मिलें 19 साल से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर रहे अयूब अहमद से
लगभग 10 हज़ार लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुका है ये शख़्स...
मैसूर के 38 वर्षीय अयूब पिछले 19 वर्षों से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने जैसा पुण्य काम कर रहे हैं। सामाजिक कार्य करने व मानव जाति के प्रति करुणा ने उन्हें इस तरह का असामान्य कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
अयूब मृतक के शरीर (शव) का वैसे ही ख्याल रखते हैं जैसे कि कोई रिश्तेदार रखता है। वह अपनी कार में शवों को लाते हैं। अब तक उन्होंने हजारों शवों का अंतिम संस्कार किया है।
लोग उसे बॉडी मियां के नाम से बुलाते हैं। यहां तक कि उसे खुद पसंद है कि लोग उसे इस नाम से पुकारें। अयूब जी के नाम से पहचाने जाने वाले आयूब अहमद वो काम करते हैं जिससे पता चलता है कि इंसानियत अभी भी जिंदा है। आयुब लावारिश शवों को लाकर उन्हें दफनाते हैं व उनका अंतिम संस्कार (अनुष्ठान) करते हैं। ये वो लोग होते हैं जिनसे आयुब कभी मिले भी नहीं। मैसूर के 38 वर्षीय अयूब पिछले 19 वर्षों से यह काम कर रहे हैं। सामाजिक कार्य करने व मानव जाति के प्रति करुणा ने उन्हें इस तरह का असामान्य कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
टर्निंग प्वाइंट
एक बार गुंडलूपेट की यात्रा के दौरान आयुब को सड़क पर शव पड़ा दिखा जिसे लोग घेरे हुए खड़े थे। लेकिन उनके लिए चौंकाने वाली बात ये रही कि जब वे 10 घंटों बाद वापस आए तो उन्हें वो शव वहीं पड़ा मिला। इस घटना ने उन्हें बहुत दुखी किया। बस यहीं से आयुब ने वो काम करना शुरू किया जिसे लोग करना तो दूर सोचते भी नहीं। उन्होंने खुद से मृत शरीर को इकट्ठा करने और उन लोगों के अंतिम संस्कार करने की निस्वार्थ सेवा शुरू की।
असल में अयूब करते क्या हैं?
अयूब मृतक के शरीर (शव) का वैसे ही ख्याल रखते हैं जैसे कि कोई रिश्तेदार रखता है। वह अपनी कार में शवों को लाते हैं। अब तक उन्होंने हजारों शवों का अंतिम संस्कार किया है। हालांकि आयुब इन बातों के आंकड़े नहीं रखते कि उन्होंने अब तक कितने शवों के अंतिम संस्कार किए हैं। अय्यूब ने द लॉजिकल इंडियन से बात करते हुए बताया कि उन्होंने अब तक करीब 10,000 शवों को अंतिम संस्कार किया होगा।
यदि शव की पहचान नहीं हो पाती है कि ये वह किसका है तो आयुब मृतक की तस्वीर अपने फेसबुक पेज पर शेयर कर देते हैं। यदि कोई व्यक्ति शव को पहचानता है, तो वह उनसे संपर्क करता है नहीं तो वह खुद से ही उन्हें दफना देता है। पुलिस को सूचना मिलने के तुरंत बाद आयुब को भी आम तौर पर जानकारी मिल ही जाती है। सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद वह मौके पर पहुंते हैं। अगर कोई रिश्तेदार शव का दावा करता है, तो वह पैसे की मांग नहीं करता है। कभी-कभी परिवहन शुल्क के रूप में आयुब को 50 से 150 रुपये मिल जाते हैं।
परिवार से मिलता है सपोर्ट
भले ही आयुब के मां-बाप और रिश्तेदार उनका विरोध करते हों लेकिन उनकी पत्नी और बच्चे आयुब का पूरा समर्थन करते हैं। इस काम को करने की वजह से उनकी कई बार आलोचना हुई। एक ऐसी स्थिति भी आई थी जब आयुब को अपने पिता की गंभीर आलोचना के चलते घर से भागना पड़ गया था। जिसके बाद उन्होंने बेंगलुरु में जल शोधन संयंत्र में काम करना शुरू कर किया। अपने शानदार काम के लिए इनाम के तौर पर अयूब को अपने बॉस से कुछ पैसे मिले।
उन्होंने इस पैसे के साथ लाल बाग का दौरा किया और यात्रा के दौरान, एक अज्ञात शव मिला। आयुब ने शव को उठाया, पुलिस को बुलाया, और उसे सौंप दिया। ये करने के बाद आयुब ने महसूस किया कि जो उन्होंने अभी किया उसमें उसे कुछ भी गलत नहीं था गिल्ट फील करने जैसा भी कुछ नहीं था। फिर वह मैसूर लौट आए। और उन्होंने वो काम करने का बीड़ा उठाया जो लोगों के लिए मिसाल बन सकता है। आयुब चाहते हैं कि लोग उन्हें मरने के बाद उनके नेक कामों के लिए उन्हें याद करें। आयुब अपने काम को अंतिम सांस तक करना चाहते हैं।
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