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अब ऑटो के लिए नहीं करनी पड़ेगी मारा-मारी

एक टैब पर मौजूद है ऑटोएनकैब की शानदार सर्विस

अब ऑटो के लिए नहीं करनी पड़ेगी मारा-मारी

Thursday July 16, 2015 , 4 min Read

सुबह-सुबह ऑफिस जाने से पहले ऑटो के लिए मारा-मारी, कोई ऑटो वाला जाने को तैयार नहीं होता, तो कोई मीटर से दोगुना पैसे मांगता है, तो कोई 20 या 30 रुपये ज्यादा मांगता है। भारत में ऑटो की यही कहानी है। भारत में ऑटो सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला और इसके साथ ही दुर्भाग्यवश सबसे कम भरोसे वाला ट्रांसपोर्ट का माध्यम है। एक तरफ जहां दुनिया भर के टैक्सी बाजार पर उबर कब्जा करती जा रही है, तो दूसरी तरफ कई लोग ये मानते हैं कि भारत में ऑटोरिक्शा इंडस्ट्री के जरिए कमाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस अव्यवस्थित क्षेत्र को व्यवस्थित करने के मकसद से ही ऑटोएनकैब की शुरुआत की गई।

ऑटोएनकैब की सह-संस्थापक विनती दोषी जब अपनी बेटी को मेट्रो स्टेशन तक ड्रॉप करने के लिए जाया करती थीं, तब वो ये देखकर हैरान हो गईं कि गुड़गांव में जहां वो रहती हैं, वहां के कुछ इलाके ऐसे हैं जहां अब भी सुरक्षित और भरोसेमंद सार्वजनिक यातायात के साधन नहीं हैं। वो सोचा करती थीं कि अगर ऐसा होता कि बस अपने स्मार्टफोन पर बटन दबाते ही उन्हें ऑटो की सवारी मिल जाती तो कितना अच्छा होता।

औसत भारतीय हर रोज बेहद ही अव्यवस्थित ऑटो की सेवा को मजबूर होता है। तभी उनके मन में इस सेक्टर में बदलाव लाने का विचार आया। इससे ऑटो ड्राइवर्स को भी सुविधा हुई कि भारत जैसे देश में वो भी बेहतर तरीके से अपना कारोबार चला सकें। ऑटोएनकैब एक यात्री और एक ऑटो ड्राइवर को एक ऐप के जरिए मिलवाता है। ये एक ऐसा ऐप है जो किसी भी स्मार्टफोन पर चल सकता है।

सबकुछ उबर की तरह

विनती कहती हैं कि ऑटोएनकैब ऑटो ड्राइवर और यात्री की जरूरतों और उनकी मांगों को पूरा करने पर फोकस्ड है। विनती आगे बताती हैं, “हम ऑटो को सिर्फ यात्रा कराने वाली एक गाड़ी के तौर पर नहीं देखते हैं। यह ऑटो चलाने वाले समुदाय के लिए एक अच्छा कारोबार कराने का भी जरिया है।” स्थानीय स्तर पर लोगों को ऑटो सेवा मुहैया कराने के लिए ऑटोएनकैब की टीम की कोशिश होती है कि वो ऑटो ड्राइवर की कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सवारी उपलब्ध कराए। इसके साथ ही ड्राइवर को सवारी के अलावा लॉजिस्टिक और डेलिवरी का काम भी दिलाने की कोशिश की जाती है। टीम बहु-भाषीय ऐप विकसित करने के लिए भी काम कर रही है।

एक बार बातचीत के दौरान विनती को पता चला कि ट्रैवल इंडस्ट्री में अच्छी जानकारी रखने वाले आलोक साहनी ग्राहकों को जीपीएस आधारित सिस्टम के तहत ऑटो रिक्शा दिलाने के काम के बारे में सोच रहे हैं। जल्दी ही अमेरिका में उद्यमिता का अनुभव रखने वाले सुरेन भी इनके साथ आ गए और इस तरह इन तीनों की तिकड़ी जमा हो गई।

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विकास

गुड़गांव में ऑटोएनकैब सितंबर, 2014 से संचालित हो रहा है। टीम का दावा है कि अब तक 15,000 से ज्यादा ग्राहकों ने इस ऐप को डाउनलोड कर लिया है और टीम हर रोज 1000 से ज्यादा लेन-देन कर रही है। 90 फीसदी से ज्यादा सवारी नियमित ग्राहकों की होती हैं। अब तक 700 ड्राइवर्स ने इस ऐप पर अपना पंजीकरण कराया है।

टीम फिलहाल 500 से ज्यादा ड्राइवर्स के साथ डेलिवरी के काम का प्रयोग कर रही है। शुरुआत में ये लोग हर रोज 100 डेलिवरी कर रहे हैं और इसके लिए इन लोगों ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, सुपरमार्केट चेन्स और ऑउटलेट्स के साथ करार किया है और उनकी जरुरतों के मुताबिक उनकी डेलिवरी काम करवा रहे हैं। ऑटोएनकैब ने हाल ही में 400,000 डॉलर की एंजेल फंडिंग हासिल की है, इससे पहले दस लाख डॉलर का भी निवेश मिला था। ये लोग ड्राइवर से प्रति लेन-देन एक तय रकम वसूलते हैं।

बाजार

इसमें कोई शक नहीं कि देश में बीस लाख ऑटो रिक्शा के साथ ये बाजार सबसे बड़ा है और औसत प्रति सवारी 80 रुपये खर्च करता है। इस बाजार में कुछ दूसरे प्लेयर भी हैं, जैसे ओला ऑटो और ऑटोवाले। विनती का कहना है, “ये बाजार करीब 12 अरब डॉलर का है, ऐसे में इस बाजार का सिर्फ दस फीसदी पर भी कब्जा करना काफी बड़ी बात होगी। फिलहाल, मुकाबले के नाम पर ये बाजार अभी असंतृप्त है, इसलिए इसमें हर तरह की संभावनाएं हैं। हम लोग इस क्षेत्र में कुछ नए लोगों को देख रहे हैं, लेकिन हमें पूरा भरोसा है कि इस क्षेत्र में पहला होने का फायदा हमें ही मिलेगा क्योंकि हमारा बिजनेस मॉडल और लोगों के साथ हमारे संबंध इसमें मददगार साबित होंगे।”

टीम जल्दी ही अपने काम को नोएडा और दूसरे शहरों में अपने काम को फैलाना चाहती है। इसके साथ ही ये लोग डेलिवरी सर्विस मॉडल को गुड़गांव में अपने मौजूदा कारोबार में ही जोड़ना चाहते हैं और फिर इसे उन शहरों में दोहराना चाहते हैं जहां वे अपनी सेवाएं शुरू करेंगे।