एशिया की पहली महिला बस ड्राइवर 'वसंत कुमारी'
वसंत कुमारी एशिया की पहली महिला बस ड्राइवर हैं। उन्होंने बस की स्टीयरिंग तब संभाली जब महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर अकेले सफर करने तक से डरती थीं, वो भी उस उम्र में जब बच्चियां अपनी मां के आंचल में छिपकर रहती हैं।
वसंत ने बस की स्टीयरिंग तब संभाली जब महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर अकेले सफर करने तक से डरती थीं
वसंत कुमारी, एक नाम जिसने दुनिया को दिखा दिया कि महिलाओं को चाहे जितना नीचे खींचने की कोशिश करो वो अपनी ताकत और दृढ़ निश्चय से उतना ही ऊपर उठेंगी। इस पितृसत्तात्मक समाज ने वसंत के इरादों को पूरे बल के साथ दबा देने की कोशिश की लेकिन वसंत न झुकीं, न हारीं और आज वो सबके लिए मिसाल हैं। वसंत कुमारी एशिया की पहिला बस ड्राइवर हैं।
वसंत ने बस की स्टीयरिंग तब संभाली जब महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर अकेले सफर करने तक से डरती थीं, वो भी उस उम्र में जब बच्चियां अपनी मां के आंचल में छिपकर रहती हैं। साल 1993 में 14 साल की उम्र में वसंत कुमारी ने गाड़ी चलाना शुरू किया था।
अपने शुरुआती दिनों में वसंत के पास नौकरी के लिए कोई डिग्री नहीं थी। पति कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते थे और उनकी आय से परिवार का खर्च नहीं चल रहा था, ऐसे में वसंत को सरकारी नौकरियों में महिलाओं के 30 फीसदी रिजर्वेशन के बारे में पता चला।
बचपन में ही मां के निधन के बाद, पिता ने दूसरी शादी कर ली और वसंत की मौसी ने उन्हें पाला। वसंत की 19 साल की उम्र में ही शादी एक विधुर से करा दी गई। उनके पति की पहले से ही चार बेटियां थीं। बाद में इनके भी दो बच्चे हुए जिससे आर्थिक रूप से जीवन काफी कठिन हो गया। वसंत ने बताया कि उनके पास नौकरी के लिए कोई डिग्री नहीं थी। पति कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते थे और उनकी आय से परिवार का खर्च नहीं चल रहा था। ऐसे में उन्हें सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 30 फीसदी रिजर्वेशन के बारे में पता चला। शुभचिंतकों ने उन्हें बस ड्राइवर की जॉब के लिए आवेदन करने की सलाह दी।
लेकिन अभी उनके लिए संघर्ष बाकी था। वसंत कुमारी आगे बताती हैं, 'जब मैंने नौकरी के लिए अप्लाई किया तो मुझसे अधिकारियों ने कहा कि विश्व में मुश्किल से ही महिला बस ड्राइवर हैं और आप पुरुषों के साथ अपनी नौकरी को कैसे मैनेज करेंगी।'
वसंत ने काफी कम उम्र में भारी वाहनों को चलाने की ट्रेनिंग लेकर लाइसेंस हासिल कर लिया था। कई बार निराश होने के बाद उन्होंने अपने सभी टेस्ट्स क्लियर किए और फिर उन्हें तमिलनाडु स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन ने 30 मार्च 1993 को अपने यहां अपॉइंट कर लिया।
वसंत के मुताबिक उनकी जिंदगी रोड पर पुलिसकर्मियों, ट्रांसपोर्ट के अधिकारियों और पुरुष साथियों के कारण आसानी जरूर रही लेकिन पूरी तरह नहीं। उन्हें कभी वही रूट और रियायतें नहीं दी गईं जो पुरुषों को दी जाती हैं जबकि वह सभी रूट्स पर जाती थीं। खुशी की बात ये है कि तमिलनाडु ट्रांसपोर्ट में वह अब इकलौती महिला नहीं हैं। कई सारी महिलाएं हैं अब वहां कर्मचारी। लेकिन अधिकतर डेस्क जॉब पर हैं क्योंकि रोड पर ट्रैफिक का लोड अधिक रहता है।
सपनों का खुला आसमान
वसंत कुमारी को उनके साहस, प्रतिबद्धता और उत्कृष्ट सेवाओं की वजह से 2016 में रेनड्रापस सफल महिला पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वसंत की इच्छा है कि वह महिलाओं के लिए अपना ड्राइविंग स्कूल शुरू करें। ताकि वो और भी महिलाओं को सारी विपरीत परिस्थितियों से लड़कर सम्मान की जिंदगी जीना सिखा सकें। वो चाहती हैं कि कोई भी क्षेत्र सिर्फ पुरुषों का ही न मान लिया जाए। बेवजह की रूढ़ियों से ऊपर उठकर महिलाएं वो सब करें जिनकी लालसा वो अपने दिल में छुपाए रखी हैं।