विजय यादवः इंडियन टीम का वो क्रिकेटर जो तबाह होने के बाद भी बना रहा है युवाओं का भविष्य
एक समय में जिस क्रिकेटर ने बुलंदियों को छुआ, अब बहुत कम लोग जानते हैं उसके बारे में...
1990-91 की ऐतिहासिक रणजी ट्रॉफी जीत के दौरान हरियाणा के विकेटकीपर-बल्लेबाज के रूप में विजय यादव ने कमाल का प्रदर्शन किया था। स्टंप के पीछे उनकी सतर्कता और निचले क्रम में उनकी बल्लेबाजी क्षमता ने सभी को अपनी ओर आकर्षित किया और जल्द ही वह भारतीय टीम के लिए खेलने को तैयार थे।
दुर्भाग्य से यादव के लिए एक बार फिर से बुरा वक्त शुरू हो गया। यादव कहते हैं कि ये सच में बहुत, बहुत, बहुत बुरा समय था। "मुझे कुछ भी नहीं पता था लेकिन तब मुझे एहसास हुआ कि जब आप खेल रहे होते हैं, तो आप एक विशेष व्यक्ति हैं, लेकिन जिस क्षण तुम खेलना छोड़ देते हैं तो आप एक सामान्य व्यक्ति हो जाते हो।
क्रिकेटर और उनसे जुड़े किस्से अक्सर सीख देने वाले होते हैं। कहा जाता है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे कुछ ऐसे दुखद संघर्ष छिपे होते हैं जिसे वह याद नहीं करना चाहता है। क्रिकेट और क्रिकेटर से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक किस्से अक्सर सुनने को मिल जाते हैं लेकिन आज हम आपको जिस क्रिकेटर के बारे में बताने जा रहे हैं वो थोड़ा अलग है। शायद उसकी कहानी आपकी आंखों में नमी ला दे। हम बात कर रहे हैं क्रिकेटर विजय यादव की, बहुत कम लोग विजय यादव को उनकी क्रिकेट के लिए जानते होंगे लेकिन एक समय में इस क्रिकेटर ने बुलंदियों को छुआ था। क्रिकेट वेबसाइट क्रिकबज को दिए इंटरव्यू में विजय यादव अपने पुराने और जीवन के सबसे विभत्स समय को याद करते हुए ये पूर्व भारतीय विकेटकीपर-बल्लेबाज और मौजूदा हरियाणा के कोच कहता है कि "यकीन मानिए, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं जिंदा रहूंगा।"
यादव उस घटना को याद करते हुए बताते हैं जिसने उनका सब कुछ छीन लिया था। विजय यादव 31 मार्च, 2006 के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि वे भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए वनडे मैच को देखकर अपनी पत्नी, उनकी 11 वर्षीय बेटी सोनालिका और चचेरे भाई राहुल के साथ फरीदाबाद के नाहर सिंह स्टेडियम से दिल्ली के लिए घर लौट रहे थे। भारत ने इस मैच में इंग्लैंड को हराया था। घर लौटते समय उनके परिवार पर त्रासदी टूट पड़ी। गाड़ी पलट गई, और इस गंभीर हादसे में राहुल (चचेरे भाई) और सोनालिका (बेटी) की मौत हो गई। उनकी पत्नी, अमृता और खुद विजय यादव गंभीर रूप से घायल हो गए। विजय यादव की चोट ज्यादा गंभीर थी। चोट किडनी तक पहुंची थी। जिसके बाद उनकी किडनी निकालनी पड़ी और छह महीने के लिए विजय यादव को बिस्तर पर रहना पड़ा।
विजय बताते हैं, 'इसने मुझे लगभग तोड़कर रख दिया था। मेरी बेटी दुनिया छोड़कर जा चुकी थी। मेरा भाई भी मुझे छोड़कर जा चुका था और मेरी पत्नी को अपनी किडनी खोनी पड़ी। उन छह महीनों के दौरान जब मैं बिस्तर पर था तब मेरी अकादमी राज्य संघ और सरकार के बीच संघर्ष के कारण बंद हो गई। मेरे पास जो था वो सब बिक गया। मेरी कारें, संपत्ति। वो समय मेरे लिए बहुत खराब था। मानसिक रूप से मैं टूट गया था।'
विजय उस घटना को याद करते हुए बताते हैं कि "मेरी पत्नी उस दिन गाड़ी चला रही थी। वो उस दिन के लिए आज भी खुद को दोषी मानती है। दुर्घटना के बाद वो सबसे खराब समय था। मेरी पत्नी जिंदा नहीं रहना चाहती थी। वो जीने के लिए तैयार नहीं थी। ये 6 महीने तक ऐसा ही रहा। छह महीने तक मैं अपना घर नहीं छोड़ सकता था, मैं कुछ नहीं कर सका। मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं जीवित रहूंगा।' यादव खुद को लकी मानते हैं कि वे सर्वाइव कर सके। लेकिन अब उन्हें उन भयानक यादों के साथ रहना था। कहते हैं कि इतने बुरे दिन कोई दुश्मनों को भी न दिखाए लेकिन विजय यादव का परिवार पहले से ही इतना भुगत चुका है। हालांकि उन्हें क्रिकेट के माध्यम से दोबारा जीवन जीने का मौका मिला। खुद को उबारने का मौका मिला। इस खेल के जरिए वह आजीविका पाने में सफल रहे।
1990-91 की ऐतिहासिक रणजी ट्रॉफी जीत के दौरान हरियाणा के विकेटकीपर-बल्लेबाज के रूप में विजय यादव ने कमाल का प्रदर्शन किया था। स्टंप के पीछे उनकी सतर्कता और निचले क्रम में उनकी बल्लेबाजी क्षमता ने सभी को अपनी ओर आकर्षित किया। और जल्द ही वह भारतीय टीम के लिए खेलने को तैयार थे।
विजय बताते हैं कि "काफी वक्त बीत चुका था। इसलिए अब मेरा लक्ष्य सिर्फ एक अच्छी जॉब पाना था। मैंने कभी भारत के लिए खेलने के बारे में नहीं सोचा था। मैं हमेशा यही सोचता था कि मुझे एक अच्छी नौकरी मिल सके। जब मैंने ONGC ज्वाइन किया को इसने मेरी जिंदगी बदल दी। जब आप एक पेशेवर क्रिकेटर के रूप में खेल रहे हैं, तो ये आपको और बेहतर बनने के लिए मजबूर करती है।" विजय आगे कहते हैं कि "अचानक, मैंने राज्य और रणजी ट्राफी के लिए खेलना शुरू कर दिया, यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था। फिर हम रणजी ट्रॉफी जीते और लोगों ने हमारे बारे में बात करना शुरू कर दिया।"
उन्होंने 1990-91 सीजन में अच्छा प्रदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप हरियाणा ने फाइनल में केवल दो रनों से मुंबई को हराया था। अगले साल दिलीप ट्रॉफी में उन्होंने अनिल कुंबले और वेंकटेश प्रसाद जैसे दिग्गज खिलाड़ियों की टीम के खिलाफ दोहरा शतक लगाया था। उसके अगले ही साल वह एकदिवसीय श्रृंखला के लिए भारतीय टीम में थे। कम से कम दो साल में यादव ने भारत के लिए 19 वनडे और एक टेस्ट खेला। उन्होंने नवंबर 1994 में वेस्टइंडीज के खिलाफ भारत के लिए अपना अंतिम मैच खेला। वहां से फिर उनका खराब समय शुरू हो गया और फिर भारतीय टीम में जगह नहीं बने सके।
विजय बताते हैं कि "1999 में मैंने संन्यास लिया था। उस समय कोई आईपीएल और ये सब कुछ नहीं था। और आगे बढ़ने के लिए कोई प्रेरणा नहीं थी। अगर मैं देश के लिए खेल नहीं रहा था, तो मेरे लिए खेल जारी रखने का कोई मतलब नहीं था। ये मेरे मन में था कि जब मैं टीम के लिए नहीं खेल रहा हूं तो मैं किसी की जगह जरूर रोक रहा हूं। कोई काम नहीं था, मैंने भी खेलना बंद कर दिया था।"
जल्द ही कुंबले, कपिल देव, जवागल श्रीनाथ जैसों के विकेट लेने वाले और कर्टनी वाल्श, एलन डोनाल्ड, मुथैया मुरलीधरन जैसे खिलाड़ियों की गेंदों का सामना करने वाले विजय यादव ने अपना फोकस अपने परिवार के लिए रोटी रोजी कमाने पर कर दिया। उन्होंने बिजनेस में कदम बढ़ाने शुरू किए। परियोजनाओं में निवेश के खतरों को पूरी तरह से जानने के बावजूद वे निश्चिंत थे।
उन्होंने एक रेस्टोरेंट में निवेश किया। यहां तक कि सचिन तेंदुलकर ने तब इसका उद्घाटन किया था। और ऐसे अन्य उपक्रमों में खेल के सामान बेचने का प्रयास किया। परंतु बात नहीं बन सकी। इसके अलावा, उन्होंने फरीदाबाद के करीब जमीन खरीदने के बाद क्रिकेट अकादमी शुरू कर दी थी और अपने एक दोस्त को इसका ध्यान रखने को कहा। विजय बताते हैं कि "वास्तव में उस समय, प्रैक्टिस करने के लिए केवल एक सरकारी स्टेडियम था। अगर उस स्टेडियम में कोई कोई गेंद होती थी तो ही मैं अभ्यास कर सकता था, अन्यथा कुछ भी नहीं। इसलिए मैंने एक अकादमी शुरू करने का फैसला किया और यह जगह मेरे घर के करीब थी। दरअसल मेरे दोस्त ने मुझसे पूछा था कि आप एक अकादमी क्यों नहीं शुरू करते हैं। वस फिर हमने फन के लिए अकादमी शुरू कर दी।"
विजय यादव आगे याद करते हुए कहते हैं कि "मुझे अपने घर के पास जमीन मिली, मैं एक जगह बनाने के लिए उत्सुक था, जहां मैं भी अभ्यास कर सकता था। फिर मुझे एहसास हुआ कि क्यों न बच्चों के साथ शुरू करना चाहिए और तब अकादमी की नींव रखी गई। मैंने अकादमी शुरू की और मेरे दोस्त को देखभाल करने के लिए बोल दिया। तब मैं एमआरएफ के लिए खेल रहा था।" विजय बताते हैं कि वे बिजनेस में इसलिए गए क्योंकि उनके पास कोई जॉब नहीं थी। दिन के अंत में मुझे एहसास हुआ कि साझेदारी इसके लायक नहीं थी। क्योंकि खिलाड़ियों के रूप में हम अपना समय बिजनेस को नहीं दे सकते थे।
दुर्भाग्य से यादव के लिए एक बार फिर से बुरा वक्त शुरू हो गया। यादव कहते हैं कि ये सच में बहुत, बहुत, बहुत बुरा समय था। "मुझे कुछ भी नहीं पता था लेकिन तब मुझे एहसास हुआ कि जब आप खेल रहे होते हैं, तो आप एक विशेष व्यक्ति हैं, लेकिन जिस क्षण तुम खेलना छोड़ देते हैं तो आप एक सामान्य व्यक्ति हो जाते हो। तब बातें शुरू होती हैं और लोग आपसे अपने बिजनेस को दूर रखना चाहते हैं।"
"2006 में दुर्घटना के बाद मैंने अचानक सब कुछ बंद कर दिया। अपने सभी अन्य वेंचर बंद कर दिए थे। तब मैंने फैसला किया कि मैं क्रिकेट में वापस जाऊंगा। ये केवल इकलौती चीज है जो मुझे जीवित रखेगी। जब मैं वापस आया, मैंने इसे पेशे के रूप में लिया लेकिन इससे पहले मैंने कभी इसे इस तरह से नहीं लिया था। मैंने सर्टीफिकेशन कोर्स और सब कुछ किया। उसके बाद मुझे एहसास हो गया कि यह खेलने से ज्यादा मजेदार है। यहां किसी खिलाड़ी की तरह कोई समय सीमा नहीं है, और यहां आप जितने पुराने होते जाएंगे उतना ही बेहतर होते जाएंगे।"
बता दें कि विजय यादव इस समय हरियाणा टीम के कोच हैं। इसलिए वे अनुबंध के मुताबिक कोई अन्य पेशेवर काम नहीं कर सकते। विजय कहते हैं कि "हितों के टकराव के कारण अब मैं अकादमी की देखभाल नहीं कर सकता था। लेकिन इस अकादमी के जरिए मैं राहुल तेवतीया और मोहित शर्मा जैसे खिलाड़ियों को तैयार करने में सक्षम रहा। ये सभी लोगों के बारे में मुझे पता है कि उन्हें अब लाभ मिल रहा है। इन सभी युवाओं की मदद करना अब मेरा लक्ष्य है। मुझे इसमें बहुत दिलचस्पी है, और जल्द ही मैं उस पर वापस आ जाऊंगा।" अकादमी खोलने की योजना दर्द में गुजारे 6 महीनों के बाद बनी थी। यह उनकी पत्नी थी, जिन्होंने उन्हें बताया कि उस शहर से दूर हो जाना बेहतर होगा जहां वे अपनी बेटी के साथ रहते थे, जिन्होंने उन्हें कोचिंग की ओर स्विंग करने में मदद की थी।
विजय खुद को खुशनसीब मानते हैं कि वे ऐसी जगह हैं और ऐसा काम कर रहे हों जो उनके दिल के बेहद करीब है। विजय कहते हैं कि वे अब फ्री हैं। अब मैंने फरीदाबाद में अकादमी के पास अपना घर बना लिया है। "मेरे परिवार ने मेरा समर्थन किया। मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि हम शहर में वापस नहीं जाएंगे और इसके बजाय गांव जाएंगे।" यादव कहते हैं कि कोई वहां कैसे रह सकता है जिसने अपको दुखों का पहाड़ दिया है। अब यादव बिना किसी बोझ के कोचिंग का आनंद ले रहे हैं, लेकिन युवा खिलाड़ियों को कोचिंग देना चाहते हैं। उनके दो छोटे बेटे हैं। विजय अब हरियाणा और उसके युवा क्रिकेटरों के लिए भविष्य के निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
"पिछले साल, जब मुझे एक फील्डिंग कोच के रूप में भारत ए के लिए चुना गया था, मुझे एहसास हुआ कि अभी भी कुछ ऐसा है जो मैं दे सकता हूं। कुछ ऐसा है जो मेरे अंदर है। शायद एक या दो साल और मैं काम करूंगा और फिर उसके बाद जूनियर्स की मदद करूंगा। अगर एचसीए (हरियाणा क्रिकेट अकेडमी) मुझे एक आधिकारिक मदद करना चाहता है तो मुझे जूनियर्स की मदद करने में और खुशी होगी, अन्यथा मैं सिर्फ अपनी अकादमी में वापस जाऊंगा।"
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