किसानों को डिजिटल संसार से जोड़ रहा है एक किसान, ब्लॉगर और आंत्रप्रेन्योर
2006 से ‘अनुभव’ नाम से लिख रहे हैं ब्लॉग...
ब्लॉग के लिए मिला सम्मान...
किसानों को सिखा रहें हैं ऑर्गेनिक और दोहरी खेती...
गिरीन्द्र के काम जानने आते हैं देश विदेश से लोग...
लोग अक्सर काम की तलाश में गांव छोड़कर शहर की ओर जाते हैं लेकिन बिहार के पूर्णिया जिले के एक गांव में रहने वाले गिरीन्द्र नाथ झा ने इस परिपाटी को बदलने की कोशिश की है। करीब 12 साल तक दिल्ली, कानपुर जैसे बड़े शहरों में रहने के बाद गिरीन्द्र नाथ झा ना सिर्फ अपने गांव लौटे बल्कि आज वहां रहकर रूलर टूरिज्म को बढ़ावा दे रहें हैं, इतना ही नहीं खेती में नये नये प्रयोग कर पर्यावरण की रक्षा भी कर रहे हैं। खास बात ये है कि वो एक जाने माने ब्लॉगर भी हैं इस कारण उनसे मिलने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से लोग आते हैं।
गिरीन्द्र की स्कूली पढ़ाई पूर्णिया जिले से हुई लेकिन ग्रेजुएशऩ करने के लिए उन्होंने दिल्ली का रूख किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने वाले गिरीन्द्र को इतिहास और अर्थशास्त्र से बेहद लगाव है। उनका मानना है कि “किसी भी इंसान को अपने इतिहास की जानकारी होनी चाहिए और जीने के लिए हर कदम पर अर्थशास्त्र जरूरी होता है।” साल 2006 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी यानी सीएसडीएस से उन्होने फेलोशिप पूरी की। इसके बाद उन्होने करीब 3 साल दिल्ली में रहकर पत्रकारिता की और साल 2009 में जब उनकी शादी हुई तो वो कानपुर चले गये। यहां वो एक बड़े दैनिक अखबार के लिए पत्रकारिता करने लगे। लेकिन गिरीन्द्र ने तय कर रखा था कि एक दिन उनको अपने गांव वापस लौटना है। इस बीच उनके पिता की तबियत खराब हुई तो उनको अपने गांव वापस लौटना पड़ा। तब उन्होने देखा कि वो गांव में रहकर वो सब कुछ कर सकते हैं जो शहरों में रहकर करते हैं। इस तरह वो जून, 2012 में वो पूर्णिया लौट आए।
पूर्णिया शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर उनका गांव ‘चनका’ है। जहां पर वो आज अपनी सोच को साकार कर रहे हैं। आज गिरीन्द्र किसान, आंत्रप्रेन्योर और ब्लॉगर की भूमिका बखूबी से निभा रहे हैं। उनका कहना है कि अब बिहार वैसा नहीं हैं जैसा लोग सोचते हैं। गिरीन्द्र का कहना है कि गांव आकर उन्होने सबसे पहले खेती पर ध्यान देना शुरू किया। इसके लिए उन्होने सबसे पहले दोहरी खेती करनी शुरू की। सबसे पहले उन्होने धान, मक्का और आलू की खेती के साथ कदम्ब के पेड़ों की खेती शुरू की। कदम्ब के पेड़ों से प्लाइवुड तैयार किया जाता है। इस तरह उनके लिए दूसरी फसलों के साथ आमदनी का साधन भी तैयार होने लगा। इसके अलावा कदम्ब के पेड़ की पत्तियां जो खेतों में गिरती हैं वो खाद में बदल जाती हैं। उनका ये आइडिया आसपास के लोगों को भी पसंद आया। जिसके बाद दूसरे किसान भी इस तरह की दोहरी खेती कर रहे हैं। इतना नहीं उन्होने ऑर्गेनिक खेती पर भी जोर देना शुरू किया है। इसके लिए वो आसपास के गांव में रहने वाले दूसरे किसानों को ना सिर्फ जागरूक कर रहे हैं बल्कि उनको सिखा भी रहे हैं कि ऑर्गेनिक खेती कैसे की जाती है।
अब गिरीन्द्र की कोशिश है कि किसानों को डिजिटल दुनिया से जोड़ने की, ताकि वो अपनी जमीन से ज्यादा से ज्यादा पैदावार ले सकें। गिरीन्द्र का कहना है कि “हम लोग किसानों को खेती के नये नये तरीके सिखाने के लिए यूट्यूब और संचार के दूसरे माध्यमों का इस्तेमाल करते हैं।” गिरीन्द्र कहते हैं कि “मुझे पता है कि सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा हथियार है क्योंकि आप इसके जरिये बहुत कुछ कर सकते हैं।” इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होने पिछले साल दिसंबर में अपने गांव में सोशल मीडिया सम्मेलन का आयोजन किया था और अब उनकी योजना इस साल दिसंबर में इसे दोबारा कराने की है। इस सम्मेलन में सोशल मीडिया से जुडे आसपास के गांव के लोग हिस्सा लेते हैं और किसानों के साथ नई नई जानकारियां साझा करते हैं।
गिरीन्द्र देश में ही नहीं दुनिया भर में लोगों के साथ फेसबुक के जरिये सम्पर्क में रहते हैं। तभी तो उनके काम को समझने, गांव की संस्कृति को जानने और शांति की तलाश में देश के कई राज्यों के अलावा ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से भी लोग उनसे मिलने उनके गांव ‘चनका’ आते हैं। उनका कहना है कि पिछले दो सालों के अंदर 117 लोग उनके गांव आ चुके हैं। इस दौरान उनके गांव में आने वाले बाहरी लोगों को ना सिर्फ गांव भर में घुमाया जाता है बल्कि वहां के रहन सहन और खान पान का अनुभव भी कराया जाता है। इसके अलावा लोग गांव में आ रहे बदलाव और संथाल आदिवासी लोगों की कला को देखते हैं और फोटोग्राफी का लुत्फ उठाते हैं।
गिरीन्द्र की असली पहचान एक ब्लॉगर के तौर पर है। वो साल 2006 से ‘अनुभव’ नाम से नियमित तौर पर ब्लॉग लिखते हैं। इसमें वो सिर्फ गांव की बात करते हैं, गांव में नया क्या हो रहा है उसकी जानकारी देते हैं साथ ही छोटे बड़े चुनावों को किसान की नजर से देखते हुए अपनी राय रखते हैं। उनके शानदार ब्लॉग की वजह से पिछले दिनों दिल्ली सरकार और एक राष्ट्रीय हिन्दी न्यूज चैनल ने हिंदी दिवस के मौके पर उनको सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉगर का सम्मान दिया। उनके लिखे ब्लॉग किस कदर प्रसिद्ध हैं इस बात का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि कई बार 15 हजार से ज्यादा लोग उनका ब्लॉग पढ़ने के लिए आते हैं। लोग इस बात को लेकर जिज्ञासु रहते हैं कि कब उनका नया ब्लॉग आने वाला है। कई लोग नियमित तौर पर उनको मेल भी लिखते हैं। इतना ही नहीं उनके कई ब्लॉग बड़े हिंदी अखबारों में भी छपते रहे हैं। गिरीन्द्र का कहना है कि “ब्लॉग ने मुझे बड़ी पहचान दी है देश में और दुनिया में और मैं इसे लगातार लिखता हूं।” अब जल्द ही उनकी लिखी एक किताब भी बाजार में आने वाली है। जो लघु प्रेम कथा पर आधारित है।
गिरीन्द्र का कहना है कि “सोशल मीडिया बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म है जो बहुत कुछ दे सकता है, यदि कोई उसका सदुपयोग करता है तो। इसके इस्तेमाल के लिए ऐसी कोई बाध्यता भी नहीं होती कि आपको दिल्ली या किसी बड़े शहर में ही रहना पड़े। मैं तो महानगर से कई सौ किलोमीटर दूर हूं बावजूद मैं वो सबकुछ कर रहा हूं जो वहां पर रहकर कर सकता था। अगर आप कुछ अलग करना चाहते हैं तो कहीं से भी कर सकते हैं। बस आपके पास इंटरनेट होना चाहिए और लोगों के सम्पर्क में रहना चाहिए।”
ब्लॉग : http://www.anubhaw.blogspot.in/