सैटेलाइट 'प्रथम' की सफलता के बाद दूसरे प्रॉजेक्ट पर लगे आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट्स
IIT बॉम्बे के छात्रों द्वारा बनाये गए पहले सैटलाइट 'प्रथम' को पिछले साल 26 सितंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से लॉन्च किया गया था। लगभग 10 किलोग्राम वजन वाला 'प्रथम' मुंबई का भी पहला अपना सैटेलाइट था। इसे PSLV से लॉन्च किया गया था।
इस साल जनवरी में प्रथम का समय पूरा हो गया था। जिसके बाद सभी छात्रों ने अगले प्रॉजेक्ट के बारे में सोचना शुरू कर दिया। अगले प्रॉजेक्ट का नाम ऐडविटी है जिसे 45 छात्रों के एक ग्रुप द्वारा बनाया जाएगा।
डिजाइन तैयार होने के बाद डिपार्टमेंट ऑफ एयरोस्पेस इंजिनियरिंग से अप्रूवल मिलेगा। उसके बाद उसे इसरो के विशेषज्ञों के सामने पेश किया जाएगा। इसरो के वैज्ञानिक आखिर में यह तय करेंगे कि इस सैटेलाइट को फिर से प्रक्षेपित किया जाए या नहीं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉम्बे के छात्रों द्वारा तैयार किए गए सैटेलाइट 'प्रथम' की सफलता के बाद छात्रों ने अपने दूसरे सैटेलाइट प्रॉजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। IIT बॉम्बे के छात्रों द्वारा बनाये गए पहले सैटलाइट 'प्रथम' को पिछले साल 26 सितंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से लॉन्च किया गया था। लगभग 10 किलोग्राम वजन वाला 'प्रथम' मुंबई का भी पहला अपना सैटेलाइट था। इसे PSLV से लॉन्च किया गया था।
'प्रथम' की अंतरिक्ष में उम्र सिर्फ 4 महीने की थी, लेकिन इससे आकाश में फिर एक बार देश ने लंबी छलांग लगाई है। वैसे अंतरिक्ष में रॉकेट के जरिये प्रक्षेपित होने वाले 'प्रथम' टोयोटा इनोवा में बैठकर सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र पहुंचा था। ऐसा पहली बार हुआ था कि मौसम सैटेलाइट, इनसैट- 3DR की सफल लॉन्चिंग के महज 18 दिनों बाद कक्षा में दूसरा सैटेलाइट SCATSAT-1 भेजा गया था।
23 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा था जब फोर स्टेज पीएसएलवी दो अलग-अलग कक्षाओं में सैटेलाइट लॉन्च किया गया। समुद्र व मौसम संबंधित अध्ययन के लिए SCATSAT-1 के साथ 6 और छोटे सैटेलाइट PSLV द्वारा श्रीहरिकोटा से छोड़े गए थे। इसमें अल्जीरिया, कनाडा और अमेरिका के साथ दो भारतीय सैटेलाइट भी शामिल थे। इसमें आईआईटी बॉम्बे के छात्रों द्वारा बनाया गया सैटेलाइट 'प्रथम' और बेंगलुरु के छात्रों का एक सैटेलाइट पिसैट को भी रवाना किया गया। इस मिशन को साल 2008 में शुरू किया गया था।
इस प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाने वाले संयम ने कहा, 'हम पूरा डिजाइन फाइनल कर चुके थे, तभी हमें पता लगा कि अगर आपका उपग्रह किसी और के रास्ते में आता है, उसे परेशान करता है तो उसे नष्ट कर देना पड़ेगा। इसके बाद हमें पूरा डिज़ाइन बदलना पड़ा, जिसके लिये 40 घंटे तक बिना रुके मीटिंग हुई, फिर भी हमने पूरा काम तय समय में खत्म कर लिया। प्रथम' का वज़न 10.15 किलोग्राम था। 'प्रथम' का सबसे अहम काम आयनमंडल में अणु या इलेक्ट्रॉन को गिनना था। इस सैटेलाइट में Lithium-ion बैटरी लगायी गयी थी, बैटरी से जुड़ने वाले चारों साइड में सौर ऊर्जा के लिये सोलर पैनल लगाये गए थे।
'प्रथम' की उपयोगिता के बारे में बताते हुए पूर्व छात्र जॉनी झा ने बताया कि इससे जीपीएस सिग्नल सुधारने के साथ सुनामी की भविष्यवाणी में भी मदद मिलेगी। इस सैटेलाइट को बनाने में IIT बॉम्बे के 5 बैच में तकरीबन 150 छात्र शामिल रहे। 'प्रथम' की मदद से डिफेन्स के नैविगेशन सिस्टम और जीपीएस सिस्टम को सुधारा जा सकेगा इसके अलावा इससे मिलने वाले डेटा को दूसरे वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये भी इस्तेमाल किया जा सकेगा।
इस साल जनवरी में प्रथम का समय पूरा हो गया था। जिसके बाद सभी छात्रों ने अगले प्रॉजेक्ट के बारे में सोचना शुरू कर दिया। अगले प्रॉजेक्ट का नाम ऐडविटी है जिसे 45 छात्रों के एक ग्रुप द्वारा बनाया जाएगा। इस प्रॉजेक्ट में कई सारे बैच के छात्र शामिल हैं। 'प्रथम' के प्रॉजेक्ट मैनेजर रहे यश सांघवी ने कहा, 'हम अभी प्लेलॉड और शुरुआती डिजाइन के बारे में फैसले ले रहे हैं। हम ऐसा सैटेलाइट बनाना चाहते हैं जो भरोसेमंद होने के साथ ही सटीक भी हो। हम अपने पुराने अनुभव से तो सीख ही रहे हैं साथही हम यह भी देख रहे हैं कि प्रथम के अलावा इस प्रॉजेक्ट में और क्या किया जा सकता है।'
डिजाइन तैयार होने के बाद डिपार्टमेंट ऑफ एयरोस्पेस इंजिनियरिंग से अप्रूवल मिलेगा। उसके बाद उसे इसरो के विशेषज्ञों के सामने पेश किया जाएगा। इसरो के वैज्ञानिक आखिर में यह तय करेंगे कि इस सैटेलाइट को फिर से प्रक्षेपित किया जाए या नहीं।
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