैं और दूसरे शिशुओ के लिए उपयोग भी किये जा सकते है। रतुल मानते हैं और स्पष्ट करते हैं कि क्यों ये मॉडल प्राइमरी टारगेट ग्रुप पर अच्छी तरह काम नहीं करता है।

इनमें से अधिकतर महिलायें अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों से अपने शहर अपने बच्चे को जन्म देने के लिए आती हैं और वापस दूसरे शहर, कस्बे या गांव लौट जाती हैं। इस मॉडल को किराए पर देने की सुविधा अभी भारत में नहीं है। अस्पतालो में ऐसा कोई संग्रहण केंद्र नहीं है जहाँ इसे जमा किया जा सके जारी किया जा सके, जिसकी वापसी की सुविधा हो, यन्त्र का ब्यौरा हो, साफ कर सके, रिचार्ज कर सके और फिर से दे सके।

रतुल कहते हैं कि भविष्य में उन्हें अपनी परियोजना को अमली जामा पहनाने के लिए आशा और आंगनबाड़ी कर्मियों के साथ मिलकर काम करना होगा। उनकी टीम अक्सर पूछती है कि ये यन्त्र ब्लूटूथ के द्वारा किसी स्मार्टफोन से क्यों नही जुड़ सकता या एसएमएस क्यों नहीं भेज सकता, जिससे कि माता-पिता को सावधान किया जा सके। वो स्पष्ट करते हैं , 

"हम अपने टारगेट ग्रुप (कम आमदनी वाले परिवार) पर काफी बारीकी से काम कर रहे हैं और उनकी समस्याओं को समझते हैं। माँ रात में सो रही होती है और जब उसके बच्चे के शरीर का तापमान अचानक गिर जाता है, स्मार्टफोन/ब्लूटूथ कनेक्शन इस समस्या को हल नहीं कर पायेगा।"
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साथ ही साथ, हो सकता हे ये समूह स्मार्टफ़ोन न चला पाये, रतुल कहते हैं कि वो बेम्पू को बिलकुल आसान रखना चाहते है, वो इसमें ज़्यादा जानकारी डालकर माता-पिता को उलझन में नहीं डालना चाहते। रतुल आगे कहते हैं, "हमने जांच की कि ब्रेसलेट पर तापमान दिखना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि ये माँ के लिए उलझन भरा होगा। माँ अपने बच्चे की बीमारी की वजह से पहले से ही काफी परेशान होती है। हमने ये फैसला किया कि हम इसे बिलकुल आसान रखेगे- नीली रौशनी ये बताएगी के बच्चा ठीक है, लाल रौशनी ये बताएगी के तापमान गिर रहा है , लगातार बीप होना ये बतायेगा के बच्चे को सहायता की ज़रूरत है।"

मान्यता और अनुदान

मई 2014 में, रतुल को सामाजिक उद्यमिता में ग्रीन फ़ेलोशिप की गूँज उठाने के लिए चुना गया। जुलाई 2014 में, बेम्पू को विल्लग्रो में चुना गया। नवम्बर 2014 में, बेम्पू ने गेट्स फाउंडेशन और ग्रैंड चैलेंजेज कनाडा में धनराशि जीती। और वो अपने पहले कर्मचारी को लाने में सक्षम हुआ। जुलाई 2015 में उसैडस में जीवन रक्षा के लिए हुई एक जन्म प्रतियोगिता में बेम्पू 17 पुरस्कार विजेताओं (750 प्रतिभागियों में से) चुना गया। नोरवियन सरकार और कोरियन सरकार से भी उन्हें आर्थिक सहायता प्राप्त हुई।

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तात्कालिक और दीर्घकालिक चुनौतियाँ

रतुल बताते हैं कि सरकारी केंद्रों के साथ काम करना बेम्पू के सामने एक तत्कालिक चुनौती थी, जहाँ यह यंत्र सबसे ज़्यादा प्रभाव डाल सकता था। जो अनुदान बेम्पू ने उसैड में जीता था वो भारत में अलग अलग राज्य सरकारों के साथ काम करने के लिए था। "एक बार पायलट्स ने दिखाया कि हमारा यन्त्र व्यवहारिक रूप से उपयोगी है और उसके बाद ये सरकार द्वारा शुरुआती प्रकिया के लिए पूरी तरह तैयार है, लेकिन हम ये करने के लिए निर्धारित थे क्योंकि बच्चो को इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।

हमने रतुल से पूछा कि सरकार के साथ काम करना आपके लिए निराशाजनक हो सकता हे क्योंकि ‘शीर हुप्स’ की वजह से आपको ख़ासी दुश्वारियों का सामना करना पड़ेगा, खासकर भारत में। तो उनका जवाब था,

‘ठीक है, हमने कहानियाँ सुनी हैं कि ये कितना मुश्किल हो सकता है, लेकिन सरकार का नवजात स्वास्थ्य की ओर काफी रुझान है। हम अभी हाल ही में स्वास्थ्य एव परिवार कल्याण मंत्री से मिले थे। वहां पर बहुत से अधिकारी थे, जो जानते थे कि हम सिस्टम के साथ काम करके इस ब्रेसलेट के द्वारा बदलाव ला सकते है।'

रतुल जानते थे कि इस प्रकिया में समय लगेगा साथ ही उनके कई हितैषी लोग उस पूरी प्रकिया में उनका भरपूर सहयोग भी करेंगे। स्वास्थ्य एक राजकीय मुद्दा है। बेम्पू को हर ज़रूरत मंद बच्चे तक पहुँचाने के लिए हर राज्य सरकार के साथ अलग-अलग काम करना होगा।

मूल- स्निग्धा सिन्हा

अनुवादक - बिलाल एम जाफ़री