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महिलाओं का खतना: एक भयावह और नुकसानदेह प्रथा

यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 20 करोड़ ऐसी औरतें हैं, जिनका खतना हुआ है और आने वाले 15 सालों में ये संख्या और बड़ा रूप लेने वाली है...

महिलाओं का खतना: एक भयावह और नुकसानदेह प्रथा

Tuesday June 20, 2017 , 5 min Read

महिलाओं के जननांगों को विकृत करने की इस परंपरा को फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या एफजीएम का नाम दिया गया है जिसे आम बोलचाल में अकसर महिलाओं का खतना कहा जाता है। यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 20 करोड़ ऐसी औरतें जी रही हैं, जिनका खतना हुआ है। रिपोर्ट में ये भी है कि ये संख्या आने वाले 15 सालों में बढ़ने वाली है।

फोटो साभार: Shutterstock

फोटो साभार: Shutterstock


एफजीएम महिलाओं में कई तरह की सामाजिक और मानसिक समस्याओं को जन्म देता है। महिलाओं का खतना का बेहद क्रूर, दर्दनाक और अमानवीय होता है। ये एक पुराना रिवाज है। इस प्रथा का सबसे पहला जिक्र रोमन साम्राज्य और मिस्र की प्राचीन सभ्यता में मिलता है।

उत्तरी मिस्र को अपनी उत्पत्ति का मूल स्रोत मानने वाले एक समुदाय विशेष के लोग महिला खतना को अपनी परम्परा और पहचान मानते हैं। ये समुदाय इस्मायली शिया समुदाय का एक उप समुदाय है,पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में रहता है। यही वजह है कि पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में स्त्रियों का खतना करने का रिवाज आज भी जारी है।

मिस्र के संग्रहालयों में ऐसे अवशेष रखे हैं, जो खतना प्रथा की पुष्टि करते हैं। लड़कियों का खतना करने के पीछे एक संकीर्ण पुरुषवादी मानसिकता जिम्मेदार है, कि वो लड़की युवा होने पर अपने प्रेमी के साथ यौन संबंध न बना सके। उत्तरी मिस्र को अपनी उत्पत्ति का मूल स्रोत मानने वाले एक समुदाय विशेष के लोग महिला खतना को अपनी परम्परा और पहचान मानते हैं। ये समुदाय इस्मायली शिया समुदाय का एक उप समुदाय है, पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में रहता है। यही वजह है कि पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में स्त्रियों का खतना करने का रिवाज आज भी जारी है। हालांकि मुस्लिमों के प्रामाणिक इस्लामिक धर्मग्रंथों में स्त्री खतना का जिक्र नहीं है। वहां पर पुरुष खतना और उसके गुणों की विस्तार से चर्चा की गई है। भारत में इसे लेकर कोई कानून नहीं है। संयुक्त राष्ट्र खतने की प्रथा को मानवाधिकारों का उल्लंघन मानता है।

इस दर्द से गुजर चुकीं मासूमा रानाल्वी बीबीसी को बताती हैं कि 'जब मैं सात साल की थी, तब मेरी दादी मुझे आइसक्रीम और टॉफियां दिलाने का वायदा कर बाहर ले गईं। मैं बहुत उत्साहित थी और उनके साथ ख़ुशी-ख़ुशी गई। वह मुझे एक जर्जर पुरानी इमारत में ले गईं। मैं सोच रही थी कि यहां कैसा आइसक्रीम पार्लर होगा। वह मुझे एक कमरे में ले गईं, एक दरी पर लिटाया और मेरी पैंट उतार दी। उन्होंने मेरे हाथ पकड़े और एक अन्य महिला ने मेरे पैर। फिर उन्होंने मेरी योनि से कुछ काट दिया। मैं दर्द से चिल्लाई और रोना शुरू कर दिया। उन्होंने उस पर कोई काला पाउडर डाल दिया। मेरी पैंट ऊपर खींची और फिर मेरी दादी मुझे घर ले आईं।' यह 40 साल पुरानी बात है लेकिन मासूमा कहती हैं, कि उनके साथ जो हुआ वह उसके सदमे से अब भी उबर नहीं बन पाई हैं ।

क्या है महिला- खतना?

फीमेल जेनिटल कटिंग या फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन यानी खतना में महिलाओं के बाह्य जननांग के कुछ हिस्से को काट दिया जाता है। इसके तहत क्लिटोरिस के ऊपरी हिस्से को हटाने से लेकर बाहरी-भीतरी लेबिया को हटाना और कई समुदायों में लेबिया को सिलने की प्रथा तक शामिल है। एक सामाजिक रीति के रूप में इस प्रथा की जड़ें काफी गहरी हैं और इसे बेहद आवश्यक माना जाता है।

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"यूनिसेफ के आंकड़े कहते हैं कि जिन 20 करोड़ लड़कियों का खतना होता है, उनमें से करीब साढ़े चार करोड़ बच्चियां 14 साल से कम उम्र की होती हैं।"

किताब 'द हिडन फेस ऑफ ईव' में लेखिका नवल अल सादावी कहती हैं, 'खतना के पीछे धारणा यह है कि लड़की के यौनांगों के बाहरी हिस्से के भाग को हटा देने से उसकी यौनेच्छा नियंत्रित हो जाती है, जिससे यौवनावस्था में पहुंचने पर उसके लिए अपने कौमार्य को सुरक्षित रखना आसान हो जाता है।' सादावी को खतना की सबसे दुष्कर विधि 'इनफिबुलेशन' की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा था, जिसमें वजाइना के बाह्य हिस्से को काट दिया जाता है और मासिक धर्म और अन्य शारीरिक स्रावों के लिए थोड़े से हिस्से को छोड़ कर शेष भाग को सिल दिया जाता है।

खतना से होने वाले नुकसान

खतना से महिलाओं को दो तरह के दुष्परिणाम का सामना करना होता है। एक तुरंत होने वाले नुकसान और दूसरा लंबे समय तक बने रहने वाला नुकसान। इससे महिलाओं को रक्तस्राव, बुखार, संक्रमण, सदमा जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कुछ मामलों में उनकी मृत्यु भी हो जाती है। माना जाता है, कि महिलाओं का खतना करने से उन्हें मूत्रत्याग, संभोग या प्रजनन के समय दिक्कतें होती हैं।

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे महिलाओं के लैंगिक आधार पर भेदभाव कहा है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस पर कानूनन रोक है।

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