जो भटकता था दर-दर, उसका सालाना टर्नओवर है अब करोड़ों में
कभी दर-दर भटकता था ये इंजीनियर आज कमाता है करोड़ों...
मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की फिर भी हजार-बारह सौ रुपए पर कभी यहां, कभी वहां नौकरी कर दिन काटते रहे, घर-गृहस्थी घिसटने लगी, बच्चों की पढ़ाई छूट गई लेकिन नीरज ने हार नहीं मानी और वक्त उनके साथ हो लिया। आज उनकी कंपनी का सालाना टर्न ओवर करोड़ों में पहुंच चुका है। अब उन्हें नौकरी की क्या दरकार, खुद उनके यहां तमाम लोग नौकरी कर रहे हैं।
नीरज पांचाल ने आज से लगभग सात वर्ष पहले ऑयल पंप बॉडी बनाने की साझेदारी में अपनी फैक्ट्री लगाई थी। उस वक्त तो उनकी कंपनी करोड़ों के घाटे में चली गई। बैंक के कर्ज का दबाव उन्हें भारी पड़ने लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। तीन साल बाद उन्होंने उत्तराखंड के रुद्रपुर स्थित सिडकुल में एचएसपी टेक्नॉलोजी कंपनी खड़ी कर दी।
सच कहा है कि मंजिलें उन्हीं को मिलती, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। नीरज पांचाल ने खुली आंखों सपने देखे, हौसले के पंखों ने उड़ान भरी और वह करोड़ों की कंपनी के मालिक बन गए। ऑटोमोबाइलऑयल पंप की बॉडी की किफायती डिजाइन तैयार कर इस किसान-पुत्र ने दो साल के भीतर ही बाजार पर कब्जा कर लिया। आज रुद्रपुर सिडकुल में उनकी फैक्टरी 16 लाख ऑयल पंप बॉडी का निर्माण कर रही है।
आज युवा उद्यमियों के सामने भले ही बाजार की कठिन चुनौतियां मौजूद हैं, वे पत्थर पर दूब उगाने जैसी अपनी मेहनत-मशक्कत और हुनर के बूते हर तरफ सफलता के झंडे लहरा रहे हैं। युवा उद्यमी अगर अपने काम में गुणवत्ता और बेहतरी लाते हैं उन्हें उसका अच्छा प्रतिफल भी मिल रहा है। ऐसे में वे स्टार्टअप में निराश होने की जरूरत नहीं है। उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर का एक छोटा सा उपनगर है खतौली, जहां के युवा उद्यमी इंजीनियर नीरज पांचाल की कंपनी का सालाना टर्नओवर करोड़ों में पहुंच चुका है।
आज के समय में जो भी युवा इनिशियेटिव ले रहे हैं, चैलेंज का सामना कर रहे हैं, उनकी कामयाबियां भी सुर्खियों में आ रही हैं। सरकारें और प्रशासन भी उद्यमी बनने की ललक पैदा करने के उद्देश्य से तरह तरह के अभियान चला रहे हैं। ऐसे में युवा वर्ग रोजगार की तलाश की बजाए रोजगार पैदा करने में दिलचस्पी ले तो वह प्रकारांतर से युवा वर्ग के सफल उद्यमी बनने का मनोविज्ञान भी समाज में विकसित करता है। उद्यमिता वैयक्तिक गुणों के साथ-साथ सामूहिक प्रयासों पर भी निर्भर करती है लेकिन इसके साथ उद्यमिता की भावना पैदा करना भी बेहद जरूरी है। गौरतलब है कि ऐसे युवा उद्यमियों के लिए बैंक भी हर संभव सहयोग की वचनबद्धता दोहरा रहे हैं। नियमों एवं प्रावधानों की उन्हें जानकारी दे रहे हैं। नीरज पांचाल ने आज से लगभग सात वर्ष पहले ऑयल पंप बॉडी बनाने की साझेदारी में अपनी फैक्ट्री लगाई थी। उस वक्त तो उनकी कंपनी करोड़ों के घाटे में चली गई। बैंक के कर्ज का दबाव उन्हें भारी पड़ने लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
तीन साल बाद नीरज ने उत्तराखंड के रुद्रपुर स्थित सिडकुल में एचएसपी टेक्नॉलोजी कंपनी खड़ी कर दी। उसमें लगभग सौ कर्मी काम संभालने लगे। आज रॉयल इनफिल्ड, यामाहा, हीरो, सुजूकी, बजाज, होंडा जैसी बड़ी कंपनियां अपने वाहनों में नीरज की कंपनी में तैयार अपेक्षाकृत सस्ती ऑयल पंप बॉडी इस्तेमाल कर रही हैं। उनकी कंपनी में नई तकनीक की कॉस्टिंग डाई से स्कूटी, बाइक, स्कूटर के ऑयल पंप की बॉडी बनाई जा रही है, जिनकी कीमत अन्य कंपनियों से काफी सस्ती है, इसलिए उनकी डिमांड बढ़ती जा रही है।
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"जहां तक ऐसे युवा उद्यमियों के उठ खड़े होने, कामयाब होने की बात है, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत कम पढ़े-लिखे युवाओं को भी रोजगार से जोड़ने की कोशिशें की जा रही हैं। तमाम युवक-युवतियां पार्लर, सिलाई, कम्प्यूटर कोर्स सीख रहे हैं। उत्तीर्ण युवाओं को कोर्स कम्प्लीशन सर्टिफिकेट दिए जा रहे हैं, जिसके आधार पर वे निजी अथवा सरकारी सेक्टर में रोजगार पा सकें। पहले ऐसे युवाओं को सेंटर पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है। इसके बाद उनका प्री-सेशन होता है, जिसमें प्रशिक्षण के लिए उनका चयन किया जाता है। कोर्स का प्रमाण-पत्र देकर उन्हें शासन की योजना के तहत जॉब प्लेसमेंट और रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाएं जाते हैं। ऐसे युवाओं को खुद के रोजगार के लिए 2.5 लाख से 5 लाख रूपए तक के लोन शासन की तरफ से मिल रहे हैं।"
नीरज पांचाल वैसे तो डिप्लोमा इंजीनियर हैं लेकिन उनकी राह में भी कठिनाइयां कुछ कम नहीं रही हैं। आज देश की टू-व्हीलर ऑटो मोबाइल मार्केट के लगभग आधे हिस्से पर उनकी कंपनी में तैयार ऑयल पंप बॉडी का कब्जा हो गया है। नीरज खतौली के बुढ़ाना रोड स्थित शुक्लचंद के बेटे हैं। जवाहर लाल स्मृति इंटर कॉलेज रवापुरी सठेड़ी से इंटर पास करने के बाद उन्होंने शाहजहांपुर के राजकीय पालीटेक्निक कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लिया। इसके बाद वह हजार-बारह सौ रुपए महीने की नौकरी कर फरीदाबाद, रेवाड़ी, नोएडा की फैक्ट्रियों में दिन बिताते रहे, इस दौरान माली हालत इतनी खराब हो चली कि उन्हें अपने बच्चों का स्कूल जाना रोकना पड़ा लेकिन खुद के बूते अपना उज्ज्वल भविष्य बनाने की ललक हमेशा उनके अंदर बनी रही। एक दिन वह ताईवान से ऑटोमोबाइल के उत्पाद मंगाकर बेचने लगे। इसी दौरान वह गुड़गांव की यामाहा कंपनी की नजर में आए। उन्हें वहां पर सालाना तेरह लाख के पैकेज पर नौकरी मिल गई। इसके बाद उन्हें कंपनी की ओर जापान में प्रशिक्षण भी दिया गया। इसके साथ ही उनका भविष्य आकाश में उड़ान भरने लगा।
नीरज पांचाल कहते हैं कि युवा अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरियां खोजते रहते हैं। उद्यमी बनने की बात तो दूर, कभी इस विषय में सोचते भी नहीं हैं लेकिन नौकरी के जब सभी रास्ते बंद हो जाते हैं, तब मेरी तरह से उनका ध्यान खुद के उद्योग-धंधे पर जाता है। कुछ ऐसे भी युवा होते हैं कि जिनके लिए उद्यमी बनना अंतिम नहीं पहली च्वाइस होती है। ये जरूर है कि सफलता मात्र कुछ दिनों की मेहनत का फल नहीं बल्कि लगातार पहल, कठोर मेहनत और दृढ़ निश्चय के सतत समन्वयन से मिलती है। युवाओं को उद्यमशील बनने की कोशिश जरूर करनी चाहिए। आज प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, प्रधानमंत्री मृदा योजना, स्टैंड-अप इंडिया, स्टार्ट-अप पॉलिसी, मुख्यमंत्री कलस्टर विकास योजना, औद्योगिक विकास निवेश प्रोत्साहन नीति आदि पर युवाओं को ध्यान केंद्रित कर अपना रास्ता खुद बनाना चाहिए। युवाओं को इस समय एक और बात पर ध्यान रखना होगा कि अगले साल 2019 में लोकसभा के आम चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में केंद्र सरकार युवाओं को रिझाने के लिए करोड़ों रुपए लोन लेकर अपने रोजगार खोलने पर जोर दे रही है। यही मौके की नजाकत है। वे तनिक भी सजगता बरतते हैं, वह भी लाखों, करोड़ों के कारोबार, उद्योग धंधे कर अपना भविष्य खुद ही संवार सकते हैं। ऐसे मौके बार-बार नहीं आते हैं।
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साथ ही नीरज ये भी बताते हैं, कि आज विभिन्न प्रदेशों में राज्य खादी एवं ग्रामोद्योग की ओर से ग्रामीण स्तर पर लोगों को लघु एवं मध्यम उद्योग लगाने के लिए 25 लाख तक के ऋण की सुविधा दी जा रही है ताकि लोग छोटे उद्योग लगाकर अपने जीवन स्तर में सुधार लाएं और स्वाबलंबी बनें। बोर्ड द्वारा महिलाओं के लिए भी स्वरोजगार की कई योजनाएं हैं जिनके माध्यम से वे अपना उद्योग लगाकर जीवन स्तर में सुधार ला सकती हैं। महिलाओं को तो लोन पर 35 प्रतिशत तक की सब्सिडी भी दी जा रही है।
सच कहा है कि मंजिलें उन्हीं को मिलती, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। नीरज पांचाल ने खुली आंखों सपने देखे, हौसले के पंखों ने उड़ान भरी और वह करोड़ों की कंपनी के मालिक बन गए। ऑटोमोबाइलऑयल पंप की बॉडी की किफायती डिजाइन तैयार कर इस किसान-पुत्र ने दो साल के भीतर ही बाजार पर कब्जा कर लिया। आज रुद्रपुर सिडकुल में उनकी फैक्टरी 16 लाख ऑयल पंप बॉडी का निर्माण कर रही है। अब उन्होंने मशीनों की उत्पादन क्षमता बढ़ाकर प्रति माह तीस लाख नग उत्पाद का लक्ष्य तय किया है। पहली नौकरी से तो मालिक ने नाकारा बताकर उन्हें निकाल दिया, जहां मात्र 1170 रुपए मिलते थे। फिर अठारह सौ की नौकरी मिली। उनकी मेहनत से वहां सेलरी नौ हजार हो गई। दो साल बाद एक कंपनी ने बारह लाख के पैकेज पर बुला लिया।
दस साल तक आटोमोबाइल सेक्टर में काम कर नीरज ने करोड़ों रुपए कमा लिए। इसके बाद खुद की कंपनी खोलने में जुट गए। पहली बार उन्होंने पार्टनरशिप में फैक्टरी लगाई। वह डूब गई। नीरज ने एक जमाने में अपनी कंपनी लगाने के लिए बैंकों के चक्कर लगाए लेकिन किसी ने ऋण नहीं दिया। गोल्ड लोन और दोस्तों की मदद से दूसरी कंपनी बनाई। इसमें प्रोडक्ट की फिनिशिंग में महिलाकर्मी लगाए। अब उसमें पचीस-तीस प्रतिशत महिलाएं काम कर रही हैं। अब बैंक नीरज पांचाल के चक्कर लगा रहे हैं।
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