बनना था डाॅक्टर और बन गए 'इन्वर्टर मैन ऑफ इंडिया', सुकून की सांस दे 'सू-कैम'
दिल्ली के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे कुंवर ने केबल टीवी नेटवर्क के व्यवसाय के जरिये रखा उद्यमिता के क्षेत्र में कदम...घर का इन्वर्टर खराब होने के बाद एक दिन अचानक की इन्वर्टर तैयार करने का विचार आया और टीम के साथ निर्माण का काम किया प्रारंभ...वर्ष 1998 में सू-कैम पावर सिस्टम्स की स्थापना की और वर्ष 2000 में दुनिया के पहले प्लास्टिक बाॅडी वाले इन्वर्टर को किया तैयार...वर्तमान में दुनिया के 90 देशोें में फैला हुआ है कारोबार और दुनिया जानती है ‘इन्वर्टर मैन आॅफ इंडिया’ के नाम से ...
‘इन्वर्टर मैन आॅफ इंडिया’ के नाम से मशहूर कुंवर सचदेव कहते हैं, ‘‘12वीं कक्षा में पढ़ते समय मैं डाॅक्टर बनना चाहत था।‘‘ भारत के इन्वर्टर उद्योग में क्रांति के जनक कुंवर संचदेव का सफर बहुत ही लंबा और विविधताओं से भरा रहा है और सफलता के इस मुकाम को छूने से पहले उन्होंने कलम और स्टेशनरी बेचने के अलावा एक संचार कंपनी के बिक्री विभाग में भी काम किया है।
दिल्ली के एक ठेठ मध्यम वर्गीय पंजाबी परिवार से आने वाले कुंवर का बचपन अपने माता-पिता के अलावा दो भाइयों के साथ एक छोटे से घर में गुजरा है। उनके पिता भारतीय रेलवे के साथ एक क्लर्क के रूप में काम करते थे और माँ एक गृहणी थीं। अपनी प्राथमिक शिक्षा एक निजी स्कूल से प्राप्त करने के बाद उन्हें संसाधनों की कमी के चलते सरकारी स्कूल में दाखिला लेना पड़ा।
हालांकि वे अपनी मेडिकल की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने में सफल रहे लेकिन बोर्ड की परीक्षाओं में वे आवश्यक 50 प्रतिशत अंकों से सिर्फ एक प्रतिशत यानि की 49 फीसदी ला पाए और मेडिकल में दाखिला पाने से वंचित रहे। कुंवर बताते हैं, ‘‘इस वजह से मैंने एक दूसरे सरकारी स्कूल से दोबारा इंटर की परीक्षा दी और इस बार पूरे स्कूल में टाॅप किया लेकिन बदकिस्मती से इस बार मैं मेडिकल की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने में असफल रहा।’’
उनकी क्षमताओं का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हें कि उन्हें इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया लेकिन इसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी और शायद तब तक उन्होंने ऐसा सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आखिरकार वे इसी में अपना नाम कमाने में सफल होंगे। आखिरकार उन्होंने दिल्ली के प्रसिद्ध हिंदू काॅलेज में स्टैटिस्टिकल आॅनर्स में दाखिला ले लिया। हालांकि यहां भी उनकी वही स्थिति रही और पाठ्यक्रम में कोई रुची न होने के चलते वे काॅलेज में आयोजित होने वाले विभिन्न आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिससा लेने लगे और कुछ ही समय में खासे लोकप्रिय हो गए।
काॅलेज के दिनों में ही कुंवर किताबे पढ़ने की आद पड़ गई और आगे जाकर इन्वर्टर के व्यवसाय की स्थापना में उनकी यहह आदत काफी उपयोगी साबित हुई। इसी दौरान कुंवर ने अपने भाई के साथ पेन और स्टेशनरी का अन्य सामान बेचना प्रारंभ किया। वे बताते हैं, ‘‘यह काम करना मेरी पसंद या नापसंद से ताल्लुक नहीं रखता था बल्कि यह समय की बहुत बड़ी जरूरत थी। मेरे भाई ने 12वीं कक्षा की पढ़ाई के बाद कलम इत्यादि के व्यवसाय में कदम रखा और मैं भी पढ़ाई के दौरान इस काम में उसका हाथ बंटाता था और काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं इस काम को अपना पूरा समय देने लगा।’’
दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून की उच्च शिक्षा लेने के बाद कुंवर ने एक केबल संचार कंपनी के बिक्री विभाग में अपने जीवन की पहली और आखिरी नौकरी प्रारंभ की। कुंवर बताते हैं, ‘‘1988 के उस दौर में केबल व्यवसाय से जुड़ी कंपनी में काम करने के दौरान मैं आने वाले समय में इस कारोबार की क्षमताओं के बारे में जानने और समझने में सफल रहा और मैंने कुछ ही समय में इस नौकरी को छोड़ते हुए दिल्ली में सू-काॅम कम्यूनिकेशन के नाम से अपने एक केबल व्यवसाय की नींव रखी।’’
हालांकि वे उत्पाद की बिक्री के काम में बेहतरीन थे जबकि उन्हें निर्माण और स्थापना प्रक्रिया के अलावा इस काम में प्रयुक्त होने वाली तकनीक के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। प्रारंभ में उन्होंने होटलों और बहुमंजिला इमारतों में सीएटीवी और एमएटीवी सिस्टमों की स्थापित करने का काम शुरू किया। वे बताते हैं कि चूंकि उस समय उन्हें इस स्थापना प्रक्रिया की बिल्कुल भी जानकारी उस थी ऐसे में उस दौर में उन्हें कई लोगों ने बेवकूफ बनाकर चूना भी लगाया।
कई बार चोट खाने के बाद आखिरकार कुंवर ने सबक सीखा और काम करने जा रहे लोगों के साथ स्वयं मौके पर जाकर उपकरणों को स्थापित करने की प्रक्रिया में साझेदार बनने लगे। इसके चलते उन्हें न सिर्फ इस काम का अनुभव हासिल हुआ बल्कि वे संपूर्ण प्रक्रिया और उपकरणों से भी रूबरू होने में कामयाब रहे।
कुंवर आगे कहते हैं, ‘‘पढ़ने की मेरी पपुरानी आदत इस दौर में मेरे बहुत काम आई क्योंकि इसकी मदद से मैं अवधारणाओं को समझने में कामयाब रहा और साथ ही साथ मेरे ज्ञान का वर्धन भी हुआ। इसके बाद मैंने अपनी टीम का निर्माण स्वयं करते हुए उन्हें खुद ही प्रशिक्षण देना भी प्रारंभ कर दिया।’’
वे मानते हैं कि वे बहुत भाग्यशाली थे क्योंकि उस समय तक केबल टीवी हम घर की आवश्यकता बन गया था। इसकी मांग में काफी तेजी के साथ वृद्धि हुई और तबतक कुंवर इस बारे में काफी जानकारी से खुद को लैस कर चुके थे। वे बताते हैं कि उसी दौरान उन्हें मौका मिला और उन्होंने डायरेक्शनल काॅपलर, एम्प्लीफायर्स और माड्यूलेटर्स जैसे केबल टीवी संबंधित उपकरणों का निर्माण प्रारंभ कर दिया।
इन्वर्टर के क्षेत्र में इनका पांव रखना भी संयोग ही रहा। इनका केबल टीवी का व्यवसाय बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन घर पर लगातार खराब होते इन्वर्टर ने इन्हें भारत के बिजली बैकअप के उद्योग की बारे में सोचने पर मजबूर किया। कुंवर कहते हैं, ‘‘मेरे घर का इन्वर्टर अक्सर खराब हो जाता था और हमें हर बार उसे ठीक करने के लिये मिस्त्री को बुलाना पड़ता था। एक दिन मैं इतना परेशान हो गया कि मैंने इसे खोलकर सामने आ रही परेशानी से खुद ही निबटने का फैसला किया और मैंने पाया कि उसमें मानक के विपरीत पीसीबी बोर्ड लगा हुआ है। मैं उसे सु-काॅम केबल टीवी के व्यवसाय से जुड़ी आरएंडडी टीम के पास ले गया और उनसे उसका विश्लेषण करने को कहा।’’
जल्द ही इनकी टीम 90 के दशक में बाजार में मौजूद इन्वर्टरों की गुणवत्ता का विश्लेषण करने में अपना काफी समय लगाने लगी। कुंवर बताते हैं कि उन लोगों को यह देखकर बहुत हैरानी हुई कि बाजार में मौजूद लगभग सभ्ी इन्वर्टरों में बहुत ही घटिया किस्म के पुर्जों का इस्तेमाल किया गया था और उनके निर्माण में तकनीक का उपयोग न के बराबर था। ऐसे में उन्होंने खुद ही आगे आकर इस तकनीक को विस्तार से समझने का फैसला किया। यहां तक कि इसके लिये उन्होंने कनाडा तक से इन्वर्टर मंगवाए और एक जटिल उत्पाद की कार्यप्रणाली से रूबरू होने का प्रयास किया।
कुंवर कहते हैं, ‘‘प्रारंभिक परीक्षणों के बाद हमनें इन्वर्टर का निर्माण करने का फैसला किया और वर्ष 1998 में सू-काॅम पावर सिस्टम्स की स्थापना की। दूसरी तरफ हमारा केबल टीवी का व्यवसाय बहुत अच्छी तरह से फल-फूल रहा था और मैं हम क्षेत्र में एक जानामाना नाम बन चुके थे लेकिन दो वर्षों के भीतर ही मैंने केबल टीवी से संबंधित उपकरणों के निर्माण के काम को बंद कर दिया क्योंकि हमें इन्वर्टर निर्माण के उद्योग में एक बेहतर भविष्य दिखाई दे रहा था।’’
जल्द ही पूरी टीम केबल टीवी के व्यवसाय से सू-काॅम पावर सिस्टम्स में चली आई और ये लोग पूरी तरह से इन्वर्टर और यूपीएस के निर्माण में लग गए। हालांकि प्रारंभ में टीम ने उपभोक्ताओं तक सीधी बिक्री करनी प्रारंभ की लेकिन जल्द ही उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि जल्द ही उन्हें एक संगठन के रूप खुद को विकसित करना होगा। और समय की मांग को देखते हुए इन्होंने डीलरों और वितरकों के एक नेटवर्क को तैयार करने का फैसला किया।
कुंवर बताते हैं कि प्रारंभिक दौर में उनके लिये लोगों को उन्नत तकनीक से लैस अपने इन उपकरणों के प्रति जागरुक करना काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उनके इन्वर्टर मौजूदा आकार से एक चैथाई वाले होने के अलावा प्रौद्योगिकी और दिखने के मामले में काफी आगे थे। हालांकि जब लोगों ने उनके उउत्पादों के प्रदर्शन को देखा तो वे सु-काॅम के साथ वितरकों के रूप में जुड़ने के लिये सामने आने लगे।
वर्ष 2000 आते-आते सू-काॅम दुनिया की ऐसी पहली कंपनी बन गई जो प्लास्टिक की बाॅडी के इन्वर्टर तैयार कर रहे थे। कुंवर बताते हैं कि करंट लगने से एक बच्चे की मौत के बारे में सुनने के बाद उनके दिमाग ये ऐसा करने का विचार आया और उन्होंने घरों के लिये सुरक्षित इन्वर्टर बनाने की दिशा में काम करना प्रारंभ किया। हालांकि उस समय तक बाजार में इन्वर्टर के उच्च तापमान का सामना करने में सक्षम प्लास्टिक मौजूद ही नहीं थी।
जल्द ही उन्होंने जीई को एक विशेष प्लास्टिक के निर्माण के लिये तैयार कर लिया और उनका पहला प्लास्टिक से बना इन्वर्टर ‘चिक’ सामने आया जिसे बाद में दशक की खोज से नवाजा गया। इसके दो वर्ष ये भारत का पहला साइन वेव इन्वर्टर तैयार करने में सफल रहे और बाजार के अगुवा बन गए।
एक तरफ तो कुंवर सु-काॅम के साथ तकनीक को और बेहतर करने के काम में जुटे रहे और उन्हें सबसे अधिक मुश्किल आई अपने साथ काम के माहिर लोगों को जोड़ने में।
कुंवर कहते हैं, ‘‘उस समय किसी भी स्टार्ट के लिये बेहतर पेशेवरों को अपने साथ काम करने के लिये जोड़ना सबसे बड़ी चुनौती थी क्योंकि ऐसे बहुत कम लोग थे जो बड़ी कंपनियों की अपनी लगी-लगाई नौकरी छोड़कर एक स्टार्टअप का हिस्सा बनने के लिये आगे आते। मुझे बुत अच्छी रह याद है कि हमने प्रारंभ में सिर्फ पांच लोगों की टीम के साथ शुरूआत की थी और उनमें से भी एक अंशकालिक रूप से प्लंबर का काम करता था।’’
किसी भी अन्य स्टार्टअप की तरह सू-काॅम को भी प्रारंभिक दौर में निवेश पाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और खासकर 90 के दशक में तो यह और भी चुनौतीपूर्ण था। प्रारंभ में उन्होंने अपने कुद मित्रों और दूर के रिश्तेदारों से उधार लेकर व्यापार में लगाया।
कुंवर बताते हैं, ‘‘कई बार ऐसा होता था कि मैं तय तारीख पर भुगतान करने में असमर्थ होता था लेकिन लेकिन मैंने कभी पैसा देने वालों से छिपने की कोशिश नहीं की और उनसे अगली तारीख ली और उसपर उनका पैसा चुकाने का प्रयास किया। मैंने अपने अनुभवों से सीखा है कि आप उधार देने वालों को असलियत से रूबरू करवाकर उनका विश्वास जीतने में कामयाब हो सकते हैं। वर्ष 2006 में रिलायंस पावर ने इनकी कंपनी में निवेश करने का फैसला किया जो टेमासेक और अबानी समूह के बीच एक संयुक्त उद्यम है।’’
अपने अबतक के सफर के बारे में बात करते हुए कुंवर कहते हैं, ‘‘अगर मैं सु-काॅम के अपने अबतक के सफर के बारे में बात करूं तो मैं इसे सिर्फ दो शब्दों ‘शानदार’ और ‘अविश्वसनीय’ में परिभाषित कर सकता हूँ। कई बार आप अपने विचारों और राय से इतनी बुरी तरह से जुड़ जाते हैं कि वास्तविकता से नाता ही तोड़ बैठते हैं। लेकिन जब आप दुनिया के 90 देशों में फैली हुई सु-काॅम जैसी कंपनी का संचालन कर रहे होते हैं तो आपको यह स्वीकारना होता है कि आप भी कुछ गलत कर सकते हैं। आपको अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर आते हुए चीजों को एक अलग तरीके से करना और सीखना होता है।’’
कुंवर मानते हैं कि संभवतः एक उद्यमी बनने का फैसला उनके जीवन का सर्वश्रेष्ठ फैसला रहा है। उनका कहना है कि जब आप अपने दम पर व्यापार की दुनिया में उतरते हैं तो सामने आना वाला हर दिन नई चुनौतियों और पुरस्कार से भरा होता है। साथ ही वे कहते हैं कि चुटकियों में निर्णय लेना और समस्याओं को हम करना काफी मजेदार अनुभव रहा है।
वे आगे कहते हैं, ‘‘एक समय उेसा आता है जब आप पैसे के बारे में सोचना बंद कर देते हैं और आपके लिये मिलने वाले अनुभव अधिक कीमती हो जाते हैं। आपको लोगों के कौशल को विकसित करने का मौका मिलता है। मैं न तो इंजीनियर हूँ और न ही म्ैंने एमबीए किया है लेकिन मेरे पास आईआईटी के अलावा लंदन से एमबीए तक करे हुए लोग नौकरी कर रहे हैं। मैंने तीन पीढि़यों के साथ काम किया है और टाइपराईटरों से तेकर टैबलेट तक जमाने को अपने सामने बदलते हुए देखा है।
कुंवर अब ‘भारत में सौर क्रांति’ लाने की दिशा में अपने कदम बढ़ा रहे हैं। भविष्य में वे भारत के हर घर को सौर ऊर्जा पर काम करते हुए देखना चाहते हैं। उनका मानना है कि जल्द ही भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार होगा। इसके अलावा वे नए स्टार्टअप्स के लिये दिशानिर्देशक की भूमिक भी बखूबी निभा रहे हैं। वे कहते हैं कि भारतीय हमेशा से ही कुछ नया करने में यकीन करते रहे हैं और उन्हें देखकर काफी खुशी होती है कि दुनिया अब भारतीयों का लोहा मान रही है।
कुंवर कहते हैं, ‘‘जब मैंने यह शुरू किया था तब यह दूर का सपना था। अब मैं भारत के उभरते हुए उद्यमियों को आगे बढ़ने में मदद करना चाहता हूँ।’’
इसके अलावा कुंवर ने हैदराबाद में सोलर एलईडी लाइट बनाने वाली एक कंपनी में भी निवेश किया है।