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"मुल्क" (कविता)

"मुल्क" (कविता)

Thursday January 12, 2017 , 1 min Read

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ग़ालिब कभी, या फैज़ कभी मैं मीर लिख देता..

"बना के मुल्क को मौज़ू कोई तहरीर लिख देता..

जैसे अभी हालात हैं,अवाम-ए-मुल्क की...

सियासत को अपने लफ्ज़ में शमशीर लिख देता..

एक लफ्ज़ में गर दर्द की करनी हो वज़ाहत..

रंज-ओ-अलम को छोड़ मैं कश्मीर लिख देता।"

(तहरीर- article, शमशीर- sword ,रंज-ओ-अलम - sorrow , वज़ाहत- explain , सियासत-politics)

नई कलम के लिए, बैंगलोर से फैज़ अकरम...