8 साल की उम्र में पिता को खो देने वाली अपराजिता हैं सिक्किम की पहली महिला IPS ऑफिसर
किसी राज्य की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर होना कितने गर्व की बात होती है न। अपराजिता राय ने ये मकाम बहुत कम उम्र में हासिल कर लिया था।
28 साल की उम्र में अपराजिता आईपीएस ऑफिसर बन गईं। अभी वो पश्चिम बंगाल के हुगली में तैनात हैं। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दो बार क्लीयर कर ली 2011 और 2012 में।
अपराजिता ने कोलकाता के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ज्यूरिडिशियल साइंसेज से बीए एलएलबी की पढ़ाई 2009 में पूरी की। उन्होंने इसमें गोल्ड मेल हासिल किया था। अपराजिता के न केवल एकेडेमिक्स शानदार हैं, बल्कि उन्हें संगीत-नृत्य में भी खासी रुचि है।
किरण बेदी, देश की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर। किरण देश में लगन, मेहनत, निष्ठा, अनुशासन की मिसाल बन चुकी हैं। उनकी बहादुरी और कर्तव्य की कहानियां बच्चे-बच्चे को मालूम है। उनके ही नक्शे कदम पर चलती हुई कई महिलाएं आईपीएस अधिकारी बनने के लक्ष्य पर अग्रसर हैं। इसी कड़ी में एक और नाम है अपराजिता राय का। किसी राज्य की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर होना कितने गर्व की बात होती है न। अपराजिता राय ने ये मकाम बहुत कम उम्र में हासिल कर लिया था। एक हंसमुख सा सौम्य चेहरा लेकिन इरादे उतने ही बुलंद। अपराजिता राय पूर्वोत्तर भारत की हजारों महिलाओं और युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
अपराजिता राय, सिक्किम की पहली महिला आईपीएस हैं। 28 साल की उम्र में वे आईपीएस ऑफिसर बन गईं। अभी वो पश्चिम बंगाल के हुगली में तैनात हैं। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दो बार क्लीयर कर ली 2011 औ 2012 में। 2012 की परीक्षा में उनकी रैंक 358 थी। जिसकी वजह से उन्हें आईपीएस कैडर में नियुक्ति मिल गई। पहले प्रयास में उन्हें 768वीं रैंक मिली थी। अपनी काबिलियत की वजह से उन्होंने मेडल्स पर मेडल्स हासिल किए। 1958 बैच के आईपीएस ऑफिसर की ट्रॉफी मिली, बेस्ट लेडी आउटडोर प्रोबेशनर के लिए, श्री उमेश चंद्र ट्रॉफी मिली फील्ड कॉम्बैट के लिए, 55वें बैच की सीनियर कोर्स ऑफिसर ट्रॉफी फॉर बेस्ट टर्नआउट और बेस्ट बंगाल गवर्नमेंट ट्रॉफी फॉर बेंगाली, ये सारे मेडल्स और ट्रॉफियां उनकी शान में कसीदे गढ़ते रहेंगे।
जब वो 8 साल की थीं, तभी उनके पिता जी का देहांत हो गया था। उनके पिता फॉरेस्ट डिवीजनल ऑफिसर थे। अपराजिता को उनकी मां रोमा राय ने पाल पोसकर बड़ा किया था। पिता की मौत के बाद सरकारी नुमाइंदों का काफी असंवेदनशील रवैया रहा था उनके परिवार के प्रति। जब उनके पिता गुजरे तभी उन्होंने मन ही मन तय कर लिया था कि उन्हें प्रशासनिक सेवा में जाना है। उनका ध्येय था कि कोई भी इंसान अभावों की वजह से वो हासिल करने में असमर्थ न रहे जिसका कि वो हकदार हो। राय के मुताबिक, मैं अपने पास आए हर शख्स की हरसंभव मदद की कोशिश करती हों। किसी को भी ये महसूस नहीं होने देती कि सरकारी दफ्तर है इसलिए उनका काम रुक रहा।
अपने स्कूल में वो लगातार टॉप करती आई थीं, बोर्ड्स के एग्जाम में भी टॉप किया था। उन्होंने 2004 में 12वीं की परीक्षा में 95 प्रतिशत नंबरों के साथ प्रदेश के टॉप-3 स्थानों पर अपनी छाप छोड़ी थी। इंडियनगोरखा.इन के मुताबिक, अपराजिता ने कोलकाता के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ज्यूरिडिशियल साइंसेज से बीए एलएलबी की पढ़ाई 2009 में पूरी की। उन्होंने इसमें गोल्ड मेल हासिल किया था। अपराजिता न केवल एकेडेमिक्स शानदार हैं बल्कि उन्हें संगीत-नृत्य में भी खासी रुचि है। उन्हें गिटार बजाना पसंद है और वो एयरोबिक्स भी करती हैं। वो भरतनाट्यम भी करती हैं। उन्हें जर्मन रॉक संगीत बेहद पसंद है। अपराजिता का मानना है कि सिक्किम के युवाओं में जागरूकता की बड़ी कमी है। वो बाहर जाकर प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहते। वो बस एक नौकरी पा लेना चाहते हैं और अपने व्यक्तित्व के समुचित विकास पर ध्यान नहीं देते।
अपराजिता का जीवन, उनकी सफलता, उनकी कार्यशैली एक मिसाल है। वो लोग, जिन्होंने प्रशासनिक दफ्तरों का लालफीताशाही का अड्डा बना रखा है, उन्हें अपराजिता से सीखना चाहिए। अपराजिता उन बच्चों को लिए भी ढांढस हैं जिन्होंने कम उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया है। माता-पिता की कमी को कोई पूरा तो नहीं कर सकता लेकिन जिस तरह से अपराजिता की मां रोमा ने उन्हें सही मार्गदर्शन दिया वो बहुत ही जरूरी है। अपराजिता भी निरंतर मेहनत करती रहीं और अपने बल पर उन्होंने इतिहास रच ही दिया। अपराजिता अभी कोलकाता में डेप्युटी कमिश्नर ऑफ पुलिस के पद पर तैनात हैं।
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