संगीत और प्रकृति के रिश्ते को समझाने वाले इस अनूठे फ़ेस्टिवल के बारे में जानते हैं आप!
बेंगलुरु के एंबेसी इंटरनैशनल राइडिंग स्कूल में संपन्न हुए इस फ़ेस्टिवल की इस साल की थीम थी, वंडर्स ऑफ़ द डीप। इस थीम के अंतर्गत रीसाइकलिंग और अपसाइकलिंग से प्रोसेस से तैयार की गई सामग्रियों की मदद से प्रदर्शनी लगाई गई, जिसके माध्यम से मरीन लाइफ़ को प्रदर्शित किया गया।
इस फ़ेस्टिवल में 40 से अधिक विदेशी और भारतीय संगीतकारों ने संगीत से लबरेज़ कार्यक्रमों के माध्यम से समाज को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया। कलाकारों ने अपने कला के जौहर दिखाते हुए रीसाइकलिंग और अपसाइकलिंग का प्रचार किया।
क्या आपने भारत के पहले और एकमात्र 'ग्रीन' म्यूज़िक फ़ेस्टिवल 'ईकोज़ ऑफ़ द अर्थ' के बारे में सुना है? बेंगलुरु के एंबेसी इंटरनैशनल राइडिंग स्कूल में संपन्न हुए इस फ़ेस्टिवल की इस साल की थीम थी, वंडर्स ऑफ़ द डीप। इस थीम के अंतर्गत रीसाइकलिंग और अपसाइकलिंग से प्रोसेस से तैयार की गई सामग्रियों की मदद से प्रदर्शनी लगाई गई, जिसके माध्यम से मरीन लाइफ़ को प्रदर्शित किया गया। इस फ़ेस्टिवल के माध्यम से लोगों को संगीत और प्रकृति के बीच के ख़ास रिश्ते को समझाया गया। 1500 से भी अधिक संगीतप्रेमियों ने दो दिनों के इस फ़ेस्टिवल में पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लिया। इस साल ईकोज़ ऑफ़ द अर्थ का तीसरा संस्करण मनाया गया।
इस फ़ेस्टिवल में 40 से अधिक विदेशी और भारतीय संगीतकारों ने संगीत से लबरेज़ कार्यक्रमों के माध्यम से समाज को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया। कलाकारों ने अपने कला के जौहर दिखाते हुए रीसाइकलिंग और अपसाइकलिंग का प्रचार किया। फे़स्टिवल में आए संगीतकारों ने जैज़, इंडियन रॉक, इलेक्ट्रॉनिक म्यूज़िक, पॉप, अंडरग्राउंड टेक्नो, हाउस, रॉक और भारतीय लोक संगीत समेत संगीत के कई रूप और ज़ायके दर्शकों के सामने प्रस्तुत किए। एफ़केजे, नोलाह, ऑसम, टेप्स ऑफ़ अफ़्रीका, स्टैवरोज़, टेनेसन समेत कई अन्य बड़े अंतरराष्ट्रीय नामों ने भी कार्यक्रम में शिरकत की।
इस कार्यक्रम में इस्तेमाल होने वाले कुर्सी, मेज़, कूड़ेदान, स्टॉल्स, सौर ऊर्जा से चलने वाले स्टेज, मोबाइल चार्जिंग यूनिट्स आदि सामग्रियों को अपसाइकलिंग की प्रक्रिया की मदद से तैयार किया गया था। कार्यक्रम के संस्थापक और संयोजक रौशन नेतालकर ने योर स्टोरी से हुई बातचीत में पूरी दुनिया को संगीत और कला के सूत्र में बांधने के संदेश पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, "हम चाहते थे कि इस फ़ेस्टिवल को सिर्फ़ संगीत से ही जोड़कर न देखा जाए बल्कि इसके माध्यम से हम प्रकृति के लिए भी कुछ बेहतर करने का प्रयास कर सकें। हम देख रहे थे कि बेंगलुरु शहर का वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम दिन प्रतिदिन ख़राब होता जा रहा था और समय की ज़रूरत थी कि ऐसी किसी मुहिम का आग़ाज़ हो। हम अपनी मुहिम से युवाओं को जोड़ना चाहते थे।"
फ़ेस्टिवल की थीम पर बात करते हुए, उन्होंने बताया, "जहां एक तरफ़, ज़्यादातर कलाकारों ने प्रकृति के पांच मूलभूत तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) से प्रेरणा ली, वहीं एक विदेशी कलाकार ने 'वेस्ट' को प्रकृति के 6वें तत्व के रूप में प्रदर्शित किया।" रौशन कहते हैं कि यहीं से उन्हें प्रेरणा मिली कि वह वेस्ट के माध्यम से पर्यावरण के गिरते स्तर को प्रदर्शित करें।
भुवनेश्वर से आए कलाकार दिब्यूश जीना और सिबानी बिसवाल ने रीयूज़्ड मेटल और ऑर्गेनिक स्क्रैप की मदद से 2 विशेष कलाकृतियां प्रदर्शित कीं। सिबानी ने ओडिशा के परंपरागत पटचित्र कला का इस्तेमाल करते हुए अपना संदेश दिया।
कार्यक्रम के आयोजकों ने मुंबई के एक एनजीओ ‘रीफ़ वॉच इंडिया’ और बेंगलुरु की एक संस्था ‘हसिरु डाला इनोवेशन्स’ के साथ करार किया था। कार्यक्रम की जगह को साफ़-सुथरा बनाए रखने के लिए 40 कर्मचारियों को नियुक्त किया गया था।
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