Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT
Advertise with us

मिलिये भारत के युवा खिलाड़ियों से जिन्होंने 2018 में अपने खेल से सबको चौंकाया

मिलिये भारत के युवा खिलाड़ियों से जिन्होंने 2018 में अपने खेल से सबको चौंकाया

Friday November 30, 2018 , 8 min Read

हम साल 2018 के कुछ ऐसे ही सितारों से आपको मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने इस साल अपने प्रदर्शन से सबकी तरफ अपना ध्यान आकर्षित किया। रानी रामपाल 2010 में किशोरावस्था में थीं जब उन्होंने भारतीय हॉकी टीम में अपना पदार्पण किया था। दस साल बाद आज वह लंदन में आने वाले विश्वकप में भारतीय टीम के कैप्टन के रूप में टीम का प्रतिनिधित्व करेंगी।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जरूरत है तो बस उन्हें पहचानकर सही रास्ते पर ले जाने की। इस बात का सटीक उदाहरण हैं दिल्ली के स्लम एरिया आजादपुर की एक झुग्गी में रहने वाले निसार अहमद।

चाहे एथलेटिक्स की बात हो, पैरालिंपिक्स हो या फिर क्रिकेट और हॉकी जैसे परंपरागत खेल, हमारे देश में हमेशा से ऐसे सुपरस्टार खिलाड़ी मौजूद रहे हैं जिन्होंने अपने संघर्षों से न केवल अपना मुकाम हासिल किया बल्कि न जाने कितने नौजवानों को प्रेरित भी किया। हम साल 2018 के कुछ ऐसे ही सितारों से आपको मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने इस साल अपने प्रदर्शन से सबकी तरफ अपना ध्यान आकर्षित किया। रानी रामपाल 2010 में किशोरावस्था में थीं जब उन्होंने भारतीय हॉकी टीम में अपना पदार्पण किया था। दस साल बाद आज वह लंदन में आने वाले विश्वकप में भारतीय टीम के कैप्टन के रूप में टीम का प्रतिनिधित्व करेंगी। उन्होंने अब तक 21 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 134 गोल दागे हैं। रानी के पिता ने रिक्शा चलाकर उन्हें इस लायक बनाया। उनकी कहानी देश के करोड़ों नौजवाने के लिए प्रेरणादायक है।

हालांकि यह बात भी सच है कि अपने देश के खिलाड़ियों को उतनी अच्छी सुविधाएं और ट्रेनिंग नहीं मिल पाती जिनके वे असल में हकदार होते हैं। इसका खामियाजा सबसे ज्यादा कस्बों और छोटे शहरों के खिलाड़ियों को भुगतना पड़ता है। लेकिन फिर भी देश की प्रतिभाओं ने जमीन से निकलकर सफलता हासिल की है और सबको गलत साबित किया।

निसार अहमद

देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जरूरत है तो बस उन्हें पहचानकर सही रास्ते पर ले जाने की। इस बात का सटीक उदाहरण हैं दिल्ली के स्लम एरिया आजादपुर की एक झुग्गी में रहने वाले निसार अहमद। 16 साल के इस एथलीट के नाम दिल्ली स्टेट एथलेटिक्स मीट में दो गोल्ड मेडल हैं। घर की हालत ये है कि पिता रिक्शा चलाते हैं और मां दूसरों के घरों में बर्तन धोने का काम करती हैं। गरीबी, अच्छी डाइट न होने के बावजूद निसार अपने कठिन परिश्रम से माता-पिता को गौरान्वित करने में लगे हुए हैं। उन्होंने अपने स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर सुरेंदर सिंह के कहने पर एथेलेटिक्स में कदम रखा था।

निसार अहमद

निसार अहमद


सबसे हैरानी की बात तो यह है कि निसार ने नेशनल अंडर-16 खिलाड़ियों के रिकॉर्ड तोड़े हैं। 100 मीटर की रेस उन्होंने सिर्फ 11 सेकंड में पूरी की, पुराना रेकॉर्ड 11.02 सेकंड का था। 200 मीटर की रेस में भी उनकी फुर्ती काबिल-ए-तारीफ रही, सिर्फ 22.08 सेकंड में उन्होंने रिकॉर्ड अपने नाम किया है, जो कि पिछले रिकॉर्ड से 0.3 सेकंड कम है। आजादपुर में रेल की पटरी के ठीक किनारे की बस्ती में 10 बाई 10 के एक कमरे में निसार का पूरा परिवार रहता है। वही कमरा उनका ड्रॉइंग रूम, बेडरूम और किचन है। एक कोने में निसार की ट्रॉफी और मेडल उनकी तस्वीर के साथ सजे हैं।

दिव्यांशु गनात्रा

दिव्यांशु की उम्र उस वक्त सिर्फ 19 साल थी जब ग्लूकोमा के चलते उनकी आंखों की रोशनी चली गई। उन्हें साइकिलिंग, माउंटेनियरिंग और ट्रेकिंग का काफी शौक था, लेकिन इस हादसे के बाद उन्हें चार दीवारों के बीच खुद को कैद करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और फिर से उठ खड़े हुए। आज वह भारत के पहले अकेले पैराग्लाइडर हैं। उनकी कहानी की शुरुआत मुश्किलों और निराशा से हुई थी। यह एक ऐसा वक्त था जिसके लिए वे कभी तैयार भी नहीं थे। उन्होंने सोचा कि वे रिहैबिलिटेशन सेंटर जाएंगे और वहां उनकी मदद हो पाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कुछ ही दिनों में वहां से भी वह वापस आ गए। दरअसल उस सेंटर में उन्हें सिर्फ टेलीफोन ऑपरेटर या चाक बनाने के विकल्प बताए गए।

दिव्यांशु गनात्रा

दिव्यांशु गनात्रा


इतना सब हो जाने के बावजूद दिव्यांशु का मानना था कि वे जीवन में काफी कुछ कर सकते हैं। उन्होंने धीरे-धीरे साइकिलिंग शुरू कर दी। उन्होंने पैराग्लाइडिंग भी की जिसमें उनका मन लगने ललगा। 2014 में उन्होंने भारत के पहले दृष्टिबाधित सोलो पैराग्लाइडर का खिताब अपने नाम किया। उसी साल उन्होंने एक संस्थान शुरू किया जो दृष्टिहीनों और सामान्य दृष्टि वाले लोगों के बीच पुल की तरह काम करता है। इस फाउंडेशन का नाम एडवेंटर्स बियॉन्ड बैरियर्स है जो कि फायरफॉक्स बाइक्स के साथ मिलकर काम करता है।

यशस्वी जायसवाल

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के रहने वाले यशस्वी की दास्तां संघर्षों से भरी है। यशस्वी पिछले कीन साल से आजाद मैदान पर ग्राउंड्समैन के साथ एक टेंट में सोते थे। इसके पहले वह अपना खर्चा चलाने के लिए डेयरी शॉप पर काम भी करते थे और वहीं दुकान में ही सो जाते थे। इतने कड़े संघर्षों का ही परिणाम मिला है कि वह भारतीय टीम के लिए खेलने जा रहा है।

यशस्वी जायसवाल

यशस्वी जायसवाल


17 वर्षीय यशस्वी जायसवाल एक ऑलराउंडर प्लेयर हैं और मडिल ऑर्डर पर बैटिंग करते हैं। उन्हें श्रीलंका में होने जा रहे अंडर-19 मुकाबले के लिए चुना गया है। मुंबई अंडर-19 के कोच सतीश सामंत ने कहा कि यशस्वी ऐसा खिलाड़ी है जो गेंदबाज का दिमाग पढ़ने की क्षमता रखता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आज के इस टेक्नॉलजी वाले दौर में भी यशस्वी के पास स्मार्टफोन नहीं है। कोच सावंत कहते हैं कि इससे उसका ध्यान भंग नहीं होता और वह अपना पूरा समय क्रिकेट पर ही फोकस्ड रखता है।

यशस्वी के लिए एक अच्छी बात यह रही कि परिवार वालों ने कभी उनके क्रिकेट खेलने का विरोध नहीं किया। उनके पिता भदोही में ही एक दुकान चलाते हैं। उन्होंने क्रिकेट खेलने के लिए ही यशस्वी को मुंबई भेजा था। मुंबई में यशस्वी के एक रिश्तेदार ने उनके रहने का प्रबंध किया था। यशस्वी को टेंट में रहना पड़ता था। हालांकि उनके पिता थोड़ी बहुत मदद जरूर करते थे, लेकिन यह मदद नाकाफी होती थी। इसीलिए यशस्वी को आजाद मैदान पर ही पानीपूरी और फल बेचने पड़े। हालांकि उनके साथी खिलाड़ियों को यह देखकर अजीब लगता था, लेकिन यशस्वी को कभी इस बात से फर्क नहीं पड़ा। इस काम से वह हर हफ्ते 200-300 रुपये कमा लेते थे।

रविंद्र जडेजा

रविंद्र जडेजा ने अपनी बैटिंग और बॉलिंग दोनों से लोगों को प्रभावित किया। उनके खेल का ही दम था कि चेन्नई सुपरकिंग्स ने उन्हें 9.8 करोड़ में खरीदा था। 2012 में वे आईपीएल के सबसे महंगे प्लेयर थे। जडेजा की भी जिंदगी काफी मुश्किलों भरी रही। उनके पिता अनिरुद्ध एक प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी में गार्ड की नौकरी करते थे। जडेजा जब अपनी किशोरावस्था में थे तभी उनकी मां का देहांत हो गया था। फिर भी उन्होंने अपने खेल पर ध्यान दिया और कड़ी मेहनत के दम पर अपना मुकाम हासिल किया। उन्होंने 2008 में अंडर-19 विश्वकप में अच्छा प्रदर्शन किया था जिसके दम पर उन्हें नेशनल टीम में सेलेक्शन मिला।

रविंद्र जडेजा

रविंद्र जडेजा


बी. अनुषा

देश में भले ही बाल विवाह को कानूनन जुर्म बना दिया गया है, लेकिन अभी भी कई इलाकों में यह कुप्रथा जारी है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है। पिछले साल ऐसे ही हैदराबाद की एक 16 साल की लड़की की शादी कराई जा रही थी, लेकिन ऐन मौके पर वह शादी रुक गई। अब वही लड़की स्पोर्ट्स के क्षेत्र में नाम कमा रही है और अपने घर वालों को भी गर्व महसूस करने का मौका दे रही है। उस लड़की का नाम है बी. अनुषा। अनुषा को भारत की अंडर-19 रग्बी टीम में चयनित किया गया है। वह पहले तेलंगाना के लिए क्रिकेट भी खेल चुकी है।

बी. अनुषा

बी. अनुषा


अनुषा 9वीं क्लास से ही क्रिकेट खेलती आ रही है। वह स्पोर्ट्स के क्षेत्र में ही अपना मुकाम बनाना चाहती है। लेकिन परिवार के दबाव में आकर उसने शादी का मन बना लिया था। इसी वजह से उसे टीम से बाहर भी कर दिया गया। लेकिन बाद में पुलिस के हस्तक्षेप से शादी रुकी और उसकी मां की काउंसिलिंग की गई। जिससे वह अनुषा को उसके मुताबिक जिंदगी जीने के लिए राजी हो गई।

रोहन मोरे

भारत के तैराक रोहन मोरे एशिया के पहले ऐसे युवा हैं जिन्होंने न्यूजीलैंड के न्यू जीलैंड के उत्तर और दक्षिण द्वीप के बीच कूक स्ट्रेट को तैरकर पार किया। उन्होंने यह कारनामा 8 घंटे और 37 मिनट में पूरा किया। उन्हें खराब मौसम के कारण कई दिनों तक इसका इंतजार भी करना पड़ा। उनकी तैराकी के शुरुआती 5 घंटे में लहरें शांत थी और तापमान लगभग 19 डिग्री सेल्सियस था, लेकिन जैसे ही उन्होंने दक्षिण की ओर रूख किया समुद्री तापमान में गिरावट आई और वह 4 डिग्री तक पहुंच गया, लेकिन मुश्किल हालात में भी उन्होंने इसे पूरा किया। वह ऐसा करने वाले दुनिया के 9वें तैराक हैं।

image


रोहन ने 4 साल में ही तैराकी शुरू कर दी थी। जबकि उनके फेफड़े कमजोर थे और डॉक्टरों ने उन्हें खास सलाह भी दी थी, लेकिन उन्होंने अपनी किस्मत खुद तय की और आज धावक के रूप में अपना करियर बना रहे हैं।

पूजा ढांडा

image


हरियाणा के हिसार की रहने वाली पूजा ढांडा ने 2009 में कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लेना शुरू किया था। इसी साल जनवरी में उन्होंने ओलंपिक चैंपियन हेलन मारौलिस को हराया था। पूजा को फिल्म दंगल के लिए ऑफर मिला था।वह ऑडिशन में सेलेक्ट भी हो गई थीं, लेकिन फिर उन्होंने इस फिल्म में धाकड़ गर्ल बबीता का रोल करने से इनकार कर दिया था। वह जूडो में भी तीन अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं।

यह भी पढ़ें: बच्चों की सफाई का ध्यान रखने वाले हेडमास्टर, खुद साफ करते हैं स्कूल का टॉयलट