"मेरे घर वालों ने इलाके का बुनियादी विकास नहीं किया", युवा सरपंच प्रतिभा ने बदल दी एक साल में पंचायत की तस्वीर
"बचपन से ये सुनती आती थी कि बेटियां तो गांव से विदा हो जाएगी, अंतिम यात्रा में लकड़ी तो बेटा ही देगा. लेकिन आप जानते हैं, मैं गांव की बेटी भले ही हूं पर गांव छोड़कर कहीं नहीं जा रही हूं और गांव में हर किसी के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां मैं मुफ्त में देती हूं"
मुस्कुराते हुए अपनी बात की शुरुआत प्रतिभा करती है. प्रतिभा की ये बातें सुनने में अटपटी भले ही लगे लेकिन कॉलेज में पढ़ाई कर रही राजसमंद जिले के पछमता की युवा सरपंच की इस योजना का पंचायत में सामाजिक और आर्थिक नजरिए से बड़ा बदलाव ला रही है. पहला तो गरीब अंतिम संस्कार के खर्चे तले दबने से बच रहे हैं और दूसरा कि ये सोच बदली है कि बेटा के लकड़ी देने से ही मोक्ष होता है. प्रतिभा ने ये वादा अपने चुनाव में किया था कि किसी को अंतिम संस्कार के लिए खर्च करने की जरुरत नहीं, वो इसका खर्चा खुद उठाएंगी. इसीलिए सूखी लकड़ियों का पंचायत में एक डिपो भी बनाई है.
23 साल की उम्र में क्लिनिकल साईक्लोजी में मास्टर डिग्री रखनेवाली सरपंच बनी प्रतिभा चौधरी की तीन पीढ़ियां राजनीति में रही हैं. लेकिन प्रतिभा को ये बात हमेशा अखरती है कि ये इलाका आज भी विकास से कोसो दूर है. प्रतिभा कहती है,
"जब मैं चुनाव जीतकर पहली बार सरपंच भवन गई तो देखा कि लोगों के पेंशन और प्रमाण पत्र के कागज उनके दादा के साईन किए हुए रखे पड़े हैं। उन्हें किसी ने जमा ही नही कराए और लोग ने ये मानकर संतोष कर लिया कि वो इन योजनाओं के पात्र नहीं थे इसलिए कुछ हुआ ही नही"
पांच साल के लिए सरपंच बनी प्रतिभा ये सबकुछ बदलना चाहती है. मीरा कालेज से एमए पूरा कर जब वो मोहनलाल सुखाड़िया विश्विधालय से मनोविज्ञान में पीएचडी कर रही थीं तभी घरवालों ने चुनावी राजनीति में डाल दिया. दो बार सरपंच रहे ताउ प्याचंद जिद करने लगे कि चुवान लड़ो. ये आसान नहीं हुआ। आखिरी समय में चचेरे भाई की पत्नि भी सामने खड़ी हो गई. प्रतिभा चुनाव तो जीत गई लेकिन असल इम्तिहान अब शुरु हुआ.
गांव में पीने की पानी बड़ी समस्या थी. पंचायत के पास फंड थे नही. गांववालों को उम्मीदें काफी थी लिहाजा जयपुर का चक्कर काटना शुरु किया और पीएचडी मिनिस्टर किरण महेश्वरी से बनास नदी का पानी पाईप लाईन से लाने का 66 लाख प्रोजेक्ट पास करवाया. गांव में पानी की टंकी का निर्माण शुरु हो गया है और घरों में नल से पानी आगा. इलाके की निजी कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड से भी सहयोग लेकर पंचायत में आरओ प्लांट लगावा दिया है. इसके इलावा गांव की सभी गलियों को सीमेंटेड करवा दिया है. गांव की कमला बताती हैं,
"पहले घर से निकला मुश्किल होता था. बरसात में गांव ही कीचड़ बन जाता था लेकिन अब पक्की सड़क बनने के बाद ऐसा नही है"
प्रतिभा के पंचायत के अंदर पांच बड़े गांव आते हैं जहां से पंचायत भवन बहुत दूर था इसलिए इन्होंने ई-कियोस्क शुरु करवाया ताकि हर कोई यहां आकर कंप्यूटर में अपना कागज और आवेदन डलवा दे और फिर प्रतिभा उनका काम ऑनलाईन देख सकें और उनके काम का प्रोग्रेस देख सकें। लोग देख भी सकें उनके आवेदन या काम कहां तक पहुंचा. इस योजना की सफलता ने गांव की आधी समस्या दूर कर दी. सबसे ज्यादा समस्या वृद्धाअवस्था पेंशन और विधवा पेंशन की होती थी लेकिन ई-मित्र कियोस्क के जरिए ये सारा काम गांव में होता है. यही नहीं अब खाता से पैसे लाने शहर भी नही जाना पड़ता है. प्रतिभा ने इसके लिए स्टेट बैंक आफ इंडिया से करार किया है और बैंक के लोग मोबाईल बैंकिग के जरिए गांव में जाकर काम करते हैं.
प्रतिभा खाली समय में किताबें पढ़ना पसंद करती हैं, साथ ही आगे पढ़ने की भी ख्वाहिश है. लिहाजा अपने लिए भी वक्त निकालकर कर पढ़ाई करती रहती हैं. प्रतिभा की पढ़ाई की लगन का असर गांव के युवाओं पर भी पड़ा है और गांव में पढ़ाई का ऐसा माहौल बना है कि सभी लड़के-लड़कियां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे हैं. प्रतिभा के दादा बद्रीलाल तीस साल तक यहां के प्रधान रह चुके हैं. बड़े ताउ डाक्टर रतनलाल जाट सहाड़ा विधानसभा से विधायक रह चुके हैं और दूसरे डाक्टर बी.आर चौधरी ताउ फिलहाल सहाड़ा से ही विधायक है. लेकिन गांव के दुकानदार कमलेश चौधरी कहते हैं कि प्रतिभा अपने घरवालों की तरह नही है. ये विकास पर ध्यान लगाती है. 50 सालों में जो गांव में नही हुआ था उसने एक साल में कर दिखाया है.
प्रतिभा भी कहती हैं,
"मुझे कहने में कोई संकोच नही है कि हमारे घरवालों ने इलाके के विकास पर कभी ध्यान नही दिया. लोगों की जरुरत को ठीक से नही समझा गया शायद इसीलिए उनके बुनियादी काम कभी नही हो पाए"इसलिए कहा जाता है कि युवा अच्छा और बुरा समझते हैं। ग़लत और सही का फ़र्क जानते हैं। युवा जानते हैं कि विकास ज़रूरी है और वो ये भी जानते हैं कि जनता समझदार है और उसकी समझदारी की इज्जत ज़रूरी है.