करेले ने किया किसान को मालामाल, झारखंड के गंसू महतो हर महीने कमा रहे लाखों
मंडियों में भाव की दृष्टि से रुख उल्टा होने के बावजूद करेले की ताजा फसल से भी किसान मालामाल हो रहे हैं। आठ एकड़ में करेले की खेती करने वाले झारखंड के गंसू महतो तो इसी फसल में अब तक एक लाख कमा चुके हैं। उनको उम्मीद है, आने वाले कुछ दिनो में ही उनकी चार लाख तक की कमाई हो जाएगी।
महतो का कहना है कि आज के समय करेला ही नहीं, आधुनिक तरीके से किसी भी सब्जी की खेती की जाए, खूब पैसा बनाया जा सकता है। बाजार में हर तरह की सब्जी की अब पूरे साल भर भारी डिमांड बनी रह रही है।
बारिश के दिनो में जहां बाकी सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, करेले की खेती किसानों की कमाई का अलग ही रिकॉर्ड बना रही है। किसान मालामाल हो रहे हैं। अपने विशेष औषधीय गुणों के कारण अन्य सब्जियों की अपेक्षा बाजार में करेले की सर्वाधिक मांग रहती है। इसकी खेती खरीफ-रबी दोनों में की जाती है। खरीफ के मौसम में मचान पर करेला उगाकर इस बार अच्छी उपज हुई है। इससे किसानों को अकूत मुनाफा हुआ। करेले की उन्नतशील किस्म पूसा दो मासी की बुआई के पचपन दिन बाद ही सब्जी तोड़ने लायक हो जाती है। इसके फल हरे मोटे और लंबे होते हैं। रांची (झारखंड) के किसान गंसू महतो इन दिनों करेले की बिक्री से मालामाल हो रहे हैं। वह अपने कुल आठ एकड़ खेत में तरह-तरह की सब्जियों की खेती कर रहे हैं।
इस समय उनके खेत में करेले की फसल तैयार होकर भारी मात्रा में बाजार पहुंच रही है। खेत में जमकर करेले की तुड़ाई हो रही है। महतो ने गत अप्रैल में अपने खेत में करेले की फसल बोई थी। इस बार उनके खेत में अब तक तीस कुंतल करेला पैदा हो चुका है। अब तक उन्होंने लगभग एक लाख रुपए की कमाई कर ली है। उन्होंने इसकी खेती पर करीब तीस हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च किए थे। उन्हें आठ एकड़ के करेले की फसल से उन्हे कुल साढ़े तीन लाख की शुद्ध आमदनी होने जा रही है। यद्यपि वह करेले के अलावा तरबूज की भी खेती करते हैं लेकिन अकेले करेले से ही वह करीब चार लाख तक कमा लेते हैं।
महतो का कहना है कि आज के समय करेला ही नहीं, आधुनिक तरीके से किसी भी सब्जी की खेती की जाए, खूब पैसा बनाया जा सकता है। बाजार में हर तरह की सब्जी की अब पूरे साल भर भारी डिमांड बनी रह रही है। सब्जियों फसल के सही प्रबंधन और रखरखाव से ही अच्छी पैदावार मिलती है। इसके लिए वह ड्रिप और मल्चिंग लगाकर खेती कर रहे हैं। मल्चिंग के कारण खरपतवारों से फसल मुक्त रहती है। ड्रिप से पानी की बचत हो जाती है। वह अपनी फसलों में ज्यादा से ज्यादा जैविक खादों का प्रयोग करते हैं। साथ ही, पौधों और फलों का अच्छा विकास हो, इसके लिए स्टेकिंग भी करते हैं। कल्याणपुर बारहमासी, फैजाबादी, प्रिया, पूसा विशेष आदि इसकी प्रमुख किस्में है।
बुआई के समय वर्षा ऋतु की फसल के लिए जून-जुलाई तक बुआई की जा सकती है। इसमें उर्वरक के रुप में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश की आवश्यकता होती है। एक हेक्टेयर में तीन से चार किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। इसकी बुआई चौड़ी मेड़ों पर 45 से 60 सेमी की दूरी पर की जाती है। वर्षा ऋतु में करैले की खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। जैसे ही बीज अंकुरित हों, बॉस पर मचान बनाकर नॉयलान की रस्सी बांधकर इनकी लताओं को ऊपर चढ़ा देना चाहिए। जब फलों का रंग हरे से हल्का पड़ना शुरू हो जाए, तुड़ाई करने का वह सही समय होता है। आमतौर से बुवाई के लगभग तीसरे महीने करेला तोड़ने लायक हो जाता है।
ऐसे वक्त में महतो करेला बेचकर मालामाल हो रहे हैं, जबकि बाजार का रुख कुछ अच्छा नहीं माना जा रहा है। हाल के वर्षों में शुगर के मरीजों की बढ़ी संख्या ने इस सब्जी की डिमांड भी काफी बढ़ा दी है। खाने में कड़वा लगने के बावजूद लोग इसका उपयोग बड़ी मात्रा में कर रहे हैं। करेले की डिमांड बढ़ी, तो किसान भी इसकी खेती की ओर आकर्षित हुए। इससे पहले इसकी खेती में किसानों को बड़ा मुनाफा होता आ रहा था लेकिन इस फसल में मंडी के भाव में कुछ कमजोरी दर्ज हो रही है। इसकी वजह बताई जा रही है कि इस वर्ष करेले का उत्पादन अधिक होने और बाजार का रुख उल्टा होने से मनमाफिक मुनाफा संभव नहीं हो पा रहा है। मंडियों में इस वक्त वह चार-पांच सौ रुपए कुंतल बिक रहा है। किसानों का कहना है कि सरकार को हमें बाजार देना चाहिए। गोदाम की कमी के कारण वे करेले का स्टॉक नहीं कर पा रहे हैं। कच्चा सौदा होने के कारण औने-पौने दाम पर करेला बेचना उनकी मजबूरी हो गई है।
सब्जी उत्पादक किसानों के लिए सुखद ये है कि बारिश के मौसम में सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। इससे आम आदमी के रसोई का बजट गड़बड़ हो गया है। ग्राहकों का कहना है कि सभी सब्जियों के दाम पिछले महीने की तुलना में दोगुने हो गए हैं। जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि बारिश की वजह से सब्जी की आवक कम हो गई है। साथ ही सब्जियां जल्दी खराब भी हो जा रही हैं। इसी वजह से दाम आसमान छू रहे हैं। भारी बारिश ने सब्जियों की कीमतों में आग लगा दी है। खेतों में पानी भरने से भी सब्जियों की आवक कम हो रही है। इस वजह से करेले तक की कीमतें चार गुना बढ़ गई हैं। पिछले दिनो, पहले तो ट्रकों की हड़ताल से मंडी वाले परेशान थे। उनका माल मंडी में ही सड़ रहा था। हड़ताल खत्म होते ही कारोबारियों को उम्मीद थी कि मंडी में आवक ठीक हो जाएगी और माल भी बाहर जाने लगेगा। माल तो बाजार में गया, लेकिन खेतों में पानी भरने से आवक की कमी ने नया संकट पैदा कर दिया है।
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