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छत्तीसगढ़ का ऐसा इंग्लिश मीडियम स्कूल जहां फीस के नाम पर लगवाया जाता है सिर्फ पौधा

छत्तीसगढ़ का ऐसा इंग्लिश मीडियम स्कूल जहां फीस के नाम पर लगवाया जाता है सिर्फ पौधा

Wednesday August 15, 2018 , 3 min Read

यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है... 

अंबिकापुर के इस गांव के लोग काफी खुश हैं क्योंकि अब उन्हें बच्चों को प्राइवेट अंग्रेजी मीडियम स्कूल में भेजने के लिए मोटी रकम नहीं देनी पड़ती। हालांकि स्कूल में बच्चों की संख्या 50 ही है, लेकिन बीते दो सालों में शिक्षा कुटीर की तरफ से 1200 पौधे रोपे जा चुके हैं।

शिक्षा कुटीर के बच्चे

शिक्षा कुटीर के बच्चे


जिन अभिभावकों के बच्चे शिक्षा कुटीर में पढ़ते हैं उनका कहना है कि यह पहल उनके लिए वरदान की तरह है। क्योंकि वे कभी अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाने का सपना भी नहीं देख सकते थे।

देश में शिक्षा व्यवस्था की हालत ऐसी हो चली है कि हर व्यक्ति चाहता है कि उसके बच्चे अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ें। क्योंकि सरकारी स्कूलों की स्थिति से तो हर कोई वाकिफ ही है। लेकिन प्राइवेट स्कूलों में वही जा सकते हैं जिनके पास पर्याप्त पैसे हों। ऐसे में एक बड़ी आबादी अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाती है। लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसा निजी स्कूल है जहां गरीब बच्चों के सपने पूरे किए जाते हैं। अंबिकापुर जिले के दरीमा इलाके में स्थित शिक्षा कुटीर स्कूल में बच्चों से फीस नहीं ली जाती बल्कि उनके माता-पिता से एक पेड़ लगाने के लिए कहा जाता है।

इस अनोखी पहल की बदौलत अब तक न जाने कितने बच्चों का अच्छे स्कूल में पढ़ने का सपना पूरा हुआ है। इस स्कूल की स्थापना गरीब और पिछड़ी पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों के लिए की गई थी। स्कूल की तरफ से निर्देश जारी किया जाता है कि अगर बच्चों का दाखिला स्कूल में कराना है तो पहले एक पेड़ लगाएं। इतना ही नहीं उस पेड़ की देखभाल करनी होती है और अगर पौधा सूख जाता है तो उन्हें दूसरा पौधा लगाना पड़ता है। इस स्कूल की एक खास बात और है कि यह एक कच्चे मकान में चलता है। यानी पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल।

अंबिकापुर के इस गांव के लोग काफी खुश हैं क्योंकि अब उन्हें बच्चों को प्राइवेट अंग्रेजी मीडियम स्कूल में भेजने के लिए मोटी रकम नहीं देनी पड़ती। हालांकि स्कूल में बच्चों की संख्या 50 ही है, लेकिन बीते दो सालों में शिक्षा कुटीर की तरफ से 1200 पौधे रोपे जा चुके हैं। दरअसल शिक्षा कुटीर अभिभावकों के साथ ही बाकी गांव के लोगों को भी शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करता है। गांव के सेवक दास बताते हैं, 'शिक्षा कुटीर की स्थापना ही इसलिए हुई थी ताकि गरीब बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जा सके।'

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जिन अभिभावकों के बच्चे शिक्षा कुटीर में पढ़ते हैं उनका कहना है कि यह पहल उनके लिए वरदान की तरह है। क्योंकि वे कभी अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाने का सपना भी नहीं देख सकते थे। वैसे तो शिक्षा कुटीर मूलत: शिक्षा के लिए काम करने वाली संस्था है लेकिन साथ में वो पर्यावरण और जीवन उत्थान की दिशा में भी काम करती है। संस्था ने यहां के आदिवासी समाज से जुड़े लोगों के लिए आय के एक अतिरिक्त साधन जोड़ने की जरूरत महसूस की। जिससे उनके स्थानीय ज्ञान और पर्यावरण के अनुकूल हो। इसके लिए गांवों में पौधों का नि:शुल्क वितरण भी किया जाता है।

"ऐसी रोचक और ज़रूरी कहानियां पढ़ने के लिए जायें Chhattisgarh.yourstory.com पर..."

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