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14 साल के बच्चे ने 14 लाख जुटाकर 300 बेसहारों को बांटे कृत्रिम पैर

14 साल के बच्चे ने 14 लाख जुटाकर 300 बेसहारों को बांटे कृत्रिम पैर

Sunday December 02, 2018 , 3 min Read

मुंबई के अमेरिकन स्कूल ऑफ बॉम्बे में 9वीं क्लास में पढ़ने वाले 14 साल के वीर अग्रवाल का मन दूसरों की सेवा में लगता है। उन्होंने अभी हाल ही में क्राउडफंडिंग के जरिए 14 लाख रुपये जुटाए और इन पैसों की मदद से दिव्यांगजनों को कृत्रिम अंग और व्हीलचेयर साइकिल वितरित की गईं।

वीर अग्रवाल

वीर अग्रवाल


वीर ने नि:शक्तजनों की स्थिति पर एक छोटा सा रिसर्च किया था और उनसे जुड़ी जानकारी जुटाई थी। इसके बाद उसने क्राउडफंडिंग के जरिए पैसे जुटाने का फैसला किया।

अगर किसी 14 साल के बच्चे से पूछा जाए कि बड़े होकर वह क्या बनना चाहता है तो बहुत संभव है कि उसके मुंह से डॉक्टर, इंजीनियर, ऑफिसर, पायलट जैसे शब्द निकलेंगे। लेकिन मुंबई के अमेरिकन स्कूल ऑफ बॉम्बे में 9वीं क्लास में पढ़ने वाले 14 साल के वीर अग्रवाल का मन दूसरों की सेवा में लगता है। उन्होंने अभी हाल ही में क्राउडफंडिंग के जरिए 14 लाख रुपये जुटाए और इन पैसों की मदद से दिव्यांगजनों को कृत्रिम अंग और व्हीलचेयर साइकिल वितरित की गईं।

वीर से जब पूछा गया कि वह क्या बनना चाहता है तो उसने कहा कि फिलहाल अभी इसके बारे में कुछ सोचा नहीं है, लेकिन दूसरों की मदद करने में उसे बेइंतेहा खुशी महसूस होती है। वीर ने क्राउडफंडिंग वेबसाइट vhelptowalk.org के जरिए 14 लाख रुपये इकट्ठा किए और 300 गरीब नि:शक्तजनों को कृत्रिम अंग वितरित किए ताकि वे फिर से चल सकें। नि:शक्तजनों को 'जयपुर फुट' के नाम से जाने वाले कृत्रिम पैर बांटे गए। इन लिंब्स की कीमत लगभग 5,000 रुपये प्रति यूनिट होती है।

महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में काम करने वाला नॉन प्रॉफिट संगठन 'सेठ भगवानदास जे अग्रवाल चैरिटेबल ट्रस्ट' द्वारा वाहिम जिले में कैंप का आयोजन किया गया और जरूरतमंदों की मदद की गई। कैंप में लगभग 350 गरीब परिवार के लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें से 300 लोगों को कृत्रिम पैर दिए गए तो वहीं दर्जन लोगों को व्हीलचेयर दी गईं।

कैंप में आए अधिकतर लोगों के पैर दुर्घटना में खराब हो गए थे। वीर ने कहा, 'जब मैं केवल 5 वर्ष का था तो एक गंभीर कार दुर्घटना में मुझे काफी चोटें आई थीं। इस वजह से लगभग 3 महीनों तक मुझे बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा। वो दर्द इतना खतरनाक था कि आज भी याद करके मैं सिहर उठता हूं। जब भी मैं शीशे में अपने शरीर के उन धब्बों को देखता हूं तो मुझे वो दर्द याद आ जाता है। वही दर्द मुझे दूसरों का दर्द समझने में मदद करता है।'

वीर ने नि:शक्तजनों की स्थिति पर एक छोटा सा रिसर्च किया था और उनसे जुड़ी जानकारी जुटाई थी। इसके बाद उसने क्राउडफंडिंग के जरिए पैसे जुटाने का फैसला किया। वीर के इस प्रयास में उसके परिवारवालों खासकर पिता ने काफी मदद की। वीर का कहना है कि इन बेसहारों के चेहरे पर खुशी लाकर उसे बेहद सुकून मिलता है। हालांकि उसका काम यहीं खत्म नहीं हुआ है और वह कहता है कि आगे भी वह ऐसे काम करता रहेगा।

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