छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में बीपीओ केंद्र ने युवाओं के सपनों को लगाये नये और मजबूत पंख
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में युवाओं के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण बीपीओ की शुरुआत की गयी है। इस बीपीओ की वजह से छोटे शहरों और गाँवों के युवाओं को भी अपने राज्य में ही रहते हुए बीपीओ में काम करने और अच्छी तनख्वाह पाने का मौका मिला है, जो कि अपने आप में एक सराहनीय पहल है...
तृप्ति और केशव की तरह ही 130 अन्य युवाओं को भी राजनांदगांव के पहले बीपीओ से रोजगार मिला है। सभी खुश हैं और इस नौकरी की वहज से उनके सपनों को पंख लग गए हैं, साथ ही नौकरी की वजह से घर-परिवार के भी मजबूत होने का भरोसा उन्हें मिला है।
तृप्ति जोगलेकर और केशव जोगलेकर भाई-बहन हैं। 25 साल की तृप्ति बी. एससी फाइनल ईयर में हैं और केशव बी. एससी फर्स्ट ईयर में। इनके पिता मधुकर दत्तात्रेय जोगलेकर छत्तीसगढ़ सरकार के लोक निर्माण विभाग में टाइम कीपर हैं। इनकी मासिक तनख्वाह करीब बीस हजार रुपये है। माँ सुनीता गृहिणी हैं। जोगलेकर परिवार राजनांदगाँव शहर के नवागांव इलाके में रहता है।
तृप्ति और केशव दोनों के कई सपने हैं। दोनों देश और समाज में अच्छा नाम कामना चाहते हैं। दोनों चाहते हैं कि कोई ऐसा काम करें, जिससे रुपये भी खूब मिलें और शोहरत भी मिले। दोनों यह नहीं जानते थे कि उनके सपने कैसे साकार होंगे, मौका कब और कैसे मिलेगा। शुरू में तो दोनों खूब पढ़ाई-लिखाई कर बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल करने और इन्हीं डिग्रियों के दम पर तगड़ी नौकरी पाने का सपना देखने लगे थे। लेकिन, दोनों के सामने एक बड़ी समस्या थी। समस्या थी पूंजी की। पिता की तनख्वाह इतनी ज्यादा नहीं है कि वे तृप्ति और केशव को प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी के लिए किसी बढ़िया संस्थान से प्रशिक्षण /कोचिंग दिलवा सकें। बड़ी मुश्किल से घर-परिवार चल रहा था। बीस हजार रुपये में चार लोगों की गुजर-बसर हो रही थी। तंगी तो नहीं थी, लेकिन आर्थिक स्थिति मजबूत भी नहीं थी।
तृप्ति और केशव भी स्नातक की डिग्री लेकर तुरंत किसी न किसी नौकरी पर लगने की सोचने लगे, ताकि वे अपने माता-पिता की हर तरह से मदद कर सकें। इसी बीच उन्होंने समाचार पत्र में सरकार के 'आरोहण' (बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) बीपीओ के बारे में जाना। भाई-बहन को पता चला कि छत्तीसगढ़ सरकार राजनांदगांव जिले के ग्राम टेडेसरा में बीपीओ केन्द्र की शुरुआत करने जा रही है। उन्हें यह भी पता चला कि बीपीओ में युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार के अवसर दिखाये जाएंगे। सरकरी विज्ञापन में बताया गया कि बीपीओ में दाखिले की योग्यता के लिए परीक्षा होगी। तृप्ति और केशव ने बिना समय गवाएँ आवेदन किया। परीक्षा हुई, इंटरव्यू हुआ और दोनों सेलेक्ट हो गये। भाई-बहन दोनों को बीपीओ में 45 दिन तक प्रशिक्षण दिया गया।
इसके बाद हैदराबाद की कंपनी ई-कैटलिस्ट ग्लोबल बिजनेस इनक्यूबेटर प्राइवेट लिमिटेड ने तृप्ति और केशव को ‘डेटा ऑपरेटर’ के तौर पर नौकरी पर रख लिया। भाई-बहन को आठ-आठ हजार महीने की नौकरी मिल गयी। दोनों अब डेटा ऑपरेटर हैं और कई सारे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को ‘डिजिटल’ बना रहे हैं। तृप्ति और केशव को कई बातों की खुशी है। सबसे बड़ी खुशी यही है कि ग्रेजुएशन का कोर्स पूरा होने से पहले ही दोनों को नौकरी मिल गयी। उन्हें भरोसा हो गया कि अब घर की स्थिति सुधरेगी और वे अपने माता-पिता की आर्थिक रूप से भी मदद कर सकेंगे। दोनों को इस बात की भी खुशी है कि वे अपने जिले के पहले बीपीओ के पहले बैच के युवा हैं।
तृप्ति कहती हैं, “मैं आगे भी बीपीओ में ही काम करना चाहूंगी। मेरा सपना है 'टीम लीडर' बनने का। मैं दूसरे युवाओं को ट्रेनिंग देना चाहती हूँ।" केशव का लक्ष्य है कि वे बीपीओ से मिलने वाले अपने अनुभव के आधार पर विदेश जाकर नौकरी करें। उन्हें भरोसा है कि वे भारत के महानगरों से होते हुए विदेश जाएंगे।
तृप्ति और केशव की तरह ही 130 अन्य युवाओं को भी राजनांदगांव के पहले बीपीओ से रोजगार मिला है। सभी खुश हैं और इस नौकरी की वहज से उनके सपनों को पंख लग गए हैं। नौकरी की वजह से घर-परिवार के भी मजबूत होने का भरोसा उन्हें मिला है।
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में युवाओं के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण बीपीओ की शुरुआत की गयी है। इस बीपीओ की वजह से छोटे शहरों और गाँवों के युवाओं को भी अपने राज्य में ही रहते हुए बीपीओ में काम करने और अच्छी तनख्वाह पाने का मौका मिला है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ राजनांदगांव के इस बीपीओ में आकर बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें नौकरी देना चाहती हैं ताकि उनकी जरूरतें पूरी हो सकें। बीपीओ की वजह से दोनों पक्षों को फायदा है, कंपनियों को युवा-शक्ति मिलेगी और युवाओं की नौकरी से ताकत बढ़ेगी।
"ऐसी रोचक और ज़रूरी कहानियां पढ़ने के लिए जायें Chhattisgarh.yourstory.com पर..."
यह भी पढ़ें: दंतेवाड़ा में कलेक्टर सौरभ कुमार ने बदल दी सरकारी स्कूलों की तस्वीर