सरकार 24,000 रुपये प्रति माह से संबधित अधिसूचना का करे पालने : सुप्रीम कोर्ट
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि केंद्र सरकार को 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को अमान्य करने के बाद बैंक खातों से 24000 रुपये प्रति सप्ताह निकालने की अनुमति देने वाली अपनी अधिसूचना का अवश्य पालन करना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर, न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा है, कि ‘उन्हें (सरकार को) 24000 रुपये वाली अधिसूचना का तब तक पालन करना चाहिए जब तक कि उसमें संशोधन नहीं किया जाता है।’’ पीठ ने यह बात नोटबंदी के कदम को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के यह कहने के बाद कही कि लोगों के पास नकदी नहीं है जिसकी वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
सिब्बल ने कहा है कि आरबीआई की अधिसूचना के तहत प्रति सप्ताह 24000 रपये निकालने की अनुमति है और किसी को भी इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने पीठ से कहा, ‘अटॉर्नी जनरल कह रहे हैं कि उनके पास मुद्रा की समस्या है और उनके पास पर्याप्त नकदी नहीं है। अगर उनके पास नकदी नहीं है तो उन्हें यह अधिकार नहीं देना चाहिए था।’ सिब्बल ने यह भी कहा कि जिला केंद्रीय बैंकों (डीसीसीबी) को पुराने नोटों को बदलने और जमा करने की अनुमति नहीं दी गई है, जिससे इन बैंकों का कारोबार प्रभावित हो रहा है। इन बैंकों ने 8 नवंबर को नोटबंदी की अधिसूचना लागू होने के बाद से तीन दिनों में आठ हजार करोड़ रुपये जुटाए थे।
इन दलीलों का प्रतिरोध करते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि देशभर में डीसीसीबी द्वारा एकत्र किए गए 8000 करोड़ रुपये के पुराने नोटों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में जमा करने की अनुमति दी गई है। डीसीसीबी ने तीन दिनों में 8000 करोड़ रुपये एकत्रित किए हैं। हमने उन्हें इस रकम को आरबीआई के केवाईसी मानदंडों के पालन की शर्त पर जमा करने की अनुमति दे दी है और हम दो दिन के भीतर इस संबंध में अधिसूचना जारी करेंगे।’ इसपर पीठ ने कहा, कि ‘वे अपना व्यापार जारी रखना चाहते हैं। दूसरी बात यह है कि अन्य बैंकों की तुलना में उनके साथ भेदभाव क्यों किया गया है।’ अटॉर्नी जनरल ने कहा कि डीसीसीबी आरबीआई के नियमों से संचालित नहीं होते हैं और उन्हें पुराने नोट जमा करने की अनुमति देने में समस्या यह थी कि ‘बिना हिसाब वाली संपत्ति हो सकती है और इस बात का पता लगाने का कोई तरीका नहीं था कि किसने इसे जमा किया है।’ पीठ ने रोहतगी से कहा, ‘लोग बड़ी संख्या में धन जमा कर रहे हैं। आपको उन्हें मुद्रा देनी है। आप भुगतान को व्यवस्थित कर रहे हैं। कितनी अवधि में आप इसे करेंगे। यही हम आपसे जानना चाहते हैं। मुद्रा की कमी की आपकी समस्या को हम समझते हैं लेकिन आपको कोई मानदंड रखना चाहिए था।’ जब पीठ ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि कब आठ हजार करोड़ रुपये डीसीसीबी बैंक जो आरबीआई में जमा करेंगे उन्हें लौटाए जाएंगे तो रोहतगी ने कहा कि वह इसके लिए कोई निर्धारित समय-सीमा नहीं दे सकते क्योंकि यह एक समान नीति नहीं हो सकती है और इसे रोजाना के आधार पर देखना होगा।’ पीठ ने कहा, ‘तब यह अप्रत्याशित है। आपकी एक नीति अवश्य होनी चाहिए। यह नीति सभी बैंकों के लिए समान होनी चाहिए।’ हालांकि, केंद्र को पीठ से कई सवालों का सामना करना पड़ा जिसमें पूछा गया कि क्यों सरकार संचालित अस्पतालों में पुराने नोट नहीं स्वीकार किये जा रहे हैं जबकि तथ्य यह है कि बाजार में पर्याप्त नकदी नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘जब आप जनता को पर्याप्त नकदी देने में सक्षम नहीं हैं तो आपको सरकारी अस्पतालों में आपको पुराने नोटों को चलाने की अनुमति देनी चाहिए।’ अटॉर्नी जनरल ने पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट चलाने की अनुमति देने का उदाहरण देते हुए कहा कि इसे रोकना पड़ा क्योंकि छूट का दुरुपयोग हो रहा था और पेट्रोल पंप छोटे नोट ले रहे थे, जबकि 1000 और 500 रुपये के नोट ही जमा कर रहे थे।' रोहतगी ने कहा, ‘अब तक 13 लाख करोड़ रुपये आ चुके हैं। ये कार्यपालिका की नीति है और अदालतें यह नहीं कह सकतीं, कि क्या छूट होनी चाहिए।’
सरकारी अस्पतालों में पुराने नोटों को स्वीकार नहीं किए जाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा, ‘वैध मुद्रा बाजार में भी उपलब्ध है और भुगतान करने के अन्य तरीके भी हैं।’ अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा कि पांच लाख करोड़ रुपये के नए नोट बाजार में प्रचलन में हैं और इसके अलावा 2.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 100 और 50 रुपये के पुराने नोट पहले से हैं।