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किसी फ़िल्म से कम नहीं इस पिता के संघर्ष और बेटे की सफलता की कहानी

किसी फ़िल्म से कम नहीं इस पिता के संघर्ष और बेटे की सफलता की कहानी

Friday November 30, 2018 , 4 min Read

 बेटे या बेटी की सफलता के लिए मां-बाप हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन आज हम जिस पिता के संघर्ष और उसके फलस्वरूप बेटे को मिली सफलता की दास्तान पेश करने जा रहे हैं, वह किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं।

शिव अरूर

शिव अरूर


बेहद कम आय के बावजूद कई सालों तक कैटरिंग कंपनी में नौकरी करने के बावजूद बथिरासामी और उनके एक दोस्त ने नौकरी छोड़ने का फ़ैसला लिया, लेकिन कैटरिंग कंपनी उन्हें नौकरी छोड़ने नहीं दे रही थी। 

माता-पिता अपने बच्चे को पढ़ाने-लिखाने और उसे एक अच्छा भविष्य देने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। इस दिशा में अगर उन्हें अपने सपनों और इच्छाओं का भी बलिदान देना पड़े, तो उन्हें गुरेज़ नहीं होता। बेटे या बेटी की सफलता के लिए मां-बाप हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन आज हम जिस पिता के संघर्ष और उसके फलस्वरूप बेटे को मिली सफलता की दास्तान पेश करने जा रहे हैं, वह किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं।

तमिलनाडु के करामदै में रहने वाले बथिरासामी के परिवार में पीढ़ियों से लोग शिक्षा और एक अच्छी जीवनशैली से महरूम थे। बथिरास्वामी भी अपने परिवार के इस दुर्भाग्य से अछूते नहीं रहे, लेकिन वह अपने बेटे के लिए बेहतर भविष्य चाहते थे और इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। हालात लगातार उनका इम्तेहान ले रहे थे। शिक्षा के अभाव में बथिरासामी के पास कोई स्थाई रोज़गार नहीं था और कम उम्र में ही उनकी शादी भी हो गई। शादी के कुछ वक़्त बाद ही उनके कंधों पर पत्नी और बच्चे दोनों की जिम्मेदारी आ गई।

हालात जितने भी विपरीत हों, बथिरासामी को अपने परिवार को तो पालना ही था। इस दौरान उन्होंने पैसे कमाने के लिए हर तरह का काम किया, लेकिन पैसे की आमद न के बराबर थी। हालांकि, बथिरासामी की मेहनत रंग लाई और उन्हें तमिलनाडु के वेलिंगटन में डिफ़ेंस सर्विसेज़ स्टाफ़ कॉलेज के कैटरिंग स्टाफ़ में नौकरी मिल गई। यहां पर उनकी आय तो ज़्यादा नहीं थी, लेकिन अब उनके पास एक स्थाई रोज़गार ज़रूर था।

द बेटर इंडिया से बातचीत में बथिरासामी ने बताया कि उनकी बड़ी बेटी आम बच्चों की तरह नहीं थी और बचपन से ही उसके शरीर में कई तरह की कमियां थीं। बीमारियों से पीड़ित उनकी बच्ची की 5 साल की आयु में ही मौत हो गई। इस सदमे से उबरने में बथिरासामी और उनकी पत्नी को काफ़ी वक़्त लगा। इस पर बथिरासामी कहते हैं कि अगर वे वक़्त के साथ आगे नहीं बढ़ते और हालात उनके लिए बद से बदतर होते चले जाते।

बेहद कम आय के बावजूद कई सालों तक कैटरिंग कंपनी में नौकरी करने के बावजूद बथिरासामी और उनके एक दोस्त ने नौकरी छोड़ने का फ़ैसला लिया, लेकिन कैटरिंग कंपनी उन्हें नौकरी छोड़ने नहीं दे रही थी। लेकिन इस चुनौती के पीछे वक़्त का एक करिश्मा उनका इंतज़ार कर रहा था, जिसका उन्हें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था।

उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर कंपनी के ऊपर मुकदमा दर्ज करा दिया। कंपनी ने भी बथिरासामी और उनके साथी के ख़िलाफ़ क़ानूनी लड़ाई का फ़ैसला लिया। कोर्ट में क़ानूनी प्रकिया के दौरान बथिरासामी के वक़ील को जानकारी हुई कि कैटरिंग कंपनी अपने कर्मचारियों को प्रोफ़ेशनल फ़ंड देने का दावा करती है, लेकिन सालों से बथिरसामी और उनके दोस्त को इस रक़म से एक भी पैसा नहीं मिला। इतना ही नहीं, बथिरासामी को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं थी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और बथिरासामी को सफलता हासिल हुई।

बथिरासामी और उनके दोस्त को 6 लाख रुपए का मुआवज़ा मिला और इस पैसे से अपने बेटे विजी को अच्छी शिक्षा दिलाने का बथिरासामी का सपना भी पूरा हुआ। विजी ने अपने पिता के संघर्ष का मान रखते हुए भरपूर मेहनत की और उन्होंने इकनॉमिक्स विषय में पीएचडी की डिग्री ली। आज की तारीख़ में विजी बेंगलुरु की क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में असिस्टमेंट प्रोफ़ेसर हैं और अब वह यूपीएससी की परीक्षा पास कर आईएएस बनना चाहते हैं।

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