'इनवोर्फिट', दाम में हिट, पर्यावरण के लिए फिट, गृहणियों के लिए तो सुपरहिट
2007 में हुई Envirofit की स्थापना...
दक्षिण भारत में कंपनी का ज्यादा कारोबार...
2018-19 तक 1 मिलियन स्टोव बेचने का लक्ष्य...
भारत के किसी भी गांव में चले जाइये वहां आज भी हालात कुछ ज्यादा नहीं बदले हैं। अंधेरे से रसोईघर में चूल्हा जल रहा होता है और उससे निकल रहा धुंआ वहां पर मौजूद महिला के फेफड़ों में जाता है। हाल ही में द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) की रिपोर्ट में विश्लेषण के आधार पर बताया गया है कि ग्रामीण उर्जा ना सिर्फ विषमताओं से भरी है बल्कि उससे संक्रमण भी फैल रहा है। देश के सभी राज्यों में से गोवा में घरेलू काम के लिए लकड़ियों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। यहां पर हर महिने हर घर में 197 किलो लकड़ी ईधन के तौर पर खर्च होती है जबकि कर्नाटक में 195 किलो। जबकि राष्ट्रीय औसत 115 किलो है।
हम भले ही तरक्की की राह पर हों लेकिन बायोमास पर हमारी निर्भरता अब भी बनी हुई है। इसका ना सिर्फ स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है बल्कि पर्यावरण के लिए भी ये खतरनाक साबित हो रहा है। पारंपरिक कुक स्टोव से निकलने वाला ब्लैक कार्बन और आधी अधूरी जली लड़की से निकलने वाले उत्सर्जन से घर के अंदर का वायु प्रदूषण (आईएपी) और जलवायु परिवर्तन की रफ्तार बढ़ रही है। दुनिया भर में घर के अंदर का वायु प्रदूषण समय से पहले मृत्यु की बड़ी वजह बन चुका है। घरेलू वायु प्रदूषण से हर साल 4.3 मिलियन लोगों की मौत होती है। ये एचआईवी, मलेरिया और टीबी से होने वाली मौत के बराबर है। अकेले भारत में घरेलू प्रदूषण से हर साल 1 मिलियन लोगों की मौत होती है। बावजूद आज भी देश में 63 प्रतिशत लोग खाना बायोमास यानी लकड़ी या गाय के गोबर को जलाकर पकाते हैं।
हालांकि सरकार और विभिन्न संगठनों ने मिट्टी या बिना प्रमाणित चूल्हों से निपटने के लिए बड़े स्तर कई कार्यक्रम चलाये हैं। इसमें कई चुनौतियां देखने को मिली हैं। फिर चाहे बात स्टोव के स्थायित्व हो क्योंकि इनको प्राप्त करने वाले लोग पढ़े लिखे नहीं होते और वो इनको चलाना भी नहीं जानते। इसी बात को ध्यान में रखते हुए साल 2007 में Envirofit की स्थापना की गई थी। जिसका मकसद था दूसरों से अलग हटकर काम करने का। ये अपनी तरह का पहला और बाजार आधारित दृष्टिकोण था। जिसने खाना पकाने वाले स्टोव में क्रांति ला दी। इसे घर के दूसरे सामान की तरह खरीदा जाने लगा। इस स्टोव में ना सिर्फ गुणवत्ता और टिकाऊपन का ध्यान रखा गया बल्कि इसकी कीमत भी ठीक ठाक रखी गई।
Envirofit के एमडी हरीश अंचन के मुताबिक,
कंपनी ने ना सिर्फ घरेलू प्रदूषण की समस्या पर ध्यान दिया बल्कि इसको इस लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था कि इसका असर सबसे निचले स्तर पर पड़े साथ ही इस कारोबार का फायदा ग्राहक और कर्मचारियों को भी मिले। इससे ना सिर्फ दुनिया बल्कि कार्बन उत्सर्जन को भी कम करने में मदद मिलेगी।
कंपनी ने अपना पहला पायलट, ऑपरेशन और जांच की सुविधाएं कर्नाटक के सिमोगा से शुरू की। कंपनी ने घर और विभिन्न संगठनों के लिए बाजार में कई तरह के स्टोव उतारे जो ना सिर्फ खाना बनाने में पहले के मुकाबले 50 प्रतिशत तक का वक्त बचाते थे बल्कि टॉक्सिक में 80 प्रतिशत तक की कमी आने लगी और ईंधन में 60 प्रतिशत तक कमी आने लगी। इससे ना सिर्फ लोगों का खाना बनाने में वक्त बचा बल्कि जंगली लड़की भी कम काटे जाने लगी साथ ही रसोईघर भी साफ रहने लगा।
Envirofit के मंगला स्टोव में रॉकेट चेंबर तकनीक का इस्तेमाल किया गया ताकि उससे उत्सर्जन कम हो। स्टोव स्टील से बना था जिसकी बाजार में काफी मांग थी यही कारण है कि कंपनी ने इस तरह के दुनिया भर में ऐसे सात लाख स्टोव बेचे। 2013 तक बाजार में कई मॉडल आ चुके थे। हाल ही में कंपनी ने पीसीएस-1 मॉडल बाजार में उतारा है। जो ना सिर्फ ईंधन की कम खपत करता है और खाना काफी जल्दी पकाता है। खास बात ये है कि भारत का बना हुआ है। ये ना सिर्फ पकड़ने में आसान बल्कि काफी हल्का है। इस स्टोव के चेम्बर को खास तरीके से डिजाइन किया हुआ है ताकि ये सालों साल काम करे। जहां पर ज्यादा लोगों के लिए खाना पकाने की जरूरत हो वहां पर Envirofit ने अलग तरह के स्टोव बाजार में उतारे हैं। जैसे ईएफआई-100एल जो 100लीटर का स्टोव है जो एक बार में 300 लोगों के लिए खाना पका सकता है। ये खास तौर से स्कूलों, अनाथालयों और विभिन्न संस्थाओं के लिए डिजाइन किया गया है।
Envirofit के उपभोक्ताओं की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। फिलहाल ये भारत में साढ़े आठ लाख उत्पाद बाजार में बेच रहा होगा। अंचन के मुताबिक उनकी कंपनी देश के दूसरे राज्यों में अपने कदम रखने जा रही है। इसके लिए दूसरी कंपनियों के साथ भागीदारी की जाएगी ताकि उन राज्यों में मिलने वाली चुनौतियों से निपटा जा सके। ये एक ठोस प्रयास है जिसका असर आम लोगों के साथ साथ सामाजिक सेक्टर भी पड़ेगा। इस क्षेत्र के अगुआ को विश्वास है कि वो और ज्यादा उपभोक्ताओं तक अपनी पहुंच बना सकता है। यही वजह है कि कंपनी का लक्ष्य साल 2018-19 तक 1 मिलियन स्टोव बेचने का है।