21 साल की उम्र में पहली बार ट्रेन में बैठीं और बन गईं स्टेशन मास्टर
पिंकी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि उदाहरण हैं उन लड़कियों के लिए जो मुश्किल दौर से लड़ कर प्रेरणा लेते हुए मिसाल बन जाती हैं। पिंकी हमेशा से ही कुछ ऐसा करना चाहती थीं, जो दूसरों से थोड़ा अलग हो।
उम्र के 21 वर्ष तक पिंकी ने कभी ट्रेन में सफ़र तक नहीं किया था और न ही कभी ट्रेन के नज़दीक तक गई थीं, लेकिन ट्रेन में बैठने के ठीक पांच साल बाद स्टेशन मास्टर बन गईं। बात ये नहीं है, कि पिंकी स्टेशन मास्टर बन गईं, बात सिर्फ इतनी सी है कि पिंकी जिस माहौल से आती हैं वहां से आकर कुछ इस तरह का काम कर लेना अपने आप में बहुत बड़ी बात है।
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कैथलीघाट रेलवे स्टेशन जितना अपनी शांति और खूबसूरती के लिए जाना जाता है, उतना ही यहां की स्टेशन मास्टर पिंकी के लिए भी जाना जाता है। इस रेलवे स्टेशन पर तैनात पिंकी कुमारी की प्रेरणात्मक कहानी जन मानस के मस्तिष्क में जोश भर जाती है, जिसकी सबसे बड़ी वजह है उत्तर रेलवे के इस सेक्शन पर पिंकी कुमारी का एकमात्र महिला स्टेशन मास्टर होना।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से बीस किलोमीटर पर कैथलीघाट नाम का एक कस्बा है। ब्रिटिश सम्राज्य के दौरान शिमला अंग्रेजों का ‘समर कैपिटल’ हुआ करता था। ऐसे में बिटिशर्स ने कालका से शिमला तक एक छोटी ट्रेन चलाई जिसे ‘टॉय ट्रेन’ कहा जाता है। नैरो गेज़ की पटरी पर चलने वाली ये ट्रेन जितनी सुंदर है उससे कहीं अधिक दिलकश है। इसके कालका-शिमला रूट पर पड़ने वाले रेलवे स्टेशन देखते ही मन ठंडक से भर जाता है। सड़क के किनारे पहाड़ों से घिरे हुए शांत जंगल किसी फिल्मी सेट की तरह साफ-सुथरे नज़र आते हैं। इन्हीं सबके बीच है कैथलीघाट रेलवे स्टेशन।
कैथलीघाट रेलवे स्टेशन जितना अपनी शांति और खूबसूरती के लिए जाना जाता है, उतना ही यहां की स्टेशन मास्टर 'पिंकी कुमारी' के लिए भी जाना जाता है। इस रेलवे स्टेशन पर तैनात पिंकी की प्रेरणात्मक कहानी जन मानस के मस्तिष्क में जोश भर जाती है, जिसकी सबसे बड़ी वजह है उत्तर रेलवे के इस सेक्शन पर पिंकी का एकमात्र महिला स्टेशन मास्टर होना और बात इतने पर ही खत्म नहीं होती, क्योंकि पिंकी इस स्टेशन पर एकमात्र महिला स्टेशन मास्टर होने के साथ-साथ कैथलीघाट रेलवे स्टेशन की पहली महिला स्टेशन मास्टर भी हैं। ब्रिटिश काल से लेकर आज तक पिंकी के अलावा यहां पहले कभी कोई महिला स्टेशन मास्टर नियुक्त नहीं हुई। पिंकी के स्टेशन मास्टर बनने की कहानी काफी रोचक है और कहीं न कहीं ट्रेन के सफ़र से ही जुडी है।
21 साल की उम्र में जिन दिनों बैंक रिक्रूटमेंट का फॉर्म भरने के लिए पिंकी को शहर जाना पड़ा, उस दौरान उन्होंने अपनी पहली रेल यात्रा की। इससे पहले वे कभी ट्रेन के पास भी नहीं गईं थीं।
पिंकी बिहार के दरभंगा जिले के एक गाँव दरहार में जन्मी। वे सात भाई-बहन हैं। पांच बहनों में से पिंकी सबसे छोटी हैं। उनके पिता स्टैम्प वेंडर का काम करते हैं। उन्होंने एक भरे-पूरे परिवार को सँभालने के लिए बहुत मेहनत की। इसका असर पिंकी पर गहरे से पड़ा। गाँव के माहौल और सीमित आय के बावजूद पिता ने बच्चों को पढ़ने से नहीं रोका और उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उत्साहित करते रहे। उनकी बाकी बहनों की शादी हो चुकी है, लेकिन पिंकी ने उसका सपना पूरा होने और खुद के लायक एक मुकाम हासिल करने से पहले शादी करने से इनकार कर दिया। उनके इस फैसले को परिवार ने भी सम्मान दिया। पिंकी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से प्राप्त की। पढ़ाई में तेज़ होने के कारण उनका दाखिला नागेंदर झा कॉलेज में हो गया। यहाँ से उन्होंने मैथ्स (ऑनर्स) में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की और फिर शुरू हुआ रेलवे की नौकरी का सफर। 21 साल की उम्र में जिन दिनों बैंक रिक्रूटमेंट का फॉर्म भरने के लिए पिंकी को शहर जाना पड़ा, उस दौरान उन्होंने अपनी पहली रेल यात्रा की। इससे पहले वे कभी ट्रेन के पास भी नहीं गयी थीं। कुछ देर के सफ़र ने पिंकी को शायद रेलवे के साथ जोड़ दिया और मन में रेलवे से जुड़ी नौकरी करने का विचार पैदा कर दिया।
इसे बाद पिंकी ने रेलवे रिक्रूटमेंट का फॉर्म भरा, परीक्षा दी और उनका चयन हो गया। चंदौसी में एक साल की ट्रेनिंग के बाद पिंकी की पहली पोस्टिंग इस एतिहासिक रेलवे स्टेशन कैथलीघाट पर हुई। वे पिछले एक साल से इस रेलवे स्टेशन पर बतौर स्टेशन मास्टर तैनात हैं।इस पहाड़ी स्टेशन पर तैनात होने से पहले पिंकी ने पहले कभी इतना खूबसूरत शहर नहीं देखा था और नही कभी पर्वत-पहाड़। पिंकी के लिए ये सबकुछ किसी सपने के सच हो जाने जैसा है। अब पिंकी सिविल सेवाओं की तैयारी में जुटी हैं और ज़िंदगी में कुछ बहुत बड़ा करने का सपना देख रही हैं।
-रवि शर्मा
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