कश्मीर: डल झील की खूबसूरती लौटाने के लिए 1,300 शिकारावाले मिशन पर
इसी साल सितंबर में परंपरागत तरीके से डल झील की सफाई करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए सफाई करने में महारत हासिल करने वाले 600 स्थानीय वर्करों को काम पर लगाया गया।
कश्मीर में पर्यटकों की बढ़ती तादाद और सीवेज के कारण डल झील दिन ब दिन गंदी होती जा रही है। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर की हालत काफी बदहाल है। गंदगी की समस्या से पूरा शहर जूझ रहा है।
डल झील की खूबसूरती वापस लौटाने के लिए काम करने वाले एनजीओ ग्रीन कश्मीर के चेयरमैन मुजम्मिल खुर्शीद अली बताते हैं कि झील में गंदगी की समस्या 1980 के आसपास से शुरू हुई थी।
कश्मीर में इन दिनों सुबह जब पारा जीरो से नीचे रहता है तो मोहम्मद शफी अपने प्लास्टिक के बड़े जूते पहनकर और सफाई करने के सामान लेकर शिकारे पर डल झील में निकल लेते हैं। वे अकेले नहीं होते, उनके साथ सैकड़ो शिकारे वाले शफी के डल झील सफाई अभियान में शामिल हो जाते हैं। कश्मीर की सबसे खूबसूरत चीजों में डल झील भी एक है। लेकिन पिछले काफी दिनों से वह गंदगी की चपेट में है। डल झील की खूबसूरती वापस लौटाने के लिए काम करने वाले एनजीओ ग्रीन कश्मीर के चेयरमैन मुजम्मिल खुर्शीद अली बताते हैं कि झील में गंदगी की समस्या 1980 के आसपास से शुरू हुई थी।
कश्मीर में पर्यटकों की बढ़ती तादाद और सीवेज के कारण डल झील दिन ब दिन गंदी होती जा रही है। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर की हालत काफी बदहाल है। गंदगी की समस्या से पूरा शहर जूझ रहा है। इसकी एक प्रमुख वजह इलाके में अशांति का होना है। लगातार हड़ताल, कर्फ्यू और विरोध प्रदर्शनों के चलते झील की साफ सफाई करने वाले लोग पहुंच नहीं पाते हैं। यही वजह है कि कभी 75 वर्ग किलोमीटर में फैली यह झील अब सिमट कर सिर्फ 12 वर्ग किलोमीटर में ही रह गई है।
पर्यावरणविदों का मानना है कि प्रदूषण के कारण पहाड़ों से घिरी डल झील अब कचरे का एक दलदल बनती जा रही है। आशंका जताई गई है कि इससे कश्मीर घाटी आने वाले पर्यटकों की संख्या पर बुरा पभाव पड़ेगा। पर्यटकों की बढ़ती संख्या को सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए हाउसबोटों की गिनती में लगातार हो रही बढ़ौतरी और झील के किनारों पर इमारतों का निर्माण इसके अस्तित्व को बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं। हाउसबोटों से गंदगी को किनारों पर स्थित होटलों व घरों से गंदगी को झील में फैंके जाने से तथा हरी काई व घास की वजह से झील की सौंदर्यता गायब हो रही है।
जम्मू-कश्मीर की इस खूबसूरती को बचाने के लिए झील अथॉरिटी ने स्विट्जरलैंड, फिनलैंड और अमेरिका से 2010 में कई सारी मशीनें मंगई थी, लेकिन झील इतनी बड़ी है कि ये मशीनें भी सफाई के लिए नाकाफी हैं। प्रशासन भी इतना सुस्त है कि उसे 7 साल बाद अब पता चला है कि ये मशीनें सफाई के लिए कारगर नहीं हैं। इसीलिए इसी साल सितंबर में परंपरागत तरीके से झील की सफाई करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए सफाई करने में महारत हासिल करने वाले 600 स्थानीय वर्करों को काम पर लगाया गया। झील में जम गई काई और बाकी गंदगियों को ये वर्कर हटाने का काम कर रहे हैं। इन्हें एकत्रित करके ट्रक के सहारे किसी दूसरी जगह पर लगाया जा रहा है।
शफी का कहना है कि सफाई करने का परंपरागत तरीका ज्यादा बेहतर है क्योंकि यह खरपतवार वाले पौधों को जड़ से मिटा देता है। जबकि मशीनें केवल ऊपरी हिस्से को काट पाती हैं। जो कि पैसे की बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं है। LAWDA के चेयरमैन हफीज मसूदी ने कहा कि इसके लिए एक सामूहिक अभियान की आवश्यकता थी। पहली बार ऐसा अभियान चलाया गया है जिसमें लगभग 1300 शिकारे वालों को नियुक्त किया गया है। अभी तक 10 लाख क्यूबिक मीटर तक की घास हटा दी गई है। यह झील चार हिस्सों में बंटी हुई है जिसमें गगरीबल, लोकुट दस, बोड दल और नागिन हिस्से आते हैं। इन सभी हिस्सों की सफाई की जानी है।
(जम्मू-कश्मीर से काजी वसीफ की रिपोर्ट)
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