किडनी की गंभीर बीमारी का इलाज कराएं, डायलिसिस की सेवा लें और ‘असीम’ सुख पाएं
सिर्फ डायलिसिस सेवाओं को उपलब्ध करवाने वाला देश का इकलौता स्वास्थ्य सेवा केंद्र है डीसीडीसीविश्व प्रसिद्ध नेशनल किडनी फाउंडेशन आॅफ सिंगापुर में कई वर्षों तक सहायक प्रबंधक के रूप में काम करने के भारत आकर किया शुरूप्रारंभ में कई चुनौतियों के अलावा अस्पतालों द्वारा पेश की गई बाधाओं का किया मजबूती से सामनाफिलहाल दिल्ली और एनसीआर में 80 मशीनों के साथ संचालित हो रहे हैं 10 डायलिसिस केंद्र
असीम गर्ग अपना जीवन एक विशेष फलसफे के सहारे जीते हैंः ‘‘नियमों को चुनौती दो, औरों से अलग सोचो, अपने जुनून का पीछा करो और बाकी सबकुछ अपने आप आपके पीछे आएगा।’’ इसी का नतीजा है कि जब उन्हें अपने इलाज करने कक लिये पारंपरिक अस्पतालों को पीछे छोड़ते हुए सिर्फ डायलिसिस करने वाल अस्पतालों के विचार को लेकर संदेह हुआ तो असीम अपनी जिद पर अड़े रहे और उन्होंने दीप चंद डायलिसिस सेंटर (डीसीडीसी) की स्थापना की।
असीम गर्ग ने आईटीएम गुड़गांव से व्यापार की शिक्षा प्राप्त करने के बाद बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट से जनरल मैनेजमेंट में एमबीए पूरा किया। असीम प्रारंभ से ह कुछ नया करने में यकीन रखते थे और दिल से व्यापार के क्षेत्र में अपना नाम बड़ा बनाना चाहते थे। इसके अलावा उनके अंदर अपने परिवार का दूसरों की सेवा करने का परोपकारी चरित्र भी कूट-कूटकर भरा हुआ था और वे विशेषकर अपने स्वर्गीय दादा, जिनके नाम पर डीसीडीसी का नामकरण हुआ है, से वे सबसे अधिक प्रभावित हुए। असीम ने भी अपनी ही तरह के अन्य अविष्कारकों की तरह अब तक अनछुए बाजार से जुड़ी एक बड़ी समस्या की तरफ दिया। अपने परिवार के इतिहास की ही तरह उन्होंने भी स्वास्थ्य देखभाल पर अपना ध्यान केंद्रित किया और उन्होंने भारत में गुर्दे की बीमारियों के बढ़ते हुए मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग क्रोनिक किडनी डिसीज़ (सीकेडी) की चपेट में है जो कि एक बेहद घातक बीमारी है जिसमें पीडि़त व्यक्ति के गुुर्दे अपने आप काम करना बंद कर देते हैं। इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों की एक बहुत बड़ी संख्या इसके निदान के लिये बेहद आवश्यक डायलिसिस की प्रक्रिया से महरूम रह जाती है। कारण, कई स्थानों पर तो डायलिसिस की सुविधा मौजूद ही नहीं है और कई स्थानों पर यह मौजूद तो है लेकिन इनती महंगी है कि हर कोई इसे वहन नहीं कर सकता। डीसीडीसी के उद्गम से पहले भारत अमरीका और कई अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले वहां बेहद प्रचलित स्टैंड अलोन डायलिसिस सेंटर को अपनाने के मामले में बहुत पीछे था। ये विशेष क्लीनिक अपनी पहुंच का विस्तार करने के लिये अस्पतालों के साथ काम न करके स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं जिसके चलते इनके इलाज का स्तर बेहतर होता है और ये लोग अधिक मरीजों की सेवा कर पाने में सक्षम होते हैं। असीम ने भारतीय बाजार में इस कमी को पहचाना और अपने स्वयं के स्वचलित क्लीनिक खोलकर इसकी क्षतिपूर्ति करने का प्रयास शुरू कर दिया।
एशिया के सबसे बेहतरीन डायलिसिस देखभाल सेवा प्रदाता के रूप में प्रसिद्ध नेश्नल किडनी फाउंडेशन आॅफ सिंगापुर में कई वर्षों तक सहायक प्रबंधक के रूप में नौकरी करने के दौरान असीम ने वहां बेहद मूल्यवान प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त किया। जब उन्होंने भारत में तेजी सक कदम बढ़ाते अपने इस व्यापार पर विचार करना प्रारंभ किया तो उन्होंने इतने वर्षों के अपने सारे ज्ञान को उसमें इस्तेमाल किया। हालांकि समर्थन पाना इतना आसान नहीं था। भारत लौटने पर असीम को पता चला कि उन्हें न सिर्फ कई असंतुष्टों द्वारा खड़ी की गई बाधाओं का सामना करना है बल्कि उन्हें संपूर्ण अस्पताल केंद्रित स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की परंपरा के विरोध का सामना करना पड़ा। निवेशक इस प्रकार के एक अपरंपरागत काम में अपने धन का निवेश करने में बिल्कुल भी रुचि नहीं दिखा रहे थे। प्रशिक्षित डाॅक्टर और नर्स भी अस्पताल की स्थापना के अलावा कहीं और उपचार करने के विचार के साथ खुद को सहज नहीं महसूस कर रहे थे क्योंकि उन्हें इसकी आदत नहीं थी। मरीजों को इन नए-नए शुरू हुए क्लिनिकों पर भरोसा नहीं था क्योंकि उस समय तक बाजार में उनकी कोई प्रतिष्ठा नहीं थी जिसके बारे में बात की जा सके।
प्रारंभिक दौर में कहीं से भी समर्थन न मिलने के बावजूद असीम ने हार नहीं मानी और पारंपरिक तरीकों को चुनौती देने के अपने प्रयास जारी रखे। उन्होंने अपने मित्रों और परिवार के अन्य सदस्यों के सहयोग से इतने धन का इंतजाम किया जिसके सहारे दीप चंद डायलिसिस सेंटर की स्थापना की जा सकती थी। आखिरकार वे अधिक मरीजों तक अपनी पहुंच बनाने और कुछ नया करने के प्रयासों में लगे हुए अपने जैसी सोच वाले कुछ डाॅक्टरों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहे। एक प्रशिक्षित और पेशेवर चिकित्सकों की टीम के सहयोग से वे रोगियों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। मरीजों को डीसीडीसी में आराम और देखभाल क जोरदार भाव देखने को मिला और वे इनके ही होकर रह गए।
वर्तमान ने डीसीडीसी दिल्ली और एनसीआर के इलाके में 8 डायलिसिस केंद्रों का सफल संचलन कर रहा है। करीब 80 मशीनों की सहायता से असीम डायलिसिस के कार्य को ऐसे रोगियों तक विस्तारित करने में सफल रहे हैं जो अबतक इस देखभाल से महरूम रहते थे। इसके अलावा जो लोग इस महंगे इलाज को वहन करने में खुद को असमर्थ पाते हैं उनके लिये ये एक अनोखी योजना लेकर आया है जिसमें ये उन मरीजों को रियायती दर पर इलाज उपलब्ध करवाते हैं जो करके धन कमाने के इच्छुक होते हैं। ऐसा करते हुए डीसीडीसी न सिर्फ उन रोगियों को इस महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा से रूबरू करवाता है जो आमतौर पर इसका खर्चा उठाने में अक्षम होते हैं बल्कि यह उन्हें सशक्त बनाने में भी मदद करता है। इस तरह से वे सीकेडी जैसी बीमारियों के साथ आने वाले अवसाद औश्र लाचारी की भावनाओं से भी इन रोगियों को दूर रखने में सक्षम होते हैं।
दीप चंद डायलिसिस सेंटर का भविष्य काफी उज्जवल है। असीम गर्ग और डीसीडीसी मे उनके साथ काम कर रही टीम इस धारणा को तोड़ने के अलावा यह साबित करने में सफल रही है कि भारत में भी पारंपरिक तरीकों से इतर उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित सेवाएं उपलब्ध करवाई जा सकती हैं। उच्च गुणवत्ता वाले डायलिसिस सेवा प्रदाता के रूप में अपना नाम रोशन कर लेने के साथ डीसीडीसी ने भारत के स्वास्थ्यसेवा के क्षेत्र को पुर्नपरिभाषित करना प्रारंभ कर दिया है। इस दिशा में पहल करते हुए इन्होंने कई अस्पतालों के साथ मिलाया है और वहां पर अपने डीसीडीसी केंद्र खोलने के लिये साझेदारी करने में सफलता प्राप्त की है।
असीम गर्ग फिलहाल भारतभर में अपना विस्तार करते हुए आने वाले 3 वर्षों में देशभर में 100 ऐसे क्लीनिक खोलने की दिशा में प्रयासरत हैं और इसके लिये पूंजी निवेश प्राप्त करने क प्रयास कर रहे हैं उनकी महत्वाकांक्षाएं बहुत ऊँची हैं और अबतक की सफलता ने यह साबित किया है कि वे रास्ते आने वाली चुनौतियों को पार करने में सक्षम हैं। वे अपने उस विशेष फलसफे ‘‘नियमों को चुनौती दो, औरों से अलग सोचो, अपने जुनून का पीछा करो और बाकी सबकुछ अपने आप आपके पीछे आएगा’’ के जीवंत उदाहरण हैं।