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एक ऐसा स्टार्टअप जिसने बदल दी यौन तस्करी से पीड़ित महिलाओं की ज़िंदगी

ToFU (थ्रेड्स ऑफ़ फ्रीडम & यू), बेंगलुरु स्थित एक ऐसा स्टार्टअप है, जो कपड़ों की ब्रांडिंग के माध्यम से यौन तस्करी से मुक्त की गई महिलाओं के पुनर्वास के लिए का काम करता है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में मानव तस्करी का केंद्र पश्चिम बंगाल है, जिनमें 81.7% मामलों में वैश्यावृत्ति के लिए नाबालिगों की बिक्री शामिल है। वैश्यावृत्ति के इन मामलों को बढ़ाने का काम यौन तस्करी द्वारा ही मुमकिन है।

एक ऐसा स्टार्टअप जिसने बदल दी यौन तस्करी से पीड़ित महिलाओं की ज़िंदगी

Friday April 07, 2017 , 10 min Read

भारत में हर आठ मिनट में एक बच्चा गायब हो जाता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के मुताबिक, करीब 40,000 बच्चों का हर साल अपहरण कर लिया जाता है और इनमें से, लगभग 11,000 बच्चों का कभी पता नहीं चल पता। बाल और मानव तस्करी एक वैश्विक मुद्दा है, लेकिन भारत इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से एक है। 2013 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में अपराधों के कम से कम 65.5% मामले मानव तस्करी से संबंधित थे और जिनमें अधिकतर पीड़ित महिलाएं थीं। ज्यादातर मानव तस्करी यौन शोषण से संबंधित होने के साथ-साथ बंधुआ श्रम और अंग व्यापार के लिए की जाती है।

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ToFU (थ्रेड्स ऑफ़ फ्रीडम & यू), बेंगलुरु स्थित एक सामाजिक उद्यम है जो कपड़ों के ब्रांड के माध्यम से यौन तस्करी से मुक्त की गयी महिलाओं के पुनर्वास के लिए का काम करता है।

ToFU (थ्रेड्स ऑफ़ फ्रीडम & यू), बेंगलुरु स्थित एक सामाजिक उद्यम है जो कपड़ों की ब्रांडिंग के माध्यम से यौन तस्करी से मुक्त की गयी महिलाओं के पुनर्वास के लिए का काम करता है। ToFU इन महिलाओं को रोजगार मुहैया करा के सामान्य जीवन में लौटने में मदद करता है, ताकि वे सम्मान और आत्मविश्वास के साथ जीवन में आगे बढ़ सकें। ToFU एक परिधान ब्रांड भी चलाता है, जहां कपड़ा निर्माताओं को निश्चित संख्या में आदेश की गारंटी होती है, और बदले में वे पुनर्वासित महिलाओं को रोजगार देते हैं। इस तरह बेंगलुरु में 2015 में 'थ्रेड ऑफ फ़्रीडम' (ToF) की स्थापना की गई. ToF मानव तस्करी की पीड़ितों महिलाओँ को एक स्थायी नौकरी और सम्माननीय जीवन जी सकें, इसके लिए आवास प्रदान करता है. यह महिलाओं को प्रशिक्षण और परामर्श के साथ ही रोजगार प्रदान करता है.

TOF (थ्रेड्स ऑफ़ फ्रीडम) मूल संगठन है, जो सामाजिक तौर पर काम करता है। इन्होंने ने ही अपना एक सामाजिक स्टार्टअप शूरू किया और उसे नाम दिया ToFU. ये स्टार्टअप शोषित महिलाओं को गैर-सरकारी बचाव संगठनों, सरकारी एजेंसियों और पेशेवर कपड़ों के निर्माताओं के साथ नौकरी प्रशिक्षण, रोजगार और परामर्श प्रदान करने के लिए काम करता है, जिसकी मदद से पीड़ित महिलाएं किसी भी अन्य नागरिक की तरह सम्मानित जीवन जीने की दिशा में आगे बढ़ सकें। ToFU द्वारा की जाने वाली बिक्री से हुए लाभ को संगठन में वापस कर दिया जाता है, जिससे की पीड़ित महिलाओं को इसका लाभ मिल सके। ज्यादातर मानव तस्करी यौन शोषण से संबंधित होने के साथ ही, यह बंधुआ श्रम और अंग व्यापार के लिए भी की जाती है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में मानव तस्करी का केंद्र पश्चिम बंगाल है जहाँ के 81.7% मामलों में वेश्यावृत्ति के लिए नाबालिगों की बिक्री शामिल है। अच्छी बात ये है कि आज भारत में और दुनिया भर में सैकड़ों ऐसे एनजीओ और संगठन हैं जो मानव तस्करी को रोकने या उसके चक्र में फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए प्रयासरत हैं। 

"संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक एजेंसी है 'यूनाइटेड नेशन्स ग्लोबल इनिशिएटिव टू फाइट ह्यूमन ट्रैफिकिंग' (UNGIFT) मानव तस्करी के खिलाफ लड़ने वाले सभी हितधारकों के साथ काम करती है, लेकिन जब किसी पीड़ित को मानव तस्करी के इस खौफनाक जाल से बाहर निकाल लिया जाता है, तो उसके बाद उसका क्या होगा, इस पर कई काम नहीं करता और न ही सोचता है। ये संगठन महिलाओं को उनकी तकलीफ से उबरने में मदद तो करते हैं, लेकिन उनकी आगे की ज़िंदगी और स्थायी आजीविका के बारे में कोई मजबूत कदम नहीं उठाया जाता।"

इन महिलाओं का क्या हो? इन्हें सम्माननीय तरीके से आत्मनिर्भर कैसे बनाया जाये? यही कुछ सवाल 25 वर्षीय प्रीतम राजा के मन में आने शुरू हो गये। वे हिंसा से पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए कुछ करना चाहते थे। उन दिनों प्रीतम अमेरिका में जॉर्जिया टेक में अपनी पढ़ाई कर रहे थे। समाजसेवा में उनकी रुचि हमेशा से थी, लेकिन सुनीता कृष्णन की TED talk को देखने के बाद उनकी ज़िंदगी और ज़िंदगी को समझने का नज़रिया पूरी तरह बदल गया। सुनीता कृष्णन (स्वयं एक बलात्कार पीड़ित हैं) ने सेक्स की गुलामी की ज़िन्दगी से महिलाओं और बच्चों को बचाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। इन सबके बाद प्रीतम ने भारत वापस आकर पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए कुछ करने का फैसला किया। वे सुनीता से मिले और दोनों ने इन सबको लेकर ये निष्कर्ष निकाला कि यौन तस्करी से छुड़ाई गई महिलाओं को समाजिक धारा में वापस लाने की ज़रूरत है। प्रीतम कहते हैं, “मैं उन संगठनों के साथ काम करता था, जो घरेलू हिंसा के खिलाफ मुहिम चलाते थे। एक बार मैं एक ऐसी औरत से मिला जिसके पति ने उसे अपने एक दोस्त के साथ सोने के लिए मजबूर किया था, क्योंकि वो अपने दोस्त से एक शर्त हार गया था। इस तरह की कहानियों ने मुझे अंदर तक हिला दिया था, फिर मैंने महिलाओं की परेशानियों पर पढ़ना शुरू किया।"

'थ्रेड्स ऑफ फ्रीडम' की शुरूआत प्रीतम राजा, सौमिल सुराणा और आदर्श नूनगौर ने की है। प्रीतम का पालन-पोषण मस्कट, ओमान में हुआ था। यौन तस्करी की शिकार महिलाओं को लेकर वे काफी दुखी थे। विशेष रूप से सुनीता कृष्णन की वो बात, जिन्होंने उनका जीवन बदल दिया और वे अमेरिका से अपनी आकर्षक नौकरी छोड़कर भारत आ गये। प्रीतम कहते हैं "मैं सुनीता कृष्णन से मिलने हैदराबाद गया और कुछ संगठनों से बात की, कि हम किस तरह मदद कर सकते हैं और हमें एहसास हुआ कि हम महिलाओं को मुक्त करने के बचाव अभियान में भाग लेने के लिए पूरी तरह से तैयार ही नहीं थे।"

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ToF मानव तस्करी से बाहर निकली पीड़ित महिलाओँ को एक स्थायी नौकरी और सम्माननीय जीवन जी सकने के लिए आवास प्रदान करता है। ये महिलाओं को प्रशिक्षण और परामर्श के साथ-साथ रोजगार भी प्रदान करता है।

जो दल यौन तस्करी से पीड़ित महिलाओं को बाहर निकालते हैं उनके सामने सबसे बड़ी समस्या होती है उन महिलाओं को कहां रखा जाये, उनका क्या किया जाये, उनके रहने खाने की व्यवस्था एक बड़ी चुनौती होती है। प्रीतम सौमिल और आदर्श ने इस समस्या के सामाधान का फैसला किया और उन्होंने ToFu की शुरूआत की। सौमिल, द इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस से स्नातक हैं और जॉर्जिया टेक अटलांटा में औद्योगिक इंजीनियरिंग के प्रमुख हैं। आदर्श संगठन के सेवा प्रभाग और पुनः एकीकरण का काम देखने के साथ ही विभिन्न सहयोगियों के साथ समन्वय का काम भी करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इन महिलाओं का पुनर्वास सही और नियोजित तरीके से हो सके। यौन तस्करी की शिकार महिलाओं का पुनर्वास आसान काम नहीं है। प्रीतम कहते हैं, "इससे जुड़ी अनेक सामाजिक मान्यताएं और सामाजिक दिक्कतें हैं। कई मामलों में पीड़ित महिलाएं अपने परिवारों में वापस नहीं जा सकतीं, क्योंकि उन के परिवार वालों ने ही बेच कर उन्हें इस दलदल में धकेला था। कंपनियां भी उन्हें कर्मचारियों के रूप में नहीं रखतीं, क्योंकि इन पीड़ितों में अक्सर किसी भी प्रकार के औपचारिक प्रशिक्षण की कमी होती है और वे बाहरी दुनिया से थोड़ी अलग भी होती हैं, उन्हें लगता है नजाने लोग उन्हें किस तरह लेंगे। इन्हें अक्सर पुनर्वास गृहों में सालों साल रहना पड़ता जिससे उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से पीड़ा पहुंचती है।”

ToFU अपने उन पार्टनर निर्माताओं से परिधान खरीदता है, जो कपड़ा कारखानों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन के रूप में कार्य करते हैं। इनकी मदद से वे यौन तस्करी से मुक्त की गयी अधिक से अधिक महिलाओं को अपने यहां रोजगार दे पाते हैं। ToFU द्वारा खरीदे गये कपड़े फिर आगे अन्य ब्रांड्स या उपभोक्ताओं को बेच दिए जाते हैं और इस बिक्री से प्राप्त राशि से पीड़ितों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद के लिए बनाया गया पूरा कार्यक्रम संचालित किया जाता है।

ToFU की शुरुआत इन्ही मुद्दों के समाधान के प्रयास के रूप में हुयी थी, और इसका एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था, कि इन पीड़ितों को समाज में बेहतर स्वीकृति मिल सके। उनकी रणनीति आत्मीय होने के साथ सरल भी थी। वे कपड़ों के कारखानों में जाते थे और कहते थे, "हम आपको आपके कपड़ों के लिए निश्चित संख्या के आदेश की गारंटी देंगे, और बदले में आप कृपया हमारे लाभार्थियों को रोजगार दें।" और ये सभी के लिए फायदे की बात थी। ToFU न केवल यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को पुनर्वास में मदद करता है, बल्कि उनके लिए एक स्थायी नौकरी के साथ ही उन्हें प्रशिक्षण, आवास, परामर्श, वित्तीय सहायता, स्वास्थ्य देखभाल, और बाकी सब कुछ जो कि उन्हें पूरी तरह से पूर्ण रूप से पुनर्वासित होने के लिए आवश्यक है, दिया जाता है। दूसरी तरफ बाजार के स्तर पर ToFU दो चीजें करता है। सबसे पहले, ये अन्य कंपनियों और ब्रांड्स के साथ काम करता है और उनके लिए कपड़े का उत्पादन करता है और दूसरी बात, ये अपना खुद का क्लॉथ ब्रांड भी चलाता है। बाजार से मिला पूरा मुनाफा संगठन के सेवा कार्यक्रमों में लगा दिया जाता है और इस प्रकार इस आत्मनिर्भर मॉडल का चक्र पूरा किया जाता है।

ToFU एक मूलभूत विश्वास के साथ काम करता है। एक स्थायी नौकरी किसी भी पुनर्वास प्रयास की आत्मा होनी चाहिए। उन्होंने प्रक्रियाओं का निर्माण किया है और परिधान निर्माताओं, गैर सरकारी संगठनों और सरकारी संगठनों के साथ भागीदारी करके ये सुनिश्चित करने का प्रयास किया है, कि जो भी पीड़ित महिला इनके कार्यक्रम से जुड़े उसे एक अच्छी आय वाली नौकरी की गारंटी हो। अपनी योजनाओं को लागू करते समय मिलने वाली चुनौतियों के बारे में प्रीतम कहते हैं, " पीड़ित लड़कियों के बड़े कारखानों में काम करने से उनकी निजता की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में ये सुनिश्चित कर पाना मुश्किल है कि इन लड़कियों को बिना किसी प्रतिरोध के कार्यबल में समाहित किया जा सके। इनके लिए एक अलग पंक्ति में काम करने की नीति को अपनाना सही नहीं है, इसलिए हमने एक क्रेडिट प्रणाली लागू की, जिसमें निर्माता को एक पुनर्वासित महिला द्वारा उनके लिए किये गए काम के प्रत्येक घंटे पर एक क्रेडिट प्राप्त होता है और इस क्रेडिट पॉइंट को उनके आर्डर के समय डेबिट कर के समायोजित किया जाता है। कारखाने के मालिक और मानव संसाधन को छोड़कर किसी को भी इस कार्यक्रम के बारे में जानकारी नहीं होती है। ये सभी प्रक्रियाएं महिला की गोपनीयता को सुनिश्चित करती हैं। इससे ये भी सुनिश्चित हो पाता है कि वे धीरे-धीरे अपनी सामान्य ज़िंदगी की तरफ वापस लौट रही हैं। हम उनकी निजता का खास ख्याल रखते हैं।”

ToFU चाहता है कि वो अपनी योजना का विस्तार करते हुए ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को ToFU से जोड़े और पीड़ित महिलाओं की ज्यादा से ज्यादा मदद कर सके। अमेरिका में किए गए एक जनसमूह द्वारा कोष जुटाने के अभियान के माध्यम से ToFU ने 25,000 डॉलर जुटाए हैं और वर्तमान में ये राशि कर्नाटक में अपने नेटवर्क का विस्तार करने के लिए उपयोग की जा रही है, साथ ही कंपनी महिला एवं बाल विभाग, कर्नाटक सरकार, अंतर्राष्ट्रीय न्याय मिशन, और स्नेहा और विद्यारण्या जैसी संस्थाओं के साथ काम कर रही है।

प्रीतम कहते हैं, "हर साल 3,000-4,000 पीड़ितों को देश में सेक्स तस्करी के रैकेट से बचाया जाता है और हम उन सभी तक पहुंचना चाहते हैं।" अब तक, ToFU ने अनगिनत महिलाओं को रोजगार दिया है। यौन तस्करी की शिकार हर वो महिला जो इनके संपर्क में आयी उन सभी को रोजगार दिया जा चुका है। अब वे सभी नियोजित हैं और बेहतर ज़िन्दगी की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। संगठन वर्तमान में अपने भागीदारों के माध्यम से अधिक से अधिक महिलाओं को रोजगार देने की स्थिति में है।

-सौरव रॉय

अनुवाद: प्रकाश भूषण सिंह

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