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खेत में फावड़ा भी चलाते हैं पुडुचेरी के कृषि मंत्री कमलाकनन

खेत में फावड़ा भी चलाते हैं पुडुचेरी के कृषि मंत्री कमलाकनन

Wednesday October 31, 2018 , 6 min Read

राजनीति में बड़े ओहदे संभाल रहे कृषिमंत्री कमलाकनन जैसी शख्सियत भी हैं, जो खुद खेतों में फावड़ा चलाते हैं। वरना तो हमारे देश में चाहे कोई भी दल-पार्टी हो, राजनीति और राजनेताओं की छवि का सच किसी से छिपा नहीं है, देश के तमाम बड़े नेता ऐसे भी हैं, जिनको सियासत और पद विरासत में मिले हैं।

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अटल बिहारी बाजपेई ने भारत को परमाणु शक्ति से संपन्न किया है। आज हमारे देश की राजनीतिक विडंबना हैरत से भर देने वाली है। इसे साफ शब्दों में कहें तो वह एक बिना लागत वाला सबसे मुनाफेदार धंधा हो चुकी है। पार्टियां कारपोरेट घरानों की तरह आचरण करने लगी हैं।

वैसे तो हमारे देश में चाहे कोई भी दल-पार्टी हो, राजनीति और राजनेताओं की छवि का सच किसी से छिपा नहीं है, देश के तमाम बड़े नेता ऐसे भी हैं, जिनको सियासत और पद विरासत में मिले हैं और आज भी ऐसे नेता हैं, जो जनता के बीच सिर्फ अपनी विश्वसनीयता, मेहनत और ईमानदारी के बूते प्रथम पंक्ति में हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं पांडिचेरी के कृषि मंत्री कमलाकनन। वह कृषि विभाग के सिर्फ जुबानी मंत्री नहीं, बल्कि खुद खेतों में काम करते हैं। जनता के बीच लोगों का दुख-दर्द जाने, सुने बिना किसी को बड़े राजनीतिक ओहदे जब विरासत में मिल जाते हैं, स्वाभाविक है, तब ढेर सारे सवाल अनसुलझे रह जाते हैं। वजह जगजाहिर है कि राजनीति अब जनता की सेवा नहीं, मालदार होने की सीढ़ी बन गई है। सच माना जाए तो इस देश में विरासत वाली राजनीति की नींव कांग्रेस ने डाली है।

आज इस पार्टी की चौथी पीढ़ी पार्टी के सिरहाने है, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी-सोनिया गांधी, और अब राहुल गांधी। आज तो मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव ही नहीं, पूरा कुटुंब ही इस प्रवाह में है। आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव, ग्वालियर घराने का सिंधिया परिवार, राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट, फारुक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला आदि ऐसे तमाम नाम हैं, जिन्हे राजनीति विरासत में मिली है। भारत में लोगों के बीच नेताओं की पहचान बहुत अच्छी नहीं है। जनप्रतिनिधि जो चुनाव से समय बेहद संवेदनशील अंदाज में जनता के बीच जाते हैं और उनसे लुभावने वादे करके वोट देने की अपील करते हैं। चुनाव जीतने के बाद क्या होता है इससे सभी वाकिफ हैं। जनता के लिए विधायक, सांसद या मंत्री जी के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं और उनके जमीन से जुड़े होने के दावे और दिखावे धराशाई हो जाते हैं।

जब से राजनीति ने पेशे का चोला ओढ़ा है, राजनेताओं से फायदे उठाने वाले लोग, संगठन, संस्थानों की भी बाढ़ सी आ गई है। अब राजनीति में बड़े नेताओं को ईमानदारी के सार्टिफिकेट बांटने के तरह तरह के चलन निकल पड़े हैं। एक रिवाज सर्वे कराकर ईमानदार नेता घोषित करने का है। इसके पीछे सर्वे कराने वाली एजेंसियों का उद्देश्य पार्टियों, नेताओं से सहानुभूति के साथ धन प्राप्त करना होता है। इसी तरह के तमगे दुनिया के शक्तिशाली देश भी बांटते रहते हैं। इसके पीछे उनका मकसद भारत में अपने औद्योगिक हित साधना होता है। मीडिया समूह भी तरह तरह के मानक बनाकर समय-समय पर स्वयं ईमानादीर के सर्टिफिकेट बांटते रहते हैं। इस रूप में सत्ताधारी दल का कृपापात्र बनने से उनके विज्ञापन का रास्ता साफ होता है। खेतों में फावड़ा चलाने वाले कमलाकनन इन्ही सब मिथकों को तोड़ते हैं। वह अपने जीवन से, तौर तरीकों से जनता को संदेश देते हैं कि मंत्री होने के बावजूद वह किस तरह किसी भी कीमत पर सफेदपोशों की सियासत से खुद को अलग किए हुए हैं।

हाल ही में आईपीएस किरण बेदी ने ट्विटर पर एक फोटो को साझा किया। इस अविश्वसनीय सी तस्वीर में कृषि मंत्री कमलाकनन खेत में फावड़े चलाते, हाथ में फसल लिए खेत से बाहर आते दिख रहे हैं। संदेश साफ है कि वह कृषिमंत्री ही नहीं, खाटी किसान भी हैं। अपने ट्वीट में किरण बेदी लिखती हैं- 'पहचानिए ये कौन हैं। ये पांडिचेरी के माननीय कृषि मंत्री श्री कमलाकनन हैं। वह एक सच्चे किसान हैं।' देश में कई राजनेता ऐसे रहे हैं जो कृषि मंत्री के पद पर तैनात रहे हैं लेकिन फसलों और खेती के बारे में उनकी सामान्य समझ भी लोगों को विचलित करती है। इस बीच कृषिमंत्री कमलाकनन की फोटो लोगों को ही नहीं, राजनेताओं को भी साफ संदेश देती है कि राजनीतिक पद संभालने का मतलब सफेदपोश हो जाना नहीं होता है। ऐसे मंत्री कमलाकनन की चाहे जितनी भी तारीफ की जाए, कम ही होगी।

हमे गर्व होता है स्वतंत्रता संग्राम के उन कुर्बानी देने वाले अपने पुरखों पर, जो हंसते हंसते शहीद हो गए, भगत सिंह, चंद्रशेखऱ आजाद, गणेश शंकर विद्यार्थी, आदि। उनके अलावा महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ राजेंद्र प्रसाद आदि आज भी हमारे लिए राजनीतिक प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। आधुनिक भारत में एपीजे अब्दुल कलाम जैसी शख्सियत भारत की राष्ट्रपति रही हैं। अटल बिहारी बाजपेई ने भारत को परमाणु शक्ति से संपन्न किया है। आज हमारे देश की राजनीतिक विडंबना हैरत से भर देने वाली है। इसे साफ शब्दों में कहें तो वह एक बिना लागत वाला सबसे मुनाफेदार धंधा हो चुकी है। पार्टियां कारपोरेट घरानों की तरह आचरण करने लगी हैं। इसी से उस पर से जनता का विश्वास का लगभग पूरी तरह उठ चुका है। भारत की राजनीति में आने के लिए बड़े-बड़े उद्योगपति करोड़ों रुपए खर्च करने लगे हैं। उद्योगपति जानते हैं कि सबसे आसान तरीके से किसी राजनेता का पल्लू थाम कर अनाप-शनाप पैसा बनाया जा सकता है। जब राजनेता सियासत के बल पर करोड़पति बन रहे हैं तो उद्योगपति अथवा अन्य लोगों को उस राह चलने का संदेश क्यों न मिले।

अब तो हर आदमी साफ-साफ कह देने से तनिक नहीं हिचकता है कि राजनेता देश की जनता को बेवकूफ बनाकर ठगते हैं, पैसा बनाते है। कल तक जिस आदमी के पास एक पैसा नहीं होता है, नेता बनने के बाद पूरे ऐशो-आराम के साथ करोड़पति-अरबपति बन जाता है। आए दिन उनसे जुड़े बड़े-बड़े घोटाले सुर्खियां बनते रहते हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि वह ऐसा क्यों करते हैं तो उनका मामूली सा जवाब होता है, सभी लोग राजनीति में यही तो कर रहे हैं। समाजवादी राजनीति का चोला ओढ़े एक नेता ने कहा था कि जो भी राजनीति में आता है, अपने फायदे के लिए कुछ न कुछ तो करता ही है। सब लोग पैसा बना रहे हैं तो उसे भी पैसा कमाना है। वह कहता है कि जब एक नेता देश के सवा सौ करोड़ लोगों को बेवकूफ बनाकर ताज पहन सकता है तो उसमें कोई तो काबिलियत है। ऐसी काबिलियत वह भी सीख रहा है, पैसा कमा रहा है। देश का विकास करने के लिए जो पैसा मिलता है, उसमें से कम से कम एक चौथाई तो उसे मिल ही जाता है और बाकी अधिकारी आपस में मिल-बांट लेते हैं। ऐसे दौर में कृषि मंत्री कमलाकनन राजनीतिक सरोकारों में सबसे पहले खुद के इकहरा होने का साफ संदेश देते हैं।

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