कैसे 12 दलित महिलाओं ने बना डाला बिहार का पहला वुमन बैंड
जाति व्यवस्था ने जिन्हें सबसे नीचे स्थान दिया, आज वहीं महिलाएं अपने बल पर कमा रही हैं नाम...
आत्मविश्वास से लबरेज, हंसती, गाती-बजाती औरतें कितनी खूबसूरत लगती हैं न। बड़े-बड़े शहरों में ऊंची सैलरी और सभी सुविधाओं से लैस महिलाएं तो अपने मनमाफिक जिंदगी जीती ही हैं, लेकिन अगर किसी छोटे से गांव की महिलाएं जिंदगी अपनी शर्त पर जी रही हों तो वो मिसाल बन जाती हैं। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है बिहार के दानापुर गांव की महिलाओं ने।
इन महिलाओं ने बिहार का पहला (संभवतः पूर्व भारत का पहला) ऑल वुमन बैंड बनाया है। बैंड का नाम है, नारी गुंजन सरगम म्यूजिकल बैंड। इस बैंड में 20 साल से लेकर 60 साल की महिलाएं शामिल हैं।
सबसे दीगर बात ये है कि इस बैंड की सारी महिलाएं दलित समुदाय से आती हैं। जाति व्यवस्था ने जिन्हें सबसे नीचे स्थान दिया, आज वहीं महिलाएं अपने बल पर नाम कमा रही हैं। ये महिलाएं कमाती हैं, खुद पर खर्च करती हैं, आजाद घूमती है और खूब मस्त बैंड बजाती हैं।
आत्मविश्वास से लबरेज, हंसती, गाती-बजाती औरतें कितनी खूबसूरत लगती हैं न। बड़े-बड़े शहरों में ऊंची सैलरी और सभी सुविधाओं से लैस महिलाएं तो अपने मनमाफिक जिंदगी जीती ही हैं। लेकिन अगर किसी छोटे से गांव की महिलाएं जिंदगी अपनी शर्त पर जी रही हों तो वो मिसाल बन जाता है। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है बिहार के दानापुर गांव की महिलाओं ने। इन महिलाओं ने बिहार का पहला (संभवतः पूर्व भारत का पहला) ऑल वुमन बैंड बनाया है। बैंड का नाम है, नारी गुंजन सरगम म्यूजिकल बैंड। इस बैंड में 20 साल से लेकर 60 साल की महिलाएं शामिल हैं।
और सबसे दीगर बात है कि ये सारी महिलाएं दलित समुदाय से आती हैं। जाति व्यवस्था ने जिन्हें सबसे नीचे स्थान दिया, आज वहीं महिलाएं अपने बल पर नाम कमा रही हैं। ये महिलाएं कमाती हैं, खुद पर खर्च करती हैं, आजाद घूमती है और खूब मस्त बैंड बजाती हैं। ये महिलाएं सुंदर कपड़े पहनती हैं और मनपसंद लिपकलर भी लगाती हैं। वो सारे काम करती हैं, जिसकी मनाही समाज ने इनके लिए कर रखी थी। सिर्फ इसलिए कि वो तथाकथित छोटी जाति से हैं। बिहार की ये महिलाएं हमारे समाज की हीरोइनें हैं।
इस ग्रुप की एक महिला छतिया देवी ने लाइव मिंट से बातचीत में अपनी बदल चुकी जिंदगी के बारे में बताया, हमें घूमने में खूब मजा आता है। हम काम के सिलसिले में अलग-अलग जगहों पर जाते रहते हैं। जहां भी जाते हैं, वहां पर एक दो दिन एक्स्ट्रा रुक जाते हैं ताकि वहां आस पास घूम सकें। हम कहीं भी जाने के लिए तैयार रहते हैं। हमारे लिए नित नई राहें खुल रही हैं। ये महिलाएं इस बैंड में शामिल होने से पहले दिहाड़ी मजदूरी का काम करती थीं, जिसके लिए उन्हें केवल 100 रुपए मिलते थे। इसलिए जब उन्हें बैंड में शामिल होकर ड्रम बजाने के लिए कहा गया तो वो बिना झिझक के तैयार हो गईं। बैंड के शुरुआती दिनों में उन्हें हर इवेंट के लिए 5 हजार रुपए मिलते थे जोकि अब बढ़कर 12 हजार रुपए हर इवेंट के लिए हो गए हैं।
इन महिलाओं का यहां तक सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। उनकी जाति की वजह से उनको दस बातें सुननी पड़ती थी। एक तो महिला ऊपर से दलित, दो दो सामाजिक वंचनाएं। लोगों ने कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी, उन्हें नीचा दिखाने में, हतोत्साहित करने में। लेकिन ये महिलाएं आगे बढ़ती रहीं और क्या खूब आगे बढ़ूीं। बैंड की एक सदस्या सरिता देवी ने स्क्रॉल को बताया, लोगों ने कभी हमारा साथ नहीं दिया। वो कहते थे कि ड्रम बजाना तो मर्दों का काम है, तुम औरतें क्या करोगी। लेकिन हमने किसी की न सुनी, हम बस अपना काम करते गए।
इन महिलाओं को आदित्य गुंजन नाम के म्यूजिक टीचर ड्रम बजाना सिखाते हैं। नारी गुंजन सरगम म्यूजिकल बैंड दरअसल सामाजिक कार्यकत्री सुधा वर्गीज की पहल का हिस्सा है। सुधा केरल की हैं। वहां उन्होंने नारी गुंजन नाम से एक एनजीओ की स्थापना 1987 में की थी। इस संगठन ने बिहार की कईयों महिलाओं की जिंदगी संवारी है। करीब 100 सेंटरों, 900 महिला समूहों और अनेकों वोकेशनल ट्रेंनिंग सेंटरों के साथ ये संगठन बिहार की महिलाओं के लिए दशकों से काम कर रहा है।
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