बड़े-बड़े पैकेज छोड़ पॉलिटिक्स में उतरे टेक्नोक्रेट
जमाने के साथ सियात की सरजमीं भी रंग बदल रही है। वह वक्त और था, जब कहा जाता था कि विदेशों में इंटलेक्चुअल और भारत में अब अंगूठा टेक देश चला रहे हैं। एक ताजा सर्वे के मुताबिक देश-विदेश में बड़े-बड़े पैकेज पर काम कर रहे अनेक टेक्नोक्रेट अब राजनीति में उतर रहे हैं।
आचार्य बिनोबा भावे कहा करते थे, सामाजिक बदलाव के लिए सज्जनों का सक्रिय होना जरूरी है, नहीं तो दुर्जन सक्रिय होंगे, जिससे समाज गलत दिशा में जाएगा। लगता है, देश की सियासत चुपचाप उसी राह चल पड़ी है।
आईआईटी खड़गपुर से पासआउट गौरव उनियाल और रूस में वर्ल्ड बैंक में तैनात अमिरबन कहते हैं कि उनके जैसे न जाने कितने युवा देश भर में ऐसा कर रहे हैं। व्यवस्था बदलेगी तो नौकरी भी कर लेंगे, लेकिन पहली जरूरत देश की व्यवस्था बदलने की है। देश में चुनाव की घोषणा हुई तो दिल नहीं माना और नौकरी छोड़कर आ गए। गौरव उनियाल एमएनसी में नौकरी के दौरान अक्सर देश की गरीबी के बारे में चिंतित रहते थे। आईआईएम कलकत्ता से पासआउट और रूस में वर्ल्ड बैंक में अधिकारी रहे (मूलरूप से पश्चिम बंगाल के रहने वाले) अमिरबन भी व्यवस्था बदलने के लिए खुद को बेचैन पाते हैं।
अमेरिकी टेक्नोक्रेट प्रशांत किशोर कभी कांग्रेस, कभी भाजपा तो कभी किसी अन्य विपक्षी पार्टी के खेवनहार बन जाते हैं। माना जाता है कि बिहार में राजद-कांग्रेस और जदयू का महागठबंधन पीके के दिमाग की उपज थी। बिहार की सफलता के बाद ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उनसे मुलाकात कर यूपी में कांग्रेस का कायाकल्प करने का अनुरोध किया था। आते ही पीके ने यूपी में अपना रंग दिखाना भी शुरू कर दिया था। बड़े पैकेज वाली नौकरियां छोड़कर राजनीति में आने का वह सिलसिला अब तो और तेज हो चला है। बड़नगर (उज्जैन) के राजपाल सिंह राठौर आईबीएम (आयरलैंड) में बतौर स्ट्रेटेजी एंड प्लानिंग कंस्लटेंट थे। कुछ समय पहले 50 लाख रुपए सालाना पैकेज की नौकरी छोड़कर भाजपा से जुड़ गए हैं। कम्प्यूटर इंजीनियर पुनीत बंग कांग्रेस के सोशल मीडिया विंग में सक्रिय हैं। भाजपा के लिए ग्राउंड लेवल पर काम कर रहे जबलपुर (म.प्र.) के ज्ञानेंद्र सिंह सॉफ्टवेयर कंपनी भी चलाते हैं। वह इंफोसिस (अमेरिका-जापान) के सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर भी रह चुके हैं। वह भाजपा सरकार की योजनाओं को किसानों तक पहुंचाने में जुटे हैं।
लंदन कॉलेज ऑफ इकोनोमिक्स की छात्रा रहीं अनुष्का मुंबई में एक इंटरनेशनल संगठन से जुड़ी हैं। वह कहती हैं कि दुनिया को बदलते हुए सभी देखना चाहते हैं, लेकिन उसे बदलेगा कौन? हमारी भी जिम्मेदारी सुनिश्चित हो। इन लोगों का कहना है कि हमारे देश के युवा आज के समय में टेक्नोक्रेट नहीं, इंटलेक्चुअल बनें। दरअसल, विदेशों में हाईप्रोफाइल प्रोफेशनल जॉब कर रहे युवाओं को भी भारत की राजनीति भा-लुभा रही है। वे लाखों रुपए के पैकेज वाली नौकरियां छोड़कर राजनीति की डगर पर चल पड़े हैं। दामन थामा और उसकी प्रचार टीम से जुड़ गए। इन उच्च शिक्षित युवाओं के जुड़ने से इससे पार्टियों का प्रचार-प्रसार भी हाईटेक हो चाल है। ये युवा पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा-लोकसभा चुनावों तक में पार्टियों के एजेंडे तक तय करने में जुटे हैं।
आचार्य बिनोबा भावे कहा करते थे, सामाजिक बदलाव के लिए सज्जनों का सक्रिय होना जरूरी है, नहीं तो दुर्जन सक्रिय होंगे, जिससे समाज गलत दिशा में जाएगा। लगता है, देश की सियासत चुपचाप उसी राह चल पड़ी है। अब तो माना जा रहा है कि बिहार, झारखंड, गोवा और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों की कमान टेक्नोक्रेट्स के हाथों में रही है। पिता शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले युवा हेमंत सोरेन 13 जुलाई 2013 में झारखंड के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने इंजीनयरिंग की पढ़ाई बीआईटी मेसरा से की है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पटना से इंजीनयरिंग की है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव सिविल पर्यावरण इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 1989 में आईआईटी खड़गपुर से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया, सोमनाथ भारती, सौरभ भारद्वाज, नंदन निलेकणि, वी. बालाकृष्णन, कैप्टन गोपीनाथ, चौधरी अजित सिंह, प्रेमदास राय आदि भी ऐसे टेक्नोक्रेट राजनेता माने जाते हैं।
इस समय नरेंद्र मोदी के सिटीजन फॉर एकाउंटेबल गर्वनमेंट (सीएजी) की टीम में चार दर्जन से अधिक सदस्य आईआईटी पृष्ठभूमि के हैं। यह टीम पीएम के रणनीति और एक्शन प्लान बनाती है। ये लोग ऑरेकल, गूगल, आईबीएम जैसे संस्थान छोड़कर आए हैं। देश में सीएजी के 60,000 सक्रिय कार्यकर्ता सदस्य हैं। मोदी की 200 सदस्यीय बी टीम में भी ज्यादातर इंजीनियर हैं। गौरतलब है कि गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर 1978 में आईआईटी बॉम्बे से पास हुए। वे 1994 में राजनीति में आए गोवा विधानसभा के सदस्य बने। 1999 में नेता विपक्ष व 2000 में पहली बार गोवा के सीएम बने। 2012 में दूसरी बार यह पद संभाला। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की टीम में कंप्यूटर के जादूगर कहे जाने वाले जयराम रमेश (पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री) राहुल गांधी के वार रूम का संचालन कर चुके हैं। कंप्यूटर इंजीनियर कनिष्क सिंह टीम राहुल के खास हिस्सा हैं।
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